'वन नेशन, वन इलेक्शन' से होगी 1.50 लाख करोड़ की बचत! इकोनॉमी को मिलेगा बूस्ट...

'वन नेशन, वन इलेक्शन' की समीक्षा करने वाली रामनाथ कोविंद कमिटी का ये अनुमान है कि, देश में चुनावों पर 4 लाख करोड़ से 7 लाख करोड़ तक का अनुमानित खर्च होता है.

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अगर भारत में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' की पॉलिसी लागू हो जाती है तो देश की इकोनॉमी को जबरदस्त बूस्ट मिलेगा. ये बात व्यापारी उद्यमी संगठनों के एक सम्मेलन में सामने आई. इसमें बताया गया कि देश को करीब इस कानून से 1.50 लाख करोड़ की बचत होगी. साथ ही अर्थव्यवस्था 5.50 लाख करोड़ तक बढ़ने का अनुमान है.

दरअसल दिल्ली में व्यापारी उद्यमी संगठनों ने "वन नेशन, वन इलेक्शन" पर एक सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल, केंद्रीय कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह जैसे बड़े नेता शामिल हुए. बैठक में "एक राष्ट्र, एक चुनाव" को आगे बढ़ाने की रूपपरेखा पर कई घंटे चर्चा चली.

'अर्थव्यवस्था समृद्ध भारत के लक्ष्य की ओर तेजी के साथ आगे बढ़ेगी'

सम्मेलन में संगठनों की तरफ से कहा गया कि, 'आज भारत की अर्थव्यवस्था 4.2 ट्रिलियन डॉलर, यानी 367 लाख करोड़ की दुनिया की चौथे नंबर की अर्थव्यवस्था है. इस अर्थव्यवस्था में "एक राष्ट्र, एक चुनाव" से करीब 5.5 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त बढ़ोतरी होगी. इससे तेजी के साथ आगे बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व का तीसरा स्थान प्राप्त कर लेगी, जिससे समृद्ध भारत के लक्ष्य को जल्द ही हासिल किया जा सकेगा.

प्रपोजल में कहा गया है कि "एक राष्ट्र, एक चुनाव" व्यवस्था लागू होने से काफी बचत होगी, जिसका इस्तेमाल विकास के कार्यों पर किया जा सकेगा. बीजेपी सांसद और कनफेडरेशन का ऑल इंडिया ट्रेडर्स के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने एनडीटीवी से कहा:

"एक राष्ट्र, एक चुनाव" की समीक्षा करने वाली रामनाथ कोविंद कमिटी का ये अनुमान है कि, देश में चुनावों पर 4 लाख करोड़ से 7 लाख करोड़ तक का अनुमानित खर्च होता है. यदि एक साथ चुनाव होता है तो खर्च में एक तिहाई बचत हो सकती है. यदि हम 4.50 लाख करोड़ के अनुमान को लेकर चलें तो देश में करीब 1.5 लाख करोड रुपए की बचत होगी".

देश के 15 राज्यों का बजट 1.5 लाख करोड़ तक नहीं पहुंचा

सम्मलेन में इस बात की समीक्षा भी हुई कि "एक राष्ट्र, एक चुनाव" व्यवस्था से समय और मानव संसाधन की भी बचत होगी. व्यापारी संगठनों का आंकलन है कि अलग-अलग चुनावों की वजह से साल में औसतन 80 दिन तक आचार संहिता लागू होने से विकास की रफ्तार धीमी पड़ जाती है. उनका दावा है कि लोक सभा और विधान सभा के चुनाव एक साथ कराने से कम से कम 40 कार्यदिवस विकास के लिए और खुलेंगे.

साथ ही, निरंतर होने वाले चुनावों की वजह से 1.5 करोड़ सरकारी कर्मचारी कम से कम 7 दिन के लिए चुनाव ड्यूटी पर लगते हैं. ऐसे में एक साथ देश में चुनाव कराने से कार्यशील जनसंख्या के 10.5 करोड़ कार्य दिवस बचाया जा सकेगा.

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