उद्योगों के अंतरराष्ट्रीय विस्तार में कई बार छोटी छोटी चीजें भी खतरा बन जाती हैं और उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला के लिए यह खतरा उनकी कंपनी के दफ्तर की कैंटीन में 'बटर चिकन' पकाने के रूप में सामने आया।
गौरतलब है कि आदित्य बिड़ला समूह के चेयरमैन कुमार मंगलम मारवाड़ी समुदाय से हैं, जहां शाकाहार जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा और विश्वास है। यहां तक कि कंपनी के किसी भी कार्यालय या कारखाने की कैंटीन में मांस नहीं पकाया या परोसा जाता, यहां तक कि कंपनी के कार्य्रकमों में शराब भी नहीं परोसी जाती।
कंपनी द्वारा आस्ट्रेलिया में एक कारोबार के अधिग्रहण तक यह सब ठीक था। ऑस्ट्रेलिया जहां अधिकांश कर्मचारियों के लिए बीयर और भूना हुआ मांस (बार्बेक्यू) दैनिक जीवन का हिस्सा है।
बिड़ला के अनुसार, 'अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करना कठिन, जोखिम भरा काम है। मुझे याद है कि जब मैंने किसी बिड़ला कैंटीन में बटर चिकन परोसा जाते देखा, तो पाया कि कई बार सबसे बड़ी चुनौती वह बन जाती है, जिससे आपको ज्यादा उम्मीद नहीं होती।'
बिड़ला ने कहा कि महत्वाकांक्षी तथा अच्छी भारतीय कंपनियों के लिए दुनिया में अवसर हैं, लेकिन उन्हें याद रखना होगा कि दुनिया उन्हें उतना ही बदलेगी जितना वे दुनिया को बदलने की उम्मीद करते हैं।
आदित्य बिड़ला ग्रुप ने 2003 में ऑस्ट्रेलिया में 1.25 करोड़ डॉलर में एक छोटी से तांबे की खान खरीदी थी, लेकिन इसमें कंपनी के लिए एक अलग तरह की चुनौती खड़ी हो गई। बिड़ला ने कहा, 'हमारे नए कर्मचारी इस बात को लेकर चिंतित थे कि भारतीय स्वामित्व के तहत उनका जीवन कैसे बदल जाएगा। क्या उन्हें कंपनी कार्य्रकमों में बीयर तथा भुना मांस त्यागना होगा। हमने उन्हें आश्वस्त किया कि- बिलकुल नहीं।'
बिड़ला ने एक किताब 'रिइमेजिंग इंडिया: अनलॉकिंग द पोटेंशियल ऑफ एशियाज नेक्स्ट सुपरपॉवर' में इस घटना का ज्रिक किया है। वैश्विक परामर्शक फर्म मैकिंसे ने इस किताब में देश के प्रमुख उद्योगपतियों के लेखों का संकलन किया है।