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Happy New Year 2026: मिर्जा गालिब के 10 इश्किया शेर, पढ़ें तो सालभर पंचर नहीं होगी इश्क की साइकिल

Happy New Year 2026: मिर्जा गालिब वो शायर हैं जिनकी शायरी का इस्तेमाल सिनेमा से लेकर रोजमर्रा की जिंदगी में जमकर इस्तेमाल होता है. 2026 में अगर ये 10 शेयर पढ़कर समझ लिए तो इश्क की साइकिल कभी पंचर नहीं होने वाली.

Happy New Year 2026: मिर्जा गालिब के 10 इश्किया शेर, पढ़ें तो सालभर पंचर नहीं होगी इश्क की साइकिल
Happy New Year 2026: नए साल पर कतई मिस ना करें मिर्जा गालिब की इश्किया शायरी
नई दिल्ली:

Happy New Year 2026: उर्दू अदब की दुनिया में अगर कोई शख्सियत ऐसी है जो आज भी करोड़ों दिलों पर राज करती है, तो वो हैं मिर्जा असदुल्लाह बेग खान यानी अपने मिर्जा गालिब. 27 दिसंबर 1797 को आगरा में जन्मे मिर्जा गालिब ने अपनी जिंदगी मुग़लिया दौर के आखिरी दिनों में गुजारी, जब दिल्ली की शान ओ शौकत खत्म हो रही थी. छोटी उम्र में पिता और चाचा का साया उठ गया, शादी हुई लेकिन घरेलू जिंदगी में मुश्किलें रहीं. फिर भी, मिर्जा गालिब ने कभी हिम्मत नहीं हारी. वो शराब, जुआ और आम के शौकीन थे. इसकी वजह से कई बार मुश्किल भी पड़े. लेकिन उनकी कलम ने इश्क, जिंदगी, दर्द और फलसफे को ऐसे लफ्ज दिए जो सदियों से गूंजते आ रहे हैं.

मिर्जा गालिब की शायरी में सादगी और गहराई का अनोखा मेल है. तभी तो आज भी हम बातों-बातों में उनकी शायरी का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जान भी नहीं पाते हैं. तभी तो वो इश्क को आतिश कहते हैं जो लगाए न लगे और बुझाए न बुझे. दिल्ली के बल्लीमारान में उनकी हवेली आज भी उनके दीवानों को बुलाती है. 1857 की क्रांति ने उन्हें बहुत दुख दिया, लेकिन उनकी गजलें अमर हो गईं. बॉलीवुड में 'मिर्जा गालिब' फिल्म (1954) और गुलजार की टीवी सीरीज में नसीरुद्दीन शाह ने उन्हें जीवंत किया.

मिर्जा गालिब के 10 इश्किया शेर, जो सिखाते हैं इश्क के सबक...

1. हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

2. दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है

3. इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के

4. हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है

5. मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले

6. उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

7. इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बुझे

8. न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता

9. हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है
वो हर एक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता

10. आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

मिर्जा गालिब की शायरी आज भी हमें सिखाती है, जिंदगी का सफर आसान नहीं है, लेकिन हार मानना गलत है. उनकी गजलें इश्क, वफा और हकीकत का आईना हैं. 15 फरवरी 1869 को दिल्ली में इंतक़ाल हुआ, लेकिन गालिब आज भी जिंदा हैं.

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