नयी दिल्ली:
दिल्ली के सरकारी स्कूलों की किशोर छात्राओं को मासिक धर्म पर शिक्षित करने के उद्देश्य से एक एनजीओ स्कूलों में ‘‘पीरियड टॉक’’ आयोजित करने जा रहा है, जिसमें छात्राओं को मासिक धर्म से संबंधित बराबर पूछे जाने वाले सवालों के जवाब दिये जायेंगे.
‘‘ब्रेक द ब्लडी टैबू’’ नामक अभियान के तहत एनजीओ ‘सच्ची सहेली’ ने सबसे पहले झुग्गी झोपड़ी के इलाकों में इस विषय पर शिक्षा देना शुरू किया और अब 70 सरकारी स्कूलों में इस विषय पर वे सत्र आयोजित करेंगे.
अभियान से जुड़ीं स्त्री रोग विशेषज्ञ सुरभि सिंह ने बताया, ‘‘आम तौर पर मासिक धर्म के बारे में लड़कियों को उनकी मां से शिक्षा मिलती है जो दुर्भाग्य से उन्हें शरीर की इस स्वाभाविक प्रक्रिया के बारे में अपने आस पास के अंधविश्वास, कलंक और भय को ही बताती हैं.’’ टीम का लक्ष्य उन आम सवालों के वैज्ञानिक कारणों को बताना है कि क्या दर्द के लिये दर्द निवारक गोलियां ली जायें या नहीं और माहवारी के दौरान अचार नहीं छूने या बाल धोने जैसी महिलाओं की उन मिथकों को भी तोड़ना है.
लड़कियां इस प्रक्रिया के बारे में कितना जानती हैं इसे जानने के लिये सत्र के दौरान लड़कियों को एक प्रश्नावली दी जायेगी.
उन्होंने कहा, ‘‘उनसे कुछ मामूली से सवाल किये जायेंगे जैसे कि ‘मासिक धर्म के बारे में उन्हें कैसे पता चला और क्या इस बारे में उन्हें पहले से बताया गया’. लड़कियों को इस दौरान सैनिटरी नैपकिन के इस्तेमाल और उसे समाप्त करने के तरीकों के बारे भी बताया जायेगा.’’ अब तक इस तरह के शिक्षा कोंडली, लक्ष्मी नगर, कृष्णा नगर, पटपड़गंज, त्रिलोकपुरी, मदनपुर खादर, वजीरपुर और शकूर बस्ती जैसे झुग्गी झोपड़ी इलाकों में दी गयी है.
‘‘ब्रेक द ब्लडी टैबू’’ नामक अभियान के तहत एनजीओ ‘सच्ची सहेली’ ने सबसे पहले झुग्गी झोपड़ी के इलाकों में इस विषय पर शिक्षा देना शुरू किया और अब 70 सरकारी स्कूलों में इस विषय पर वे सत्र आयोजित करेंगे.
अभियान से जुड़ीं स्त्री रोग विशेषज्ञ सुरभि सिंह ने बताया, ‘‘आम तौर पर मासिक धर्म के बारे में लड़कियों को उनकी मां से शिक्षा मिलती है जो दुर्भाग्य से उन्हें शरीर की इस स्वाभाविक प्रक्रिया के बारे में अपने आस पास के अंधविश्वास, कलंक और भय को ही बताती हैं.’’ टीम का लक्ष्य उन आम सवालों के वैज्ञानिक कारणों को बताना है कि क्या दर्द के लिये दर्द निवारक गोलियां ली जायें या नहीं और माहवारी के दौरान अचार नहीं छूने या बाल धोने जैसी महिलाओं की उन मिथकों को भी तोड़ना है.
लड़कियां इस प्रक्रिया के बारे में कितना जानती हैं इसे जानने के लिये सत्र के दौरान लड़कियों को एक प्रश्नावली दी जायेगी.
उन्होंने कहा, ‘‘उनसे कुछ मामूली से सवाल किये जायेंगे जैसे कि ‘मासिक धर्म के बारे में उन्हें कैसे पता चला और क्या इस बारे में उन्हें पहले से बताया गया’. लड़कियों को इस दौरान सैनिटरी नैपकिन के इस्तेमाल और उसे समाप्त करने के तरीकों के बारे भी बताया जायेगा.’’ अब तक इस तरह के शिक्षा कोंडली, लक्ष्मी नगर, कृष्णा नगर, पटपड़गंज, त्रिलोकपुरी, मदनपुर खादर, वजीरपुर और शकूर बस्ती जैसे झुग्गी झोपड़ी इलाकों में दी गयी है.
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