लाखों लोगों के फैन रहे इरफान खान खुद विनोद खन्ना के फैन रहे हैं (फाइल फोटो)
मुंबई:
अभिनेता इरफ़ान खान ने एनडीटीवी के प्रोग्राम 'स्पॉटलाइट' पर अभिनेता विनोद खन्ना को याद करते हुए उनकी जीवनशैली को शानदार बताते हुए कहा कि वे विनोद खन्रा के जीवन से बहुत प्रभावित रहे हैं.
इरफ़ान खान ने कहा, ''विनोद खन्ना साहब को एक गॉड-गिफ्ट मिला था वह था उनकी खूबसूरती थी. उन्होंने जिस तरह अपनी ज़िंदगी जी, वह क़ाबिल-ए-तारीफ़ है. मैं उन पर और फ़िदा तब हुआ जब करियर की ऊंचाई पर पहुंचकर वे अपनी ज़िंदगी का मक़सद समझने के लिए, भगवान् को समझने निकल गए. तो ये जो फैसला है वह कहीं न कहीं आप पर असर करता है. ज़िंदगी क्या है, ये कैसी पहेली है, भगवान क्या हैं, मैं क्या हूं, क्यों हूं, अगर ये ढूंढने आप निकल गए तो वह खोज आप पर असर करती है और दर्शाता है की आप किस तरह के इंसान हैं.''
कहा जाता है कि अगर विनोद खन्ना ओशो आश्रम न जाते तो आने वाले वक्त में वे अमिताभ बच्चन के स्टारडम को फीका कर देते.
1987 से 1994 में विनोद खन्ना बॉलीवुड के सबसे मंहगे सितारों में से एक थे और उस समय वह दूसरे सबसे ज्यादा महंगे अभिनेता थे. अपने करियर की ऊंचाई पर होने के बावजूद विनोद खन्ना ने फिल्मी दुनिया से संन्यास ले लिया और ओशो के अनुयायी बन गए. कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विनोद संन्यास लेकर अमेरिका चले गए और ओशो के साथ करीब 5 साल गुजारे.
इरफ़ान खान ने कहा, ''विनोद खन्ना साहब को एक गॉड-गिफ्ट मिला था वह था उनकी खूबसूरती थी. उन्होंने जिस तरह अपनी ज़िंदगी जी, वह क़ाबिल-ए-तारीफ़ है. मैं उन पर और फ़िदा तब हुआ जब करियर की ऊंचाई पर पहुंचकर वे अपनी ज़िंदगी का मक़सद समझने के लिए, भगवान् को समझने निकल गए. तो ये जो फैसला है वह कहीं न कहीं आप पर असर करता है. ज़िंदगी क्या है, ये कैसी पहेली है, भगवान क्या हैं, मैं क्या हूं, क्यों हूं, अगर ये ढूंढने आप निकल गए तो वह खोज आप पर असर करती है और दर्शाता है की आप किस तरह के इंसान हैं.''
कहा जाता है कि अगर विनोद खन्ना ओशो आश्रम न जाते तो आने वाले वक्त में वे अमिताभ बच्चन के स्टारडम को फीका कर देते.
1987 से 1994 में विनोद खन्ना बॉलीवुड के सबसे मंहगे सितारों में से एक थे और उस समय वह दूसरे सबसे ज्यादा महंगे अभिनेता थे. अपने करियर की ऊंचाई पर होने के बावजूद विनोद खन्ना ने फिल्मी दुनिया से संन्यास ले लिया और ओशो के अनुयायी बन गए. कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विनोद संन्यास लेकर अमेरिका चले गए और ओशो के साथ करीब 5 साल गुजारे.
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