Delhi HC ने स्कूल फीस को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई से किया इनकार, कहा- ''ऑनलाइन पढ़ाना कोई बच्चों का खेल नहीं''

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामले में सुनवाई करते हुए कोविड-19 के कारण उत्पन्न हुई लॉकडाउन की स्थिति में निजि स्कूलों को ट्यूशन फीस न लेने के निर्देश देने से इनकार कर दिया है. 

Delhi HC ने स्कूल फीस को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई से किया इनकार, कहा- ''ऑनलाइन पढ़ाना कोई बच्चों का खेल नहीं''

निजी स्कूलों द्वारा फीस माफी को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई से HC से ने किया इनकार.

नई दिल्ली:

दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने प्राइवेट स्कूलों द्वारा लॉकडाउन के चलते फीस न लेने के निर्देश देने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. दिल्ली हाई कोर्ट का कहना है कि छात्रों को ई-शिक्षा के जरिए पढ़ाना कोई बच्चों का खेल नहीं है. इसके लिए किसी भी शिक्षक को अधिक एफर्ट डालने पड़ते हैं. कोर्ट का कहना है कि ई-शिक्षा प्रदान करने के लिए टीचर्स को अपने घरों में इंटरनेट कनेक्शन से लेकर बहुत सी चीजों पर खर्चा करना पड़ा होगा. कोर्ट ने कहा, ''क्या इन सब व्यवस्थाओं को कराने के बाद भी स्कूलों को ट्यूशन फीस लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.''

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामले में सुनवाई करते हुए कोविड-19 के कारण उत्पन्न हुई लॉकडाउन की स्थिति में निजि स्कूलों को ट्यूशन फीस न लेने के निर्देश देने से इनकार कर दिया है. 

गौरतलब है कि 17 अप्रैल को एक वकील ने दिल्ली के निजी स्कूलों को कोरोनावायरस के कारण कक्षाएं न चलने के कारण उस अवधि के शुल्क में छूट देने का निर्देश देने के लिए याचिका दायर की थी. इसपर भी दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया था. 

हाईकोर्ट का कहना है कि दिल्ली सरकार ने कई निजी स्कूलों द्वारा ऑनलाइन शिक्षा के लिए किए जा रहे प्रयासों को एक योग्‍य कदम के रूप में नोट किया है. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि छात्रों को 2020-21 के शैक्षणिक सत्र के दौरान किसी तरह की परेशानी न हो. 

पीठ ने कहा, ''हम इस भावना का तहे दिल से समर्थन करते हैं. स्कूलों और शिक्षकों द्वारा शिक्षा प्रदान करने और ऑनलाइन क्लास लेने के लिए काफी कोशिश की जा रही है. स्कूल में बच्चों को पढ़ाना और ऑनलाइन पढ़ाने में काफी अंतर होता है और इसलिए दोनों तरीकों की तुलना नहीं हो सकती है. ऑनलाइन क्लास लेने के लिए एक शिक्षक को अधिक एफर्ट डालने पड़ते हैं और इसलिए इसकी तुलना नहीं की जा सकती''. 

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अदालत ने आगे कहा, ''यह एक सामान्य ज्ञान की बात है कि ऐसा करने के लिए किसी भी शिक्षक या शिक्षिका को कितने एफर्ट डालने पड़ रहे होंगे ताकि वो बच्चों को सब्जेक्ट अच्छे से समझा सकें. इस वजह से इन शिक्षक और शिक्षिकाओं की प्रशंसा की जानी चाहिए''. कोर्ट ने याचिकाकर्ता प्रशांत कुमार की याचिका को ''मूलभूत रूप से गलत'' बताया है. कोर्ट ने अपने 21 पेज के आदेश में कहा, ''जब तक स्कूल ऑनलाइन शिक्षा प्रदान कर रहे हैं तब तक वो निश्चित रूप से ट्यूशन फीस लेने के हकदार हैं. यहां तक कि ऑनलाइन क्लास लेने का खर्च, क्लासरूम में पढ़ाने के मुकाबले काफी अधिक हो सकता है. ई-शिक्षा प्रदान करना कोई बच्चों का खेल नहीं है''.