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This Article is From Aug 20, 2021

200 Halla Ho Review: अत्याचार के खिलाफ महिलाओं का हल्ला बोल, जानें कैसी है फिल्म

सार्थक दास गुप्ता द्वारा निर्देशित और लिखी गई फिल्म 200 हल्ला हो जी 5 पर रिलीज हो गई है. यह फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है. जानें कैसी है फिल्म...

200 Halla Ho Review: अत्याचार के खिलाफ महिलाओं का हल्ला बोल, जानें कैसी है फिल्म
200 Halla Ho Review: जब अत्याचार के खिलाफ महिलाओं ने उठाई अपनी आवाज
नई दिल्ली:

सार्थक दास गुप्ता द्वारा निर्देशित और लिखी गई फिल्म 200 हल्ला हो ज़ी 5 पर 20 अगस्त को रिलीज होने जा रही है. यह फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है. इस फिल्म की कहानी बताने से पहले बता दें कि  इस फिल्म में कितने अहम किरदार हैं और इन किरदारों को कौन कर रहा है.

अहम किरदार में आएंगे ये स्टार्स नजर

अमोल पालेकर: इस फिल्म में विट्ठल दांगड़े सीनियर रिटायर्ड जज की अहम भूमिका में नजर आ रहे हैं. 

बरुण सोबती: उमेश जोशी के किरदार में नजर आएंगे जो पेशे से एक वकील हैं और जरूरतमंद लोगों के लिए बिना फीस लिए केस लड़ते हैं.

रिंकू राजगुरु: आशा के किरदार में नजर आ रही हैं जो सभी महिलाओं के लिए आवाज उठाती हैं.

साहिल खट्टर: बल्ली चौधरी के किरदार में नजर आएंगे जो एक गैंगस्टर है.

सलोनी बत्रा:  जर्नलिस्ट के किरदार में हैं. 

किस पर आधारित है यह फिल्म और कौन है ये बल्ली चौधरी ?
आपको बता दें कि बल्ली चौधरी जिस पर बलात्कारी, हत्यारा होने के साथ ही कई अन्य संगीन इलजाम हैं. बल्ली ने बस्ती की दलित महिलाओं को इतना प्रताड़ित कर देता है कि उन महिलाओं को उसे सजा देने के लिए कानून अपने हाथों में लेना पड़ा. 

क्या है फिल्म की कहानी 
फिल्म की कहानी भीड़ और चिल्लाती हुई महिलाओं से शुरु होती है जिसके बाद पुलिस स्टेशन और कोर्ट रूम का सीन देखने को मिलता है. नाक पर रुमाल बांधें पुलिस वाले जब कोर्ट रूम जाते हैं तब उन्हें बल्ली चौधरी की कटी लाश मिलती है. बल्ली को मारते समय उसके इतने टुकड़े कर दिए जाते हैं कि खुद पुलिस वाले यह देखकर हैरान रह जाते हैं. यह एक छोटा मोटा हादसा नहीं था बल्कि नागपुर हत्याकांड के नाम से सनसनी बन जाता है. पुलिस वालों के लिए इसे हत्या कहना बेहद कठिन था क्योंकि कोर्ट रूम में पुलिस कस्टडी के अंदर 200 महिलाओं के झुंड ने बल्ली को मौत के घाट उतार दिया था. इससे प्रशासन के ऊपर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया था. इसी बीच इंस्पेक्टर पाटिल राही नगर की दलित महिलाओं का नाम लेते हैं. जो इस कहानी को नया रुख देता है. 

खड़े होते हैं कई सवाल
बल्ली की मौत के बाद पुलिस बार बार राही नगर की महिलाओं पर बल्ली की हत्या का प्रेशर डालती है. 5 महिलाओं को पुलिस पकड़ कर ले जाती है जो मारना शुरू कर देती है. जिसके बाद अमोल पालेकर रिटायर्ड जज एक फैक्ट चैक कमेटी का हिस्सा बनते हैं और महिलाओं को न्याय दिलवाने की कोशिश करते हैं, लेकिन राही नगर की दलित महिलाएं इस फैक्ट चैक कमेटी का साथ नहीं देती हैं और पाचों महिलाओं को कोर्ट उम्र कैद की सजा सुना देती है. इस दौरान रिटायर्ड जज को एक ही बात सताती है कि आखिर ये 5 महिलाएं ही क्यों? जबकि बल्ली को 200 महिलाओं के झुंड ने मारा. सभी का चेहरा काले कपड़े से ढका  था, लेकिन इन महिलाओं ने बल्ली को मारा ही क्यो ? जबकि वह पहले से ही वह पुलिस कस्टडी में था.  जिसके बाद रिटायर्ड जज राही नजर खुद जाकर मामले की छानबीन करते हैं.  

आखिर क्या है राही नगर की महिलाओं का राज 
राही नगर में रहने वाले लोग दलित के साथ ही गरीबी का बोझ भी झेल रहे होते हैं. ऐसे में बल्ली चौधरी चौराहे पर बैठकर महिलाओं और लड़कियों पर अपनी बुरी निगाहें रखता था. हैरानी की बात तो तब थी जब उसने बस्ती की एक महिला के साथ बलात्कार किया और उसे सरेआम बेरहमी से मार दिया. उस महिला को सभी के सामने इस लिए मारा क्योंकि वह अपने हक के लिए पुलिस स्टेशन में FIR लिखवाई थी. बल्ली ने सभी महिलाओं को धमकी दी की अगर कोई भी ऐसा करता है तो उसका यही हश्र होगा. इसके बाद हर रोज हर लड़की के साथ रेप, मार काट, छेड़खानी यह सब 10 साल तक ऐसा ही चलता रहा  फिर आशा बस्ती में आती है और ऐसा हाल देख आवाज उठाती है. इतना ही नहीं वह बल्ली को सबक भी सिखाती है. जिसके बाद पुलिस को बल्ली को गिरफ्तार ही करना पड़ता है. 

लेकिन उन दलित महिलाओं को इस बात का अंदाजा था कि बल्ली चौधरी वापस लौट आएगा और यही सब दोबारा चलेगा जिसके बाद मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित हुई महिलाएं मौका देख बल्ली को मार देती हैं और एक नया इतिहास रचती हैं. यह सब जानने के बाद रिटायर्ड जज की भूमिका निभा रहे अमोल दलित महिलाओं का साथ देते हैं. उनके लिए कोर्ट न्याय की लड़ाई लड़ते हैं. फिल्म में आपको लगेगा का जज भी दलित होते हैं इसलिए उनका साथ दिया जबकि ऐसा नहीं है. रिटायर्ड जज ने उन दलित महिलाओं के लिए आवाज उठाई जिन्हें लोग सजा देने का तो अधिकार रखते थे, लेकिन उनके अधिकार उन्हें नहीं मानने देते थे. 

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