2025 में आर्थिक सुधारों का केंद्र रहे मिडिल क्लास और आम आदमी को क्या हुआ फायदा?

2025 भारत के आर्थिक सुधारों का टर्निंग पॉइंट कहा जा सकता है. इनकम टैक्स में बड़ी राहत, GST 2.0 से आसान हुई जिंदगी, इलाज-शिक्षा में राहत और मिडिल क्लास को केंद्र में रखकर लिए गए फैसलों ने आम आदमी की जेब और सरकार में उसके भरोसे, दोनों को मजबूत किया.

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  • 2025 में 12 लाख तक इनकम टैक्स फ्री कर मिडिल क्लास को मजबूती दी गई. GST सुधार से घर, गाड़ियां, इलाज सस्ते हुए.
  • लेबर, निवेश, डिजिटल सुधारों ने नौकरी, ग्रोथ, भविष्य को मजबूती दी. आमदनी बढ़ी और जीवन यापन की लागत में कमी आई.
  • 2025 ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब सुधारों का केंद्र मिडिल क्लास और आम आदमी होता है, तो देश तेजी से आगे बढ़ता है.
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साल 2025, भारत की आर्थिक सुधारों की यात्रा में एक ऐतिहासिक वर्ष बनकर सामने आया है. इस साल केंद्र सरकार ने अपनी नीतियों में स्पष्ट तौर पर मिडिल क्लास और आम आदमी को प्राथमिकता दी. यह प्रधानमंत्री की उस सोच के तहत हुआ जिसमें उन्होंने आदमी को सरकार की नीति का आधार बताया. इस साल सरकार ने टैक्स, श्रम कानून, निवेश और रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े कई बड़े सुधार किए. इन सभी फैसलों का सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा. घरों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई, बाजार में खर्च बढ़ा और देश की लंबी अवधि की ग्रोथ को लेकर भरोसा और मजबूत हुआ. 

प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में मिडिल क्लास की भूमिका पर खास तौर पर बात की थी. उन्होंने कहा था कि मिडिल क्लास देश के विकास में सबसे बड़ा योगदान देता है, लेकिन बेहतर जीवन, बेहतर सुविधाएं और सुरक्षित भविष्य के उसके भी सपने हैं. 2025 में इसी सोच को उन्होंने नीतियों के रूप में आकार दिया. कुछ ही महीनों में उन्होंने ऐसे फैसले लिए, जिनका असर आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ा. चाहे नया इनकम टैक्स सिस्टम हो या GST 2.0, 2025 के सुधारों ने यह स्पष्ट कर दिया कि सरकार अब जटिल नियमों को आसान करने की तरफ तेजी से अपने कदम बढ़ा रही है साथ ही वह बोझ से सशक्तिकरण की दिशा में बदलाव के संकेत दे रही है.

इनकम टैक्स में बदलाव से लोगों की जेब में पहुंचा अधिक पैसा

2025 के सबसे असरदार कदमों में से एक डायरेक्ट टैक्स सिस्टम में बदलाव रहा. सरकार ने 12 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी को इनकम टैक्स से छूट देकर और स्टैंडर्ड डिडक्शन को बढ़ाकर 75,000 करके अधिकांश करदाताओं को राहत दी. केंद्र सरकार के इस निर्णय से अब करीब 90 फीसद करदाता, यानी देश की लगभग 7 करोड़ जनता अब टैक्स के दायरे से बाहर आ गई है. इसका सीधा फायदा लोगों की जेब पर भी दिखा. जो व्यक्ति सालाना 12 लाख रुपये कमाता है, उसे टैक्स में अब करीब 1 लाख रुपये की बचत होगी. वहीं स्टैंडर्ड डिडक्शन को जोड़ने के बाद कुल बचत 1.75 लाख रुपये की होगी. 12 लाख से अधिक कमाने वालों को भी इसका फायदा होगा. रिटायर्ड लोगों के लिए सेविंग्स पर मिलने वाली छूट को 50 हजार रुपये से बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर दिया गया है, यानी उन्हें बचत पर अधिक मुनाफा होगा. 

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जेब में पैसा आया तो अर्थव्यवस्था को मिली ताकत

डिस्पोजेबल इनकम बढ़ने से मैक्रोइकोनॉमी के स्तर पर बड़ा असर होगा. मिडिल क्लास परिवार आमतौर पर अपनी एकस्ट्रा इनकम का करीब 80 फीसद खर्च कर देता है. इसी कारण यह माना जा रहा है कि टैक्स राहत से मिलने वाले करीब 5 लाख करोड़ रुपये वापस बाजार में आ जाएंगे. अर्थशास्त्रियों का अनुमान है है कि इससे निजी खपत की दर 10 प्रतिशत बढ़ सकती है और वित्त वर्ष 2026 में जीडीपी 8 फीसद से ऊपर जा सकता है. इससे भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में और मजबूत होगा.

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GST 2.0: सस्ता और सरल टैक्स सिस्टम

डायरेक्ट टैक्स सुधारों के साथ-साथ सरकार ने नेक्स्ट जेनरेशन GST यानी GST 2.0 लागू किया. 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद जो एकरूपता आई थी, 2025 का GST 2.0 उसे और सरल और आम लोगों के अनुकूल बनाता है. सरकार ने 28% और 12% जीएसटी स्लैब खत्म कर दिए और अब टैक्स सिस्टम मुख्य तौर पर 5% और 18%* स्लैब पर आधारित हो गया. इससे टैक्स ढांचा साफ, आसान और नागरिकों के लिए ज्यादा फायदेमंद हो गया.

रोजमर्रा की चीजें हुईं सस्ती- पनीर, दूध, रोटी और पराठे जैसी रोजमर्रा के जरूरी खाद्य पदार्थों को पूरी तरह टैक्स फ्री कर दिया गया. वहीं साबुन, शैम्पू और टूथपेस्ट जैसी पर्सनल केयर की चीजों पर जीएसटी 18% से घटाकर 5% कर दी गई.

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आवागमन और घर बनाना हुआ आसान- पहले जिन चीजों पर 28% टैक्स लगता था, अब वे सस्ती हो गईं: दोपहिया वाहन, छोटी कारें और तिपहिया वाहन- जिन पर पहले 28 फीसद टैक्स लगता था, अब 18% जीएसटी के स्लैब में आ गए हैं. सीमेंट पर टैक्स 28% से घटाकर 18% कर दिया गया है, जिससे घर और कंस्ट्रक्शन की लागत कम हुई है.

ग्रामीण परिवारों के लिए- ट्रैक्टर, हार्वेस्टर और सिंचाई मशीनों पर सिर्फ 5% जीएसटी कर दिया गया है, जिससे इनपुट लागत कम हो जाएगी और कृषि उत्पादकों को सपोर्ट मिलेगा.

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छात्रों के लिए राहत- कॉपी, पेंसिल, मैप्स और रबर को टैक्स फ्री कर दिया गया है, इससे शिक्षा का खर्च कम होगा.

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स्वास्थ्य सेवाएं भी सस्ती, लेबर कोड में भी हुआ सुधार

2025 में हेल्थकेयर को सस्ता बनाना एक और अहम प्राथमिकता रही. जान बचाने वाली कैंसर की दवाएं और दुर्लभ बीमारियों की दवाओं को जीरो-टैक्स कैटेगरी में रखा गया, जबकि मेडिकल ऑक्सीजन, डायग्नोस्टिक किट और थर्मामीटर को न्यूनतम टैक्स के दायरे में रखा गया. इन कदमों से आम आदमी के परिवारों का जेब खर्च कम हुआ और यह एक ऐसी पॉलिसी अप्रोच को दिखाता है जो वित्तीय फैसलों को सामाजिक भलाई के साथ जोड़ती है. 
2025 के सुधार सिर्फ टैक्स तक सीमित नहीं रहे. लेबर कोड में सुधार से नियम आसान हुए और सोशल सिक्योरिटी बढ़ी और इसने नियमों का पालन करना आसान बनाया और रोजगार पैदा करने में मदद मिली. वहीं FDI (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश) के उदारीकरण (FDI में दी गई ढील) से निवेश बढ़ा और अलग-अलग सेक्टर को मजबूती मिली. साथ ही विदेश पैसा भेजने पर TCS (टैक्स कलेक्शन ऐट सोर्स) की सीमा बढ़ाने और एजुकेशन लोन से विदेश में पढ़ाई के लिए भेजी जाने वाली रकम पर TCS हटाने जैसे कदमों ने शिक्षा और वैश्विक अवसरों में निवेश करने वाले परिवारों को बड़ी राहत दी है.

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भविष्य की अर्थव्यवस्था की तैयारी

हाल के सुधार, जैसे बीमा क्षेत्र में 100% एफडीआई की अनुमति देना, SHAANTI विधेयक लाना, और गूगल के डेटा सेंटर जैसे निवेशों से डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाना, भविष्य को देखते हुए नीति बनाने की स्पष्टता तो दर्शाता है. बीमा में 100 फीसद विदेशी निवेश की इजाजत देने से कॉम्पिटिशन बढ़ने, पूंजी की उपलब्धता में सुधार और एडवांस्ड अंडरराइटिंग और क्लेम टेक्नोलॉजी के उपयोग में तेजी आने की उम्मीद है, जिससे आम ग्राहकों के लिए इंश्योरेंस अधिक सस्ता हो जाएगा. SHAANTI विधेयक का मकसद एक यूनिफाइड, पारदर्शी रेगुलेटरी व्यवस्था के तहत निजी भागीदारी को मुमकिन बनाकर भारत के परमाणु ऊर्जा ढांचे को आधुनिक बनाना है- कैपिटल-इंटेंसिव, भविष्य के लिए तैयार सेक्टरों की ओर एक बड़े बदलाव का संकेत देता है. इस बीच, ग्लोबल डिजिटल निवेश सभी उद्योगों में दक्षता, साइबर सुरक्षा और स्केल को बढ़ाता है, इससे टेक्नोलॉजी पर आधारित, ग्राहक-केंद्रित ग्रोथ इकोसिस्टम मजबूत होता है.

बदलती आर्थिक तस्वीर

इन सुधारों का असर भारत की बदलती आर्थिक दशा पर साफ दिखता है. हाल की रिपोर्ट्स में बताए गए इनकम डेटा के अनुसार, 2015 और 2023 के बीच मिडिल क्लास और अपर मिडिल क्लास तेजी से बढ़ा है, जबकि मल्टीडाइमेंशनल गरीबी तेजी से कम हुई है, और पिछले एक दशक से भी कम समय के दौरान 24 करोड़ से अधिक लोग गरीबी से बाहर निकले हैं. वित्तीय भागीदारी भी बढ़ी है. 2013 में डीमैट अकाउंट 2.1 करोड़ था, जो 2025 में बढ़कर 18.5 करोड़ होने का अनुमान है. वहीं सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) का योगदान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है.

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2025 को खास क्या बनाता है?

2025 की सबसे बड़ी खासियत है- इसके सुधार एजेंडे में तालमेल. डायरेक्ट टैक्स राहत से खर्च करने लायक आमदनी बढ़ी है तो जीएसटी को आसान बनाने से जीवन यापन की लागत में कमी आई है. लेबर और निवेश सुधारों से रोजगार बढ़ा तो वित्तीय अनुशासन से भरोसा बरकरार रहा. इन सब ने मिलकर इज ऑफ लिविंग, आर्थिक महत्वकांक्षाओं और एक समान विकास को साल 2025 में आगे बढ़ाया है. 
2025 ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब सुधारों का केंद्र मिडिल क्लास और आम आदमी होता है, तो देश तेजी से आगे बढ़ता है. आसान शब्दों में कहें तो संदेश यही है जब परिवार खुशहाल होंगे, तभी देश आत्मविश्वास से आगे बढ़ेगा.

लेखकः प्रदीप भंडारी, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता

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