महेश भट्ट हिंदी सिनेमा के उन नामों में शामिल हैं, जिन्होंने निर्देशक, निर्माता और लेखक के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई है. आज उनकी गिनती दिग्गज फिल्मकारों में होती है, लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने का उनका सफर आसान नहीं रहा. महेश भट्ट का जन्म नानाभाई भट्ट और शिरीन मोहम्मद अली के घर हुआ था. उनके पिता गुजराती हिंदू नागर ब्राह्मण थे, जबकि मां गुजराती मुस्लिम थीं. यही पारिवारिक पृष्ठभूमि आगे चलकर उनकी एक बेहद खास फिल्म की प्रेरणा बनी. विकिपीडिया के मुताबिक, साल 1998 में महेश भट्ट ने अपनी मां के जीवन से प्रेरित होकर फिल्म ‘जख्म' बनाई.
इस फिल्म में उनकी मां का किरदार उनकी बेटी पूजा भट्ट ने निभाया, जबकि महेश भट्ट के किरदार में अजय देवगन नजर आए. फिल्म को दर्शकों और समीक्षकों से जबरदस्त सराहना मिली और आज भी इसे बॉलीवुड की बेहतरीन फिल्मों में गिना जाता है. कमाई के मामले में भी यह फिल्म साल 1998 की टॉप फिल्मों में शामिल रही.
दमदार स्टारकास्ट और अवॉर्ड्स
‘जख्म' में अजय देवगन और पूजा भट्ट के अलावा कुणाल खेमू (बाल कलाकार), सोनाली बेंद्रे और नागार्जुन जैसे कलाकारों ने अहम भूमिकाएं निभाईं. फिल्म को नेशनल इंटीग्रेशन पर बेस्ट फीचर फिल्म के लिए नरगिस दत्त अवॉर्ड से नवाजा गया. वहीं अजय देवगन को उनकी शानदार एक्टिंग के लिए पहला नेशनल फिल्म अवॉर्ड (बेस्ट एक्टर) मिला, जो उनके करियर का बड़ा मोड़ साबित हुआ.
किरदारों की झलक
फिल्म में अजय देवगन ने म्यूजिक डायरेक्टर अजय देसाई का रोल निभाया, जबकि उनके बचपन का किरदार कुणाल खेमू ने किया. नागार्जुन अजय के पिता रमन देसाई के रूप में दिखे. पूजा भट्ट ने मां नूर हुसैन खान का किरदार निभाया. सोनाली बेंद्रे अजय की पत्नी सोनिया बनीं. इसके अलावा आशुतोष राणा, शरत सक्सेना और अक्षय आनंद ने भी अहम भूमिकाएं निभाईं.
कहानी का भावनात्मक सफर
फिल्म की कहानी अजय और उसकी पत्नी सोनिया के बीच मतभेद से शुरू होती है. सोनिया अपने बच्चे का जन्म इंग्लैंड में चाहती है, जबकि अजय मुंबई दंगों के डर के चलते भारत छोड़ना नहीं चाहता. इसी बीच अजय को पता चलता है कि उसकी मां सांप्रदायिक हिंसा का शिकार हो गई है और गंभीर हालत में है.
फ्लैशबैक में दिखाया जाता है कि कैसे अजय की मां ने समाज और पहचान के संघर्ष के बीच अपने बच्चों की परवरिश की. पिता की मौत के बाद अजय को मां की सच्चाई पता चलती है. मरते वक्त मां उससे वादा लेती है कि उसे उसके धर्म के अनुसार दफनाया जाएगा. आगे कहानी धार्मिक कट्टरता, राजनीति और इंसानियत के टकराव को बेहद संवेदनशील तरीके से दिखाती है.
क्यों खास है ‘जख्म'
‘जख्म' सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि पहचान, प्रेम और इंसानियत की गहरी कहानी है. यही वजह है कि दशकों बाद भी यह फिल्म दर्शकों के दिलों में अपनी खास जगह बनाए हुए है.
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