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This Article is From Dec 14, 2016

50 बरस बाद भी उनके गीत फिजाओं में तैर रहे, 'गुलजार' ने कहा सर्वश्रेष्‍ठ गीतकार

50 बरस बाद भी उनके गीत फिजाओं में तैर रहे, 'गुलजार' ने कहा सर्वश्रेष्‍ठ गीतकार
गुलजार (फाइल फोटो)
मशहूर गीतकार शैलेंद्र को आज दुनिया से गए 50 बरस हो गए हैं. आधी सदी गुजरने के बावजूद उनके खूबसूरत गीत आज भी लोगों के दिलों में राज करते हैं. 1950-60 के दौर में शैलेंद्र के खूबसूरत बोल, शंकर-जयकिशन की धुन और राज कपूर की अदाकारी ने धूम मचा दी थी. शैलेंद्र के 'आवारा हूं' जैसे गीतों ने तो हिंदी सिनेमा को विदेश में पहचान दिलाने में भूमिका निभाई. कहा जाता है कि हिंदी सिनेमा में बेहद सरल शब्‍दों में सर्वाधिक भावप्रवण और प्रभावी गीत उन्‍होंने ही रचे.

'बरसात', 'आवारा', 'श्री 420', 'अनाड़ी', 'जंगली', 'गाइड', 'मधुमती' और 'तीसरी कसम' में उनके गीतों ने  ऐसा शमां बांधा कि कई लोगों ने गीतकार बनने का निश्‍चय किया. संभवतया इन्‍हीं वजहों से मशहूर गीतकार 'गुलजार' ने उनको हिंदी सिनेमा का सर्वश्रेष्‍ठ गीतकार कहा.

राज कपूर से दोस्‍ती
30 अगस्‍त, 1921 को जन्‍मे शैलेंद्र का असली नाम शंकरदास केसरीलाल था. उनका जन्‍म तो रावलपिंडी में हुआ लेकिन परवरिश मथुरा में हुई. उनकी बचपन से ही कविताएं लिखने में रुचि थी और इसी कड़ी में वह 1947 में मुंबई पहुंचे. कहा जाता है कि एक मुशायरे में वह अपनी 'जलता है पंजाब' कविता का पाठ कर रहे थे तो वहां मौजूद राज कपूर उनसे बेहद प्रभावित हुई. उन्‍होंने अपनी आने वाली फिल्‍म 'आग' (1948) में उस गाने के इस्‍तेमाल की गुजारिश की. शैलेंद्र ने उस ऑफर को ठुकरा दिया.

उसके बाद पैसे की जरूरत होने पर उन्‍होंने खुद ही राज कपूर से संपर्क किया. राज कपूर ने 'बरसात' (1949) फिल्‍म के दो गाने उनको लिखने के लिए दिए. उस फिल्‍म के संगीतकार शंकर-जयकिशन थे. उसके बाद इस टीम ने मिलकर एक से एक कामयाब फिल्‍में बनाईं. 1951 में 'आवारा' फिल्‍म के लिए लिखा उनका गीत 'आवारा हूं' उस वक्‍त देश से बाहर सबसे ज्‍यादा सराहा जाने वाला हिंदुस्‍तानी फिल्‍मी गीत बना.   

'तीसरी कसम' का किस्‍सा
निर्माता के तौर पर इस फिल्‍म के निर्माण में शैलेंद्र ने जबर्दस्‍त निवेश किया. 1966 में रिलीज हुई इस फिल्‍म के मुख्‍य किरदार राज कपूर और वहीदा रहमान थे. बासु भट्टाचार्य ने फिल्‍म का निर्देशन किया. इस फिल्‍म को उस साल का सर्वश्रेष्‍ठ फीचर फिल्‍म का राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार मिला लेकिन कमर्शियल लिहाज से फिल्‍म को फायदा नहीं मिला. खराब स्‍वास्‍थ्‍य और इस सदमे से वह उबर नहीं पाए और 16 दिसंबर, 1966 को महज 43 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया.

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