भारतीय सेना का 'ऑपरेशन सिंदूर' अब भी जारी है. हर ओर सेना के अद्भुत पराक्रम की चर्चा हो रही है. ऐसे वक्त में देश के युवा हमारी सेना से बहुत-कुछ प्रेरणा ले सकते हैं. खासकर वह वर्ग भी खुद को जोश से भर सकता है, जो अपने बेहतर भविष्य की खातिर किसी बड़ी परीक्षा की तैयारी में जुटा है. सेना की खूबियां किस तरह लोगों में प्रेरणा भर सकती हैं, एक-एक करके सारे पॉइंट देखते चलिए.
चुनौतियों के समय मानसिक मजबूती
22 अप्रैल, 2025. जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों का बड़ा हमला हुआ. अमनपसंद इस देश के सामने अचानक एक बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई. पीड़ितों के लिए जल्द न्याय की मांग उठने लगी. ऐसे मुश्किल वक्त में देश की सेना ने दूरदर्शिता और सूझबूझ का परिचय देते हुए संतुलन बनाए रखा. बाद में फुलप्रूफ रणनीति बनाकर, पूरी मजबूती के साथ उसका करारा जवाब दिया.
अब यहां थोड़ी देर के लिए देश के उन बच्चों के बारे में सोचिए, जो अपना करियर संवारने के लिए, कोचिंग-ट्यूशन वगैरह के लिए देश के अलग-अलग शहरों में जाते रहते हैं. इनमें से कई छात्र थोड़ी-सी विपरीत परिस्थिति देखकर हार मान बैठते हैं और कई बार गलत कदम तक उठा लेते हैं. सोचने की बात यह भी है कि सेना के सामने चुनौती कभी बताकर नहीं आती, जबकि परीक्षाओं की तिथियां अक्सर पहले से तय होती हैं. जाहिर है, हर हाल में मानसिक मजबूती कायम रखकर, रणनीति के हिसाब से चलने पर न केवल परीक्षाओं में, बल्कि जीवन की ढेर सारी चुनौतियों से पार पाना आसान हो जाता है.
अनुशासन और टाइमिंग
सेना की सबसे बड़ी ताकत है उसका अनुशासित होना. अनुशासन के साथ नियमित अभ्यास उसकी दिनचर्या का हिस्सा होता है. साथ ही जब दुश्मनों पर प्रहार का वक्त आता है, तो सटीक टाइमिंग बहुत मायने रखती है. सेना के मौजूदा अभियान में गोपनीयता, अनुशासन और परफेक्ट टाइमिंग का रोल साफ देखा जा सकता है.
ठीक इसी तरह, किसी स्टूडेंट के लिए हर दिन नियमित रूप से पढ़ाई, रोज-रोज का अभ्यास, लगातार मॉक टेस्ट से गुजरना अंतत: अच्छे परिणाम लेकर आता है. खासकर परीक्षा के दौरान सारा खेल टाइमिंग का होता है. परीक्षा में किस स्पीड से, कितने सारे सवालों को, कितनी सटीकता से हल किया गया, इसी से परिणाम तय होते हैं. शायद यही वजह है कि कई बार किसी बड़ी तैयारी को 'युद्ध-स्तर की तैयारी' भी कहा जाता है!
लक्ष्य के लिए प्रतिबद्धता
किसी भी संघर्ष में हार-जीत का फैसला बहुत हद तक इस बात पर भी निर्भर होता है कि लक्ष्य के लिए प्रतिबद्धता किस स्तर की है. कहा भी गया है कि युद्ध भले ही हथियार से लड़े जाते हैं, लेकिन हौसले से ही जीते जाते हैं. जब हौसले में कमिटमेंट जुड़ जाता है, तो जमीन पर मनचाहे नतीजे दिखने लगते हैं.
किसी स्टूडेंट के लिए भी यह बहुत जरूरी है कि परीक्षा के स्तर को समझकर, उसके नेचर को परखकर, उसमें कामयाबी पाने पर पूरा फोकस रखा जाए. उत्साह के साथ कमर कसकर आगे बढ़ने पर बड़ा लक्ष्य भी बौना हो जाता है. वही लक्ष्य, जो कभी दूर से पहाड़ जैसा नजर आ रहा था. मतलब, जज्बा सेना जैसा होना चाहिए, जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक...
चुनिंदा हिस्सों पर प्रहार
सेना को यह अच्छी तरह मालूम होता है कि दुश्मन की कमजोरियां क्या-क्या हैं और दुश्मन के किन-किन इलाकों में सबसे पहले प्रहार किया जाना चाहिए. सेना जरूरत पड़ने पर 'कैलकुलेटेड रिस्क' लेने से भी परहेज नहीं करती. इस तरह, एक बार में छोटे-छोटे, पर असरदार कदम उठाते हुए बड़ी फतह हासिल हो जाती है.
इसी तरह, कई बार स्टूडेंट के लिए पूरा सिलेबस कवर कर पाना मुश्किल होता है. खासकर परीक्षा नजदीक देखकर वे घबरा जाते हैं. ऐसे में हार मानकर बैठने की बजाए सबसे पहले आसान और चुनिंदा भागों की तैयारी की जा सकती है. धीरे-धीरे पकड़ बन जाने पर मुश्किल चीजें भी आसान बन सकती हैं. यहां सटीक रणनीति का रोल बड़ा हो जाता है. रणनीतिक कौशल के मामले में भी सेना का उदाहरण हमारे सामने है.
टीमवर्क की ताकत
टीमवर्क और आपसी तालमेल की ताकत क्या होती है, इसे हमारी सेना से सीखा जाना चाहिए. चुनौतियों की घड़ी में सेना के सभी अंग बेहतरीन तालमेल के जरिए दुश्मन की कमर तोड़ने में कामयाब हो पाते हैं. जो लक्ष्य हासिल करना किसी अकेले इंसान के लिए मुश्किल होता है, वही लक्ष्य टीमवर्क के सहारे आसानी से हासिल होते देखे गए हैं.
कई छात्र सेल्फ स्टडी के जरिए बेहतर प्रदर्शन करते हैं. यह व्यक्ति-विशेष पर निर्भर करता है. पर कई बार स्टूडेंट के लिए छोटे-छोटे ग्रुप बनाकर पढ़ना ज्यादा फायदेमंद होता है. समूह में सबको एक-दूसरे के ज्ञान और कौशल का लाभ मिलता है. सभी एक-दूसरे के मजबूत पक्ष से लाभ उठाते हैं. अपने आसपास नजर दौड़ाएं, तो ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे, जहां टीमवर्क की भावना से पढ़ाई करने वाला पूरा ग्रुप फायदे में रहा और देर-सबेर सबने बाजी मार ली. टीमवर्क करना कैसे है, यह ग्रुप के सदस्यों के बीच तालमेल पर निर्भर है.
टेक्नोलॉजी का रोल
तेजी से बदलती दुनिया में नई तकनीक की क्या भूमिका हो सकती है, इसे सेना के मौजूदा अभियान से समझा जा सकता है. हमारी सेना ऊंचे दर्जे की, नवीनतम तकनीक वाले अस्त्र-शस्त्र और उपकरणों से लैस है. इस वजह से उसे हर मोर्चे पर अपेक्षित सफलता मिल रही है. यह भी गौर किया जाना चाहिए कि भारत ने दूरदर्शी रुख अपनाते हुए पहले ही वे तमाम साजो-सामान जुटा रखे हैं, जिनकी जरूरत एक जागरूक, जीवंत और अगली कतार में खड़े देश को पड़ सकती है.
इसी तरह, आज हर स्टूडेंट या हर प्रतिभागी को उन तमाम नई टेक्नोलॉजी से अच्छी तरह वाकिफ होने की जरूरत है, जिसकी अपेक्षा उस स्तर पर की जानी चाहिए. अगर जिंदगी एक जंग है, तो इसमें बाजी वही मार ले जाएगा, जो न केवल तकनीकी ज्ञान में माहिर हो, बल्कि इनका उचित इस्तेमाल करना भी जानता हो.
काम बोलता है...
हमारी सेना कर्त्तव्य-पथ पर आगे बढ़ते हुए पूरी दुनिया के सामने अपने शौर्य और पराक्रम की कहानी कह रही है. लेकिन सिर्फ बयानों से नहीं, अपने शानदार कारनामों के जरिए. सिर्फ बातों के तीर मैदानी संघर्ष में किसी काम के नहीं रह जाते.
देश के युवा-वर्ग को भी इन बातों से सबक लेना चाहिए. काम पूरा होने से पहले ही ढिंढोरा पीटने में कोई समझदारी नहीं है. अपनी प्रतिभा का अपने मुंह से बखान करना जरूरी नहीं. फलसफा यह है कि पहले काम और अंतत: परिणाम खुद बोलता है. हां, इसके लिए धैर्य के साथ सही वक्त का इंतजार करने की दरकार होती है.
अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं...
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