जिस मुकाम पर पहुंचने और वहां बने रहने के लिए सितारे हर जतन करने को तैयार रहते हैं, उस स्टारडम को एक पल में गुडबाय बोलना कतई आसान नहीं हो सकता, लेकिन विनोद खन्ना शायद किसी और ही मिट्टी के बने थे. जिस वक्त बॉलीवुड में उनका सितारा पूरी बुलंदी पर था, उसी समय सुपरस्टार की शोहरत को ठोकर मार इन्होंने अलग राह पकड़ ली. ओशो के आश्रम में विनोद कुमार ने माली का काम भी किया और कई सालों बाद फिर से फिल्मों में वापसी भी की.
बॉलीवुड के महानायक का तमगा भले ही विनोद खन्ना को न दिया जाता हो, लेकिन भारतीय सिनेमा के हैंडसम हंक की लिस्ट बनाई जाए तो वह उनके बगैर कभी पूरी नहीं हो सकती. आज हम बात करेंगे विनोद खन्ना की उन बेहतरीन फिल्मों की, जिनका जादू आज भी उनके फैन्स पर कायम है.
मेरे अपने (1971)
इस फिल्म से पहले विनोद खन्ना रेशमा और शेरा, सच्चा-झूठा जैसी कई फिल्मों में सहायक भूमिकाएं कर चुके थे, लेकिन 'मेरे अपने' में निभाई 'श्याम' की भूमिका से विनोद खन्ना को एक अलग ही पहचान मिली. इस फिल्म के राइटर और डायरेक्टर गुलजार थे. फिल्म में विनोद खन्ना का किरदार एक पढ़े लिखे नौजवान का था, जो मामूली से पैसों के लिए नेता के लिए गुंडागर्दी के काम करता है.
यह फिल्म उस समय के सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर चोट करती थी. विनोद खन्ना के अलावा फिल्म में शत्रुघ्न सिन्हा, डैनी, पेंटल, मीना कुमारी, असित सेन और महमूद जैसे मंझे हुए कलाकार थे. पर्दे पर श्याम (विनोद खन्ना) और छेनु (शत्रुघ्न) के बीच की अदावत दर्शकों को काफी पसंद आई थी. इसके कई डायलॉग्स आज भी काफी लोकप्रिय हैं.
इम्तिहान (1974)
वो गाना तो आपको याद ही होगा 'रुक जाना नहीं तू कहीं हार के, कांटों पर चलकर मिलेंगे साए बहार के'. इम्तिहान फिल्म का ये गाना हिन्दी सिनेमा के बेहतरीन इंस्पिरेशनल सॉंग्स में से एक माना जाता है. इस वक्त हिन्दी सिनेमा में मारधाड़ से भरी एक्शन फिल्में सफलता की गारंटी मानी जा रही थी.
मुकद्दर का सिकंदर (1978)
विनोद खन्ना को सेकंड लीड रोल करने से कभी परहेज नहीं रहा. जमीर, हाथ की सफाई, परिचय जैसी हिट फिल्मों में वे छोटी भूमिकाएं कर चुके थे. सुपरस्टार अमिताभ के साथ हेराफेरी, अमर अकबर एंथोनी, परवरिश, खून पसीना जैसी फिल्में वे कर चुके थे और अपनी अलग पहचान भी बना चुके थे.
मुकद्दर का सिकंदर में वैसे तो अमिताभ बच्चन की मुख्य भूमिका थी, लेकिन सहायक भूमिका में विनोद खन्ना ने भी इस फिल्म में अपनी अमिट छाप छोड़ी. फिल्म इंडस्ट्री में चर्चा होने लगी थी कि विनोद खन्ना, अमिताभ की स्टारडम को चुनौती देने लगे हैं.
कुर्बानी (1980)
फिरोज खान की ये क्लासिक फिल्म उस वक्त एक बिल्कुल नया प्रयोग थी. फिरोज खान और विनोद खन्ना की इस जोड़ी को दर्शकों ने काफी पसंद किया था. इस फिल्म का म्यूजिक भी बेहद पसंद किया गया था. फिल्म का हरेक गाना सुपरहिट था. इस फिल्म में विनोद खन्ना का लुक इतना प्रभावी था कि वे फिरोज खान पर भी भारी पड़ते दिखाई दिए थे.
दयावान (1988)
ये फिल्म तमिल में नायकन के नाम से बन चुकी थी, जिसका निर्देशन मणिरत्नम ने किया था. इस फिल्म की कहानी अंडरवर्ल्ड के वरदराजन मुदलियार के किरदार पर आधारित थी. मूल तमिल फिल्म में मुख्य भूमिका कमल हसन ने निभाई थी. इस फिल्म का हिन्दी रीमेक फिरोज खान ने बनाया. फिरोज और विनोद खन्ना की जोड़ी एक बार फिर पर्दे पर थी. मणिरत्नम की मूल फिल्म की तुलना में फिल्म को भले ही सराहना न मिली हो, लेकिन विनोद खन्ना के काम को काफी सराहा गया.
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