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This Article is From Mar 01, 2018

Holi 2018: 'हम से नज़र मिलाइए होली का रोज़ है', पढ़ें मशहूर शायरों की 3 फेमस शायरियां

होली के मौके पर जब रंग लोगों पर चढ़ जाता है तो इस मौके पर शेर-ओ-शायरी सुनने-सुनाने का दौर चल जाता है.

Holi 2018: 'हम से नज़र मिलाइए होली का रोज़ है', पढ़ें मशहूर शायरों की 3 फेमस शायरियां
प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:

होली के मौके पर जब रंग लोगों पर चढ़ जाता है तो इस मौके पर शेर-ओ-शायरी सुनने-सुनाने का दौर चल जाता है. मशहूर शायरों ने भी रंगों का त्योहार होली पर शायरियां लिखीं है, जिन्हें हम बॉलीवुड-भोजपुरी फिल्मों के गानों में सुनते आए हैं. आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी होली के मौके पर शायरी लिख चुके हैं. उन्होंने 'गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में' लिखी, जो आज भी लोग इसे होली के मौके पर पढ़ना-सुनना पसंद करते हैं. वहीं नज़ीर बनारसी की 'अगर आज भी बोली-ठोली न होगी, तो होली ठिकाने की होली न होगी' और जूलियस नहीफ़ देहलवी की 'हम से नज़र मिलाइए होली का रोज़ है' काफी प्रचलित है.

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होली के मौके पर पढ़ें मशहूर शायरों की शायरियां

भारतेंदु हरिश्चंद्र

गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में 
बुझे दिल की लगी भी तो ऐ मेरे यार होली में 
नहीं ये है गुलाल-ए-सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे 
ये आशिक़ की है उमड़ी आह-ए-आतिश-बार होली में 
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो 
मनाने दो मुझे भी जान-ए-मन त्यौहार होली में 
'रसा' गर जाम-ए-मय ग़ैरों को देते हो तो मुझ को भी 
नशीली आंख दिखला कर करो सरशार होली में

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नज़ीर बनारसी

अगर आज भी बोली-ठोली न होगी 
तो होली ठिकाने की होली न होगी 

बड़ी गालियां देगा फागुन का मौसम 
अगर आज ठट्ठा ठिठोली न होगी 

वो खोलेंगे आवारा मौसम के झोंके 
जो खिड़की शराफ़त ने खोली न होगी 

है होली का दिन कम से कम दोपहर तक 
किसी के ठिकाने की बोली न होगी 

अभी से न चक्कर लगा मस्त भँवरे 
कली ने अभी आँख खोली न होगी 

ये बूटी परी बन के उड़ने लगेगी 
ज़रा घोलिए फिर से घोली न होगी 

इसी जेब में होगी फ़ित्ने की पुड़िया 
ज़रा फिर टटोलो टटोली न होगी 

'नज़ीर' आज आएँगे मिलने यक़ीनन 
न आए तो आज उन की होली न होगी 


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जूलियस नहीफ़ देहलवी

हम से नज़र मिलाइए होली का रोज़ है 
तीर-ए-नज़र चलाइए होली का रोज़ है 
बढ़िया शराब लाइए होली का रोज़ है 
ख़ुद पीजिए पिलाइए होली का रोज़ है 
पर्दा ज़रा उठाइए होली का रोज़ है 
बे-ख़ुद हमें बनाइए होली का रोज़ है 
संजीदा क्यूँ हुए मिरी सूरत को देख कर 
सौ बार मुस्कुराइए होली का रोज़ है 
यूँ तो तमाम उम्र सताया है आप ने 
लिल्लाह न अब सताइए होली का रोज़ है 
बच्चे गली में बैठे हैं पिचकारियाँ लिए 
बच बच के आप जाइए होली का रोज़ है 
दुनिया ये जानती है ग़ज़ल-गो 'नहीफ़' हैं 
उन की ग़ज़ल सुनाइए होली का रोज़ है 


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