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Banking Crisis: ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम में बढ़ते संकट को देखते हुए फेड रिजर्व समेत दुनिया के 6 बैंकों ने मिलाया हाथ

Banking Crisis: इस US डॉलर स्वैप एग्रीमेंट का मतलब ये है कि अगर बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी की कमी है तो वो इसको पूरा करता है.
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NDTV Profit हिंदी12:41 PM IST, 20 Mar 2023NDTV Profit हिंदी
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Banking Crisis: अमेरिका में सिलिकॉन वैली बैंक संकट (Silicon Valley Bank collapse) और सिग्नेचर बैंक डूबने (Signature Bank Crisis)  के बाद इसकी आंच यूरोप तक भी जा पहुंची है, क्रेडिट सुईस को बचाने के लिए UBS ने हाथ बढ़ाया है, लेकिन इस बात की गारंटी अब भी नहीं है कि बैंकिंग सिस्टम (Banking System) की समस्या को यहीं रोक लिया गया है. इन बैंकों के डूबने का कहीं दूसअसर रे बैंकों पर न पड़े और अगर पड़े भी तो उस परिस्थिति को संभालने के लिए क्या तैयारियां हैं, इसी को लेकर दुनिया के 6 देशों ने मिलकर एक साथ एक प्लान बनाया है.

6 बैंकों ने किया US डॉलर स्वैप एग्रीमेंट

ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम में बढ़ते संकट को देखते हुए यूएस फेड रिजर्व समेत 6 बैंकों ने लिक्विडिटी को बनाए रखने के लिए US डॉलर स्वैप एग्रीमेंट या 'स्वैप लाइन एग्रीमेंट' किया है. इसका मतलब ये है कि बैंकिंग सिस्टम में डॉलर की कमी होने पर ये 6 सेंट्रल बैंक डॉलर की कमी को पूरा करेंगे. इन 6 बैंकों में अमेरिका के फेडरल रिजर्व के अलावा, बैंक ऑफ कनाडा, बैंक ऑफ इंग्लैंड, बैंक ऑफ जापान, यूरोपियन सेंट्रल बैंक और स्विस नेशनल बैंक शामिल हैं.

आखिर क्या है US डॉलर स्वैप एग्रीमेंट

इस एग्रीमेंट का मतलब ये है कि अगर बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी की कमी है तो वो इसको पूरा करता है. इससे ग्लोबल फंडिंग मार्केट्स पर पड़ रहा दबाव कम होता है और होम लोन, बिजनेस और दूसरे तमाम तरह के लोन बांटने के लिए बैंकों के पास फंड उपलब्ध हो जाता है. इस डील के तहत, बैंकों को अगर लिक्विडिटी की जरूरत है तो वो उन्हें रोजाना मिल सकेगी, पहले ये सप्ताहिक आधार पर मिलता है. यानी बैंकों को रोजाना 7 दिन के लिए फंड मिल जाएंगे, ताकि उन्हें फंड की कमी से उनके डूबने की आशंका न रहे. आमतौर पर अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेड की ओर से ऐसी व्यवस्था तब की जाती है जब डॉलर की किल्लत हो जाती है.

कैसे काम करेगा US डॉलर स्वैप एग्रीमेंट

इस एग्रीमेंट के तहत अगर स्विस बैंकों को डॉलर की जरूरत है तो वो ओपन मार्केट से उधार लेने की बजाय सीधे स्विस नेशनल बैंक के पास जाएगा और ये अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक से उधार लेकर बैंकों को दे देगा. कनाडा, जापान, अमेरिका और इंग्लैंड के बैंक भी ऐसा कर सकेंगे. ये फंडिग इन्हें डेली बेसिस यानी रोजाना मिल सकेगी, जो पहले वीकली था.ऐसी व्यवस्था साल 2008 की मंदी में भी की गई थी और कोविड के दौरान साल 2020 में भी की गई थी. बैंक ऑफ इंग्लैंड का कहना है कि ये व्यवस्था कम से कम अप्रैल के अंत तक तक चालू रह सकती है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह BQ PRIME से प्रकाशित की गई है.)
 

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