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This Article is From Nov 20, 2020

Book Review: सादतपुर के हरिपाल त्यागी

Book Review: आधारशिला पत्रिका ने 2004 में भी हरिपाल त्यागी की महत्ता को पहचानते हुए उन पर अंक निकाला था. हिंदी प्रकाशन की दुनिया में हरिपाल त्यागी के बनाए बहुत सारे चित्रों से किताबों को सुसज्जित किया.

Book Review: सादतपुर के हरिपाल त्यागी
Book Review: सादतपुर के हरिपाल त्यागी
नई दिल्ली:

बड़ी मुखानी, हल्द्वानी, नैनीताल उत्तराखंड से निकलती आधारशिला पत्रिका अपने को साहित्य, कला, संस्कृति की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका कहती है. अपने दो सौवें अंक को विश्वश्रमिक दिवस 2019 को कला परिदृश्य से अनंत यात्रा पर निकल जानेवाले कलाकार हरिपाल त्यागी पर केंद्रित किया. आधारशिला पत्रिका ने 2004 में भी हरिपाल त्यागी की महत्ता को पहचानते हुए उन पर अंक  निकाला था. हिंदी प्रकाशन की दुनिया में हरिपाल त्यागी के बनाए बहुत सारे चित्रों से किताबों को सुसज्जित किया. बतौर चित्रकार उनकी छवि अग्रणी चित्रकारों में भले न हों, लेकिन हिंदी समाज में उनका नाम आदर से लिया जाता रहा है. वे बनारस से निकलकर सादतपुर (दिल्ली) आ बसे थे. 

सुधा अरोड़ा उन्हें याद करते हुए किताब में लिखती हैं कि साहित्यिक परिदृश्य पर उनके चित्र, चाहे वह किताबों के कवर हों या पत्रिकाओं के मुखपृष्ठ या सिर्फ पेंसिल से बनाई आकृतियां और रेखांकन. हरिपाल त्यागी के नाम के बगैर भी वे पहचाने जा सकते थे. बिल्कुल वैसे ही, जैसे मनजीत बाबा, प्रभु जोशी या अशोक भौमिक के चित्र. सादतपुर एक ऐसी जगह है जहां देशभर के गांवों से अपनी रोजीरोटी की तलाश में आए नौजवान साहित्यकारों और कलाकारों ने अपना घर बसाया. इन लोगों ने वहां रहते हुए शहरी होने से लगभग इंकार किया. वे वहां एक ऐसे बड़े गांव की तरह रहते रहे, जहां देश के हर राज्यों का प्रतिनिधित्व मिल जाता हो. बाबा नागार्जुन और अभी हाल ही में गुजरे विष्णुचंद्र शर्मा जैसे वरिष्ठों का भी पता-ठिकाना वहीं था. हरिपाल त्यागी को भी एक मध्यवित्तिय जीवन हासिल करने के लिए संघर्ष का रास्ते से गुज़रना पड़ा. 

कमलिनी दत्त कहती हैं कि दिल्ली एक क्रूर शहर है जो हर गतिविधि को व्यापार में बदलना जानता है. यह शहर नाम और उपाधि को मान्यता देता है, असली कलाकार को कम. ऐसा नहीं कि  अच्छे कलाकार को शोहरत नहीं मिलती, लेकिन कला व्यापार की शक्ति वृत्त में आप सायास या अनायास दाखिल हो गए हों तो नाम से ही कला की बोली लग जाएगी. आपने (यानि हरिपाल त्यागी) सायास ने उस वृत्त को दूर रखा तो आप हाशिए पर रह जाएंगे. 

कमलिनी दत्त खुद भी नृत्यांगना हैं और आकाशवाणी और कला क्षेत्र से गहरे जुड़ी हैं. कवि और आलोचक विष्णुचंद्र शर्मा और विश्वनाथ त्रिपाठी से क्रमशः सादतपुर के ही महेश दर्पण और रमेश प्रजापति ने स्मृति वार्ता की है. विश्वनाथ त्रिपाठी तो हरिपाल त्यागी को भारतीय चित्रकारी के वान गॉग मानते हुए कहते हैं कि उनके कला मूल्य और जीवन मूल्य के बीच कोई फांक नहीं था. मुक्तिबोध, विष्णुचंद्र शर्मा और हरिपाल त्यागी की अंतर्सबंधता भी गजब की है. इन तीनों ने इसी धराधाम दिल्ली में अंतिम सांस ली. मुक्तिबोध के पहले जीवनी लेखक विष्णुचंद्र शर्मा, मुक्तिबोध रचनावली के कवर पर मुक्तिबोध के बीड़ी पीते प्रसिद्ध चित्र के चित्रकार हरिपाल त्यागी ही थे और तीनों को आजीवन मध्यवित्तिय जीवन-संघर्ष झेलना पड़ा. 

हरिपाल त्यागी की मृत्यु के बाद ही महेश दर्पण ने विष्णुचंद्र शर्मा से बातचीत की थी, जिसमें उन्होंने कहा कि उसके जाने के बाद मैं तीन रात सो नहीं सका. हर समय उसी पर सोचता रहा. फिर यह कविता लिखी 'हँसी सूख गई है उसके बाद'. आप इस कविता को लगाव का पैमाना मानें तो देख पाएंगे कि उम्र में एक साल छोटे हरिपाल त्यागी के मित्र विष्णुचंद्र शर्मा ने भी डेढ़ साल के भीतर ही अनंत की यात्रा पर निकल गए.

आधारशिला पत्रिका के चित्रकार-कवि-कथाकार हरिपाल त्यागी पर एकाग्र विशेषांक का संपादन वाचस्पति ने किया है, वे बनारस में रहते हैं. इस अंक में सादतपुर के साहित्यकारों और चित्रकारों की स्मृतियां तो दर्ज की ही गई हैं, साथ ही हरिपाल त्यागी के चित्रों और रेखांकनों को भी पर्याप्त जगह दी गयी है. कलाकार के पूरे जीवन को संपूर्णता के साथ पाठक के सामने रखने में संपादक सफल रहे हैं.
 

आधारशिला वर्ष 36, अंक (199-200)

हरिपाल त्यागी पर एकाग्र

अतिथि संपादक : वाचस्पति

बड़ी मुखानी, हल्द्वानी

नैनीताल– 263139
 उत्तराखंड

मूल्य- ₹ 125


 

- ₹ 125


 

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