Kangana Ranaut's 'Manikarnika' Movie Review: सुभद्राकुमारी चौहान की कविता 'खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी' को बचपन से सुनते आए हैं और झांसी की रानी की एक इमेज इसी कविता ने हमारे जेहन में बनाई है. लेकिन झांसी की रानी की एक छवि कंगना रनौत (Kangana Ranaut) 'मणिकर्णिकाः द क्वीन ऑफ झांसी' में भी लेकर आई हैं. कंगना रनौत ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के किरदार को बखूबी परदे पर उतारा है लेकिन 'मणिकर्णिकाः द क्वीन ऑफ झांसी (Manikarnika: The Queen of Jhansi)' इस लेजंडरी कैरेक्टर के साथ इंसाफ करती नजर नहीं आती है और कमजोर डायरेक्शन फिल्म की सबसे बड़ी चूक है. फिल्म के डायरेक्शन को लेकर हुई जंग तो वैसे भी जगजाहिर है और आखिर में कंगना रनौत (Kangana Ranaut) को कमान अपन हाथों में लेनी पड़ी. कमजोर डायरेक्शन और बचकानी बातें पूरी फिल्म पर हावी रहती हैं. फिल्मों में अंग्रेजों के बोलने के ढंग और अंदाज पर कुछ और काम किया जाना चाहिए वर्ना यह बहुत हास्यास्पद लगता है क्योंकि यह अंदाज अब पुराना हो चुका है.
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'मणिकर्णिकाः द क्वीन ऑफ झांसी (Manikarnika: The Queen of Jhansi)' की कहानी मणिकर्णिका के जन्म से शुरू होती है और बचपन में ही ऐलान कर दिया जाता है कि उसकी उम्र लंबी हो न हो लेकिन उसका नाम बड़ा होगा. कंगना रनौत (Kangana Ranaut) की एंट्री बाघ के शिकार के साथ होती है और कंगना बहुत खूबसूरत भी लगती हैं. झांसी के राजा के लिए मणिकर्णिका को चुना जाता है और शादी पर उसका नाम लक्ष्मीबाई हो जाता है. लेकिन बच्चे के निधन होने की वजह से अंग्रेज झांसी को 'हड़प की नीति' के तहत हड़पने की कोशिश करते हैं और फिर झांसी की रानी ऐलान कर देती है कि वह अपनी झांसी किसी को नहीं देगी. फिल्म की कहानी कनेक्ट नहीं कर पाती है और फर्स्ट हाफ में ढेर सारे गाने और स्लो स्टोरी तंग करती है. झांसी की रानी (Jhansi Ki Rani) के बचपन को दिखाया नहीं गया है. दूसरे हाफ में जंग शुरू होने पर फिल्म जोश भरती है. लेकिन पूरी फिल्म अति नाटकीयता की वजह ये स्टेज प्ले जैसी लगने लगती है. सीन रिपीटिशन भी तंग करता है.
'मणिकर्णिकाः द क्वीन ऑफ झांसी (Manikarnika: The Queen of Jhansi)' में कंगना रनौत (Kangana Ranaut) रानी लक्ष्मीबाई के किरदार में जमती हैं, लेकिन कई बार एक्सप्रेशंस ओवर हो जाते हैं और वहां मजा बिगड़ जाता है. फिर देशभक्ति का रंग कुछ ज्यादा मात्रा में दिखाने के चक्कर में भी एक्सप्रेशंस और एक्टिंग दोनों ही पटरी से उतर जाते हैं. झांसी की रानी का अंत बहुत तंग करता है क्योंकि हमने जिस झांसी की रानी के बारे में पढ़ा है, वह अंग्रेजों से लड़ते हुए घायल होने के बाद गंगादास के आश्रम में जाकर दम तोड़ती है. लेकिन 'मणिकर्णिकाः द क्वीन ऑफ झांसी' में जो अंत दिखाया गया है, वह थोड़ा तंग करता है. फिल्म में अंकिता लोखंडे और अतुल कुलकर्णी भी है और उन्होंने भी ठीक-ठाक एक्टिंग की है.
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'मणिकर्णिकाः द क्वीन ऑफ झांसी (Manikarnika: The Queen of Jhansi)' के डायलॉग प्रसून जोशी ने लिखे है, और वे बिल्कुल दिल को छूने का काम नहीं करते हैं. फिल्म के सॉन्ग्स के मामले में भी प्रसून जोशी पूरी तरह चूक गए हैं. 'मणिकर्णिकाः द क्वीन ऑफ झांसी' के गाने फिल्म के फ्लो को तोड़ते हैं और फर्स्ट हाफ में तो वे उकताने का काम करते हैं. 'मणिकर्णिकाः द क्वीन ऑफ झांसी' का बजट लगभग 100 करोड़ रुपये बताया जाता है, लेकिन कमजोर डायरेक्शन और बचकानी एक्टिंग की वजह से 'झांसी की रानी' की बायोपिक निराश करती है और दिल तोड़कर रख देती है.
रेटिंगः 1.5/5 स्टार
डायरेक्टरः कंगना रनौत और राधा कृष्णा जगरलामुडी
कलाकारः कंगना रनौत, अंकिता लोखंडे, अतुल कुलकर्णी और जीशान अयूब
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