107 साल पहले बनी थी भगवान राम पर पहली फिल्म, एक ही शख्स ने निभाया राम-सिया का किरदार, पक्का अब तक नहीं देखी होगी आपने

आज से 107 साल पहले जब भगवान राम की कहानी फिल्मी पर्दे पर आई थी तो थियेटर में दर्शकों की लाइन लग गई थी. जबकि उस रामायण में न आवाज थी न कोई भारी भरकम एक्ट्रेस. दिलचस्प बात तो ये है कि राम और सिया का रोल प्ले करने के लिए एक ही शख्स को चुना गया.

107 साल पहले बनी थी भगवान राम पर पहली फिल्म, एक ही शख्स ने निभाया राम-सिया का किरदार, पक्का अब तक नहीं देखी होगी आपने

Lanka Dahan Movie: दादासाहेब फाल्के की है लंका दहन साइलेंट मूवी

नई दिल्ली:

Lanka Dahan 1917 Silent  Adventure Movie: नए दौर में नए विजुअल इफेक्ट्स और बड़े बड़े कलाकारों के साथ फिल्मी पर्दे पर आई फिल्म आदिपुरुष कोई कमाल नहीं दिखा सकी. लेकिन आज से 107 साल पहले जब भगवान राम की कहानी फिल्मी पर्दे पर आई थी तो थियेटर में दर्शकों की लाइन लग गई थी. जबकि उस रामायण में न आवाज थी न कोई भारी भरकम एक्ट्रेस. दिलचस्प बात तो ये है कि राम और सिया का रोल प्ले करने के लिए एक ही शख्स को चुना गया. वही फिल्म का राम था और वही सीता भी. उसके बावजूद थियेटर्स में पूरी तरह मंदिर जैसा माहौल रहता था. दर्शक भीतर जाने से पहले जूते और चप्पल निकालकर जाया करते थे.

दादा साहब फाल्के की रामायण

इस रामायण को दादा साहब फाल्के ने लंका दहन के नाम से बनाया था. इस फिल्म की खास बात ये थे कि फिल्म के लिए दादा साहब फाल्के को हीरोइन नहीं मिला करती थीं. साल 1913 में दादा साहब ने हरिश्चंद्र फिल्म बनाई. इस फिल्म में भी हीरोइन का रोल अदा किया अन्ना सालुंके नाम के शख्स ने. उनके पतले हाथ और दुबला पतला डील डौल महिला का किरदार निभाने के लिए बिलकुल उपयुक्त था. इसलिए जब 1917 में दादा साहब ने लंका दहन बनाना शुरु की तो अन्ना सालुंके को ही सीता का रोल दिया. चुनौती थी पुरुष का किरदार अदा करने की. लेकिन अन्ना सालुंके ने अपने हाव भाव और बॉडी लेंग्वेज पर इतना काम किया कि वो राम के किरदार में भी फिट बैठे.

मंदिर जैसा माहौल

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राम और सीता दोनों का रोल कर अन्ना सालुंके तो हिंदी सिनेमा के डबल रोल करने वाले पहले आर्टिस्ट बन गए. सबसे बड़ी बात ये थी कि लोगों ने भी उन्हें दोनों रोल में अपनाया. राम सीता की रामायण देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग थियेटर तक पहुंचे. भक्तिभाव का आलम ये था कि लोग चप्पल उतार कर ही सिनेमा हॉल के भीतर जाते थे. जबकि फिल्म में कोई आवाज नहीं थी. उसके बाद भी भगवान के प्रति भक्ति का संदेश लोगों तक साफ साफ पहुंचा.