अनुपम खेर को फिल्म और टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) के अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के एक दिन बाद, संस्थान के छात्रों की एसोसिएशन ने पुणे के प्रतिष्ठित संस्थान के नौ प्रमुख मुद्दों पर दिग्गज अभिनेता का ध्यान आकर्षित किया. छात्र संघ ने एक खुले पत्र में कहा, "प्रिय महोदय, जब आप बधाई संदेश स्वीकार करने में व्यस्त होंगे, हम इस प्रतिष्ठित संस्थान के मुद्दों पर आपका ध्यान दिलाना चाहेंगे. इसके अलावा, हम कुछ मुद्दों पर आपका रुख जानने को उत्सुक हैं." यह पत्र छात्र संघ के अध्यक्ष रोबिन जॉय और महासचिव रोहित कुमार द्वारा हस्ताक्षरित है, जिसे गुरुवार को एफटीआईआई विज्डम ट्री के फेसबुक पेज पर पोस्ट किया गया.
पढ़ें: पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट के छात्रों ने अनुपम खेर की नियुक्ति पर उठाए सवाल
पत्र में कहा गया है, "इस महीने के शुरुआती दौर में शुरू हुआ नया कोर्स 'फिक्शन राइटिंग फॉर टेलीविजन' में लघु कोर्स में 20 दिनों की अवधि के लिए प्रत्येक छात्र से 20,000 रुपये बतौर शुल्क लिए जा रहे हैं, जिसे हम अल्पकालिक कोर्स के लिए और साथ ही समाज के कुछ वर्गों के छात्रों के लिए भी काफी ज्यादा शुल्क समझते हैं."
पत्र में कहा गया, "एक सरकारी संस्थान जो सभी वर्गों के छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के लिए है, वह निधि उत्पादन के एजेंडे से प्रेरित नहीं होना चाहिए, वर्तमान में इन पाठ्यक्रमों का उद्देश्य वहीं होना चाहिए जो राष्ट्र के दूसरे सरकारी संस्थानों/विश्वविद्यालयों का है."
पत्र में कहा गया है कि ओपन डे और स्थापना दिवस जैसे सम्मेलनों पर भारी भरकम राशि खर्च करने के बजाय, प्रशासन को बुनियादी ढांचे, उपकरणों की खरीद और मरम्मत पर खर्च करने की जरूरत है, जो कि उनकी परियोजनाओं को समय पर पूरा करने में मदद करेगी.
इसके अलावा छात्रों को नए पाठ्यक्रम से भी समस्याएं हैं. इनके मुद्दे कुछ इस तरह हैं कि कार्यशालाओं और कक्षाओं को सेमेस्टर के दौरान कम कर दिया जाता है, जैसे कि वर्तमान में नए क्रेडिट-आधारित प्रणाली को लेकर शिक्षकों में उभरा भ्रम.
पढ़ें: FTII New Chairman: जब पेट भरने की खातिर ‘फिरंगी’ बनकर लोगों को चूना लगाते थे अनुपम खेर
छात्रों ने यह भी बताया कि कैसे 'नए पाठ्यक्रमों के हिस्से के रूप में समय-सीमाओं पर अधिक पांबदी लगा दी गई है'. पत्र के मुताबिक, जब छात्रों ने इस नए परिवर्तन पर सवाल उठाया, तो उन्हें बताया गया कि मानदंड एक समान रहेंगे और जब यह निर्णय लिया गया कि छात्रों ने इसका बहिष्कार किया है, तो 'पांच छात्रों को बिना कोई कारण बताओ नोटिस दिए निलंबित कर दिया गया'.
पत्र में कहा गया है कि संस्थान के पास कोर्स को चलाने के लिए पर्याप्त शिक्षक नहीं है जिसके कारण उनका सिलेबस प्रभावित हो रहा है. पत्र में उठाया गया आखिरी मुद्दा है, "एफटीआईआई उन फिल्म निमार्ताओं को बनाता रहा है जो विभिन्न मंचों पर काम कर रहे हैं. कुछ लोग उद्योगों में काम नहीं करना पसंद करते हैं और दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं. लेकिन विभिन्न मामलों में छात्रों को उद्योग अभ्यास को देखने के लिए कहा गया है, जहां सिनेमा को सिर्फ एक वस्तु के रूप में देखा जा रहा है, न कि एक कला के रूप में, जो बड़े मानवीय कारणों की सेवा करता है."
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पत्र में कहा गया है, "इस महीने के शुरुआती दौर में शुरू हुआ नया कोर्स 'फिक्शन राइटिंग फॉर टेलीविजन' में लघु कोर्स में 20 दिनों की अवधि के लिए प्रत्येक छात्र से 20,000 रुपये बतौर शुल्क लिए जा रहे हैं, जिसे हम अल्पकालिक कोर्स के लिए और साथ ही समाज के कुछ वर्गों के छात्रों के लिए भी काफी ज्यादा शुल्क समझते हैं."
पत्र में कहा गया, "एक सरकारी संस्थान जो सभी वर्गों के छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के लिए है, वह निधि उत्पादन के एजेंडे से प्रेरित नहीं होना चाहिए, वर्तमान में इन पाठ्यक्रमों का उद्देश्य वहीं होना चाहिए जो राष्ट्र के दूसरे सरकारी संस्थानों/विश्वविद्यालयों का है."
पत्र में कहा गया है कि ओपन डे और स्थापना दिवस जैसे सम्मेलनों पर भारी भरकम राशि खर्च करने के बजाय, प्रशासन को बुनियादी ढांचे, उपकरणों की खरीद और मरम्मत पर खर्च करने की जरूरत है, जो कि उनकी परियोजनाओं को समय पर पूरा करने में मदद करेगी.
इसके अलावा छात्रों को नए पाठ्यक्रम से भी समस्याएं हैं. इनके मुद्दे कुछ इस तरह हैं कि कार्यशालाओं और कक्षाओं को सेमेस्टर के दौरान कम कर दिया जाता है, जैसे कि वर्तमान में नए क्रेडिट-आधारित प्रणाली को लेकर शिक्षकों में उभरा भ्रम.
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छात्रों ने यह भी बताया कि कैसे 'नए पाठ्यक्रमों के हिस्से के रूप में समय-सीमाओं पर अधिक पांबदी लगा दी गई है'. पत्र के मुताबिक, जब छात्रों ने इस नए परिवर्तन पर सवाल उठाया, तो उन्हें बताया गया कि मानदंड एक समान रहेंगे और जब यह निर्णय लिया गया कि छात्रों ने इसका बहिष्कार किया है, तो 'पांच छात्रों को बिना कोई कारण बताओ नोटिस दिए निलंबित कर दिया गया'.
पत्र में कहा गया है कि संस्थान के पास कोर्स को चलाने के लिए पर्याप्त शिक्षक नहीं है जिसके कारण उनका सिलेबस प्रभावित हो रहा है. पत्र में उठाया गया आखिरी मुद्दा है, "एफटीआईआई उन फिल्म निमार्ताओं को बनाता रहा है जो विभिन्न मंचों पर काम कर रहे हैं. कुछ लोग उद्योगों में काम नहीं करना पसंद करते हैं और दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं. लेकिन विभिन्न मामलों में छात्रों को उद्योग अभ्यास को देखने के लिए कहा गया है, जहां सिनेमा को सिर्फ एक वस्तु के रूप में देखा जा रहा है, न कि एक कला के रूप में, जो बड़े मानवीय कारणों की सेवा करता है."
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