फिल्म अभिनेता Farouque Shaikh के जन्मदिवस पर गूगल ने डूडल बनाया है.
नई दिल्ली:
फिल्म 'साथ-साथ' का गीत 'तुमको देखा तो ये खयाल आया...' बहुत मशहूर हुआ था. आज यानी कि 25 मार्च को गूगल को इस फिल्म के हीरो Farouque Shaikh का उनके जन्मदिन पर खयाल आया. गूगल ने उनको समर्पित अपना डूडल बनाया है. समानांतर सिनेमा के दौर में फिल्मों में आए इस रंगमंच के कलाकार ने सफलता के झंडे गाड़े. फारुख शेख का जन्म 25 दिसंबर 1948 को गुजरात के अमरोली में हुआ था. यदि वे आज होते तो 70 साल के हो जाते. अभिनय में महारथ रखने वाले फारुख शेख ने 27 दिसंबर 2013 को दुबई में अचानक ही दुनिया को अलविदा कह दिया. उन्हें दिल का दौरा पड़ा था.
Farouque Shaikh: पहली फिल्म के लिए मिले थे 750 रुपये, जानें फारुख शेख से जुड़ी 5 खास बातें
सत्तर और अस्सी के दशक में जब हिन्दी सिनेमा में हीरो को एंग्री यंगमैन के रूप में पसंद किया जाने लगा था, कमोबेश उसी दौर में रियलिस्टिक समानांतर सिनेमा को भी दर्शकों की सराहना मिलने लगी थी. नाट्य संस्था 'इप्टा' में कई सालों तक सक्रिय रहने के बाद फारुख शेख ने भी सिनेमा का रुख किया. सन 1973 में फिल्म 'गर्म हवा' से उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी. बाद में उन्होंने कला फिल्मों के साथ-साथ मुख्य धारा की फिल्मों में भी अपनी अलग पहचान बनाई. उमराव जान,चश्मे बद्दूर, नूरी, शतरंज के खिलाड़ी, माया मेम साब, कथा, बाजार, रंग बिरंगी जैसी कई फिल्में हैं जिनमें फारुख शेख ने अलग-अलग किरदारों में अपने बेहतरीन अभिनय का लोहा मनवाया.
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फारुख एक ऐसे अभिनेता के तौर पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे, जो बेहद जटिल किरदारों को भी बेहद सहजता से निभा सकता है. उनकी रियलिस्टिक एक्टिंग हमेशा यादगार बन जाती थी. फिल्म 'उमराव जान' पूरी तरह हीरोइन रेखा पर केंद्रित थी. इसके बावजूद दर्शक फारुख के नवाब सुल्तान के किरदार को भूल नहीं सकते. वे अपनी पहली फिल्म 'गरम हवा' में एक सहायक भूमिका में थे, लेकिन इसमें अपने दमदार अभिनय से ही वे अपनी सशक्त छाप छोड़ने में कामयाब रहे.
याद कीजिए फिल्म 'गमन' में रोजगार की तलाश में भटकता एक टैक्सी ड्राइवर, 'चश्मे बद्दूर' का सीधा, सरल और शर्मीला नौजवान, इसी तरह 'कथा' का चालाक और धूर्त युवक वासुदेव और इसके अलावा 'माया मेम साब' में अति महत्वाकांक्षाएं रखने वाली कुछ हद तक मनोरेगी बीवी का असहाय शौहर... कितने रंग हैं इन सभी किरदारों में... फारुख शेख की अभिनय कुशलता, कैरेक्टराइजेशन में की गई मेहनत का ही नतीजा है कि ये किरदार आपको आसपास ही महसूस हो सकते हैं.
यह भी पढ़ें : मशहूर अभिनेता फारुख शेख का दुबई में 65 साल की उम्र में निधन
सत्यजित रे, मुजफ्फर अली, ऋषिकेश मुखर्जी, केतन मेहता और सईं परांजपे जैसे प्रख्यात डायरेक्टरों के साथ काम करते रहे फारुख ने अपने कॉलेज के दिनों में थिएटर में काफी काम किया. वे भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के अलावा जाने-माने निर्देशक सागर सरहदी के साथ काम करते थे. शबाना आजमी न सिर्फ उनके साथ कॉलेज में पढ़ती थीं बल्कि नाटकों में साथ में काम भी करती थीं. इनकी जोड़ी ने नाटक 'तुम्हारी अमृता' के जरिए काफी शोहरत हासिल की थी. फिल्मों में फारुख और दीप्ति नवल की जोड़ी हिट रही.
फारुख शेख द्वारा अभिनीत फिल्में और टीवी सीरियल
2014 यंगिस्तान
2013 बास्टर्ड चाइल्ड
2013 क्लब 60 डॉ॰ तारीक़ ये जवानी है दीवानी, लिसन... अमाया
2012 शंघाई
2011 टेल मी ओ खुदा
2009 एक्सीडेंट ऑन हिल रोड, लाहौर
2008 सास बहू और सेंसेक्स
1997 मुहब्बत
1995 मोहिनी, अब इंसाफ़ होगा, मेरा दामाद, सुखेर आशा (बांग्ला)
1993 माया मेम साब
1992 गुंजन
1991 कहकशां (टीवी सीरियल)
1990 जान-ए-वफ़ा, अग्नि कन्या, वफ़ा
1989 दूसरा कानून (टीवी सीरियल), पिकनिक(टीवी सीरियल) तूफ़ान
1988 पीछा करो , बीवी हो तो ऐसी, आखिरी दांव (टीवी सीरियल) ,घरवाली बाहरवाली
1987 राजलक्ष्मी, महानंदा
1986 कोग्रेगेशन, एक पल, उद्धार, खेल मुहब्बत का, रात के बाद
1985 सलमा, फासले
1984 अब आएगा मज़ा, यहां वहां, लाखों की बात, लोरी
1983 कथा, किसी से न कहना, रंग बिरंगी
1982 अपरूपा/अपेक्षा (असमिया/हिंदी), बाजार, साथ-साथ
1981 उमराव जान , चश्मे बद्दूर
1980 मैं और मेरी तनहाई,
1979 नूरी
1978 गमन
1977 शतरंज के खिलाड़ी
1974 मेरे साथ चल, गर्म हवा\
VIDEO : 20 साल बाद साथ-साथ आए फारुख और दीप्ति
Farouque Shaikh: पहली फिल्म के लिए मिले थे 750 रुपये, जानें फारुख शेख से जुड़ी 5 खास बातें
सत्तर और अस्सी के दशक में जब हिन्दी सिनेमा में हीरो को एंग्री यंगमैन के रूप में पसंद किया जाने लगा था, कमोबेश उसी दौर में रियलिस्टिक समानांतर सिनेमा को भी दर्शकों की सराहना मिलने लगी थी. नाट्य संस्था 'इप्टा' में कई सालों तक सक्रिय रहने के बाद फारुख शेख ने भी सिनेमा का रुख किया. सन 1973 में फिल्म 'गर्म हवा' से उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी. बाद में उन्होंने कला फिल्मों के साथ-साथ मुख्य धारा की फिल्मों में भी अपनी अलग पहचान बनाई. उमराव जान,चश्मे बद्दूर, नूरी, शतरंज के खिलाड़ी, माया मेम साब, कथा, बाजार, रंग बिरंगी जैसी कई फिल्में हैं जिनमें फारुख शेख ने अलग-अलग किरदारों में अपने बेहतरीन अभिनय का लोहा मनवाया.
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फारुख एक ऐसे अभिनेता के तौर पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे, जो बेहद जटिल किरदारों को भी बेहद सहजता से निभा सकता है. उनकी रियलिस्टिक एक्टिंग हमेशा यादगार बन जाती थी. फिल्म 'उमराव जान' पूरी तरह हीरोइन रेखा पर केंद्रित थी. इसके बावजूद दर्शक फारुख के नवाब सुल्तान के किरदार को भूल नहीं सकते. वे अपनी पहली फिल्म 'गरम हवा' में एक सहायक भूमिका में थे, लेकिन इसमें अपने दमदार अभिनय से ही वे अपनी सशक्त छाप छोड़ने में कामयाब रहे.
याद कीजिए फिल्म 'गमन' में रोजगार की तलाश में भटकता एक टैक्सी ड्राइवर, 'चश्मे बद्दूर' का सीधा, सरल और शर्मीला नौजवान, इसी तरह 'कथा' का चालाक और धूर्त युवक वासुदेव और इसके अलावा 'माया मेम साब' में अति महत्वाकांक्षाएं रखने वाली कुछ हद तक मनोरेगी बीवी का असहाय शौहर... कितने रंग हैं इन सभी किरदारों में... फारुख शेख की अभिनय कुशलता, कैरेक्टराइजेशन में की गई मेहनत का ही नतीजा है कि ये किरदार आपको आसपास ही महसूस हो सकते हैं.
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सत्यजित रे, मुजफ्फर अली, ऋषिकेश मुखर्जी, केतन मेहता और सईं परांजपे जैसे प्रख्यात डायरेक्टरों के साथ काम करते रहे फारुख ने अपने कॉलेज के दिनों में थिएटर में काफी काम किया. वे भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के अलावा जाने-माने निर्देशक सागर सरहदी के साथ काम करते थे. शबाना आजमी न सिर्फ उनके साथ कॉलेज में पढ़ती थीं बल्कि नाटकों में साथ में काम भी करती थीं. इनकी जोड़ी ने नाटक 'तुम्हारी अमृता' के जरिए काफी शोहरत हासिल की थी. फिल्मों में फारुख और दीप्ति नवल की जोड़ी हिट रही.
फारुख शेख द्वारा अभिनीत फिल्में और टीवी सीरियल
2014 यंगिस्तान
2013 बास्टर्ड चाइल्ड
2013 क्लब 60 डॉ॰ तारीक़ ये जवानी है दीवानी, लिसन... अमाया
2012 शंघाई
2011 टेल मी ओ खुदा
2009 एक्सीडेंट ऑन हिल रोड, लाहौर
2008 सास बहू और सेंसेक्स
1997 मुहब्बत
1995 मोहिनी, अब इंसाफ़ होगा, मेरा दामाद, सुखेर आशा (बांग्ला)
1993 माया मेम साब
1992 गुंजन
1991 कहकशां (टीवी सीरियल)
1990 जान-ए-वफ़ा, अग्नि कन्या, वफ़ा
1989 दूसरा कानून (टीवी सीरियल), पिकनिक(टीवी सीरियल) तूफ़ान
1988 पीछा करो , बीवी हो तो ऐसी, आखिरी दांव (टीवी सीरियल) ,घरवाली बाहरवाली
1987 राजलक्ष्मी, महानंदा
1986 कोग्रेगेशन, एक पल, उद्धार, खेल मुहब्बत का, रात के बाद
1985 सलमा, फासले
1984 अब आएगा मज़ा, यहां वहां, लाखों की बात, लोरी
1983 कथा, किसी से न कहना, रंग बिरंगी
1982 अपरूपा/अपेक्षा (असमिया/हिंदी), बाजार, साथ-साथ
1981 उमराव जान , चश्मे बद्दूर
1980 मैं और मेरी तनहाई,
1979 नूरी
1978 गमन
1977 शतरंज के खिलाड़ी
1974 मेरे साथ चल, गर्म हवा\
VIDEO : 20 साल बाद साथ-साथ आए फारुख और दीप्ति
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