महाकुंभ की खातिर लोगों की इतनी विशाल भीड़ क्या बताती है?

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Amaresh Saurabh

प्रयागराज का महाकुंभ इन दिनों देश-दुनिया के लिए आकर्षण का बड़ा केंद्र बना हुआ है. आयोजन की शुरुआत से लेकर अब तक लाखों-करोड़ों लोग इसकी ओर खिंचते चले आ रहे हैं, तो यह अकारण नहीं है. लोगों की रिकॉर्डतोड़ भीड़ बहुत-कुछ बताती है, जिसे गौर से सुना जाना चाहिए.

आंकड़ों की जुबानी

महाकुंभ के आयोजन की शुरुआत में अनुमान लगाया गया था कि 45 दिनों में करीब 45 करोड़ लोग इसमें शामिल होंगे. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, एक महीना पूरा होने से पहले ही 45 करोड़ से ज्यादा लोग महाकुंभ में डुबकी लगा चुके हैं. आयोजन 26 फरवरी तक चलना है. ऐसे में नए रिकॉर्ड का ग्राफ कितना ऊपर जाता है, इस पर सबकी नजर रहेगी. फिलहाल अंतिम आंकड़ों के लिए हमें महाशिवरात्रि तक इंतजार करना होगा.

विविधता में एकता

हमारे देश में सदियों से एक नारा चला आ रहा है- विविधता में एकता. जिन लोगों को देश में सिर्फ विविधता ही दिखती थी, अब उन्हें भी इसमें एकता की झलक साफ तौर पर दिख जानी चाहिए. इतनी बड़ी भीड़ बड़े उत्साह से किसी एक आयोजन का हिस्सा बनती है, इसका मतलब यह है कि हमें जोड़ने वाली लकीर कहीं ज्यादा गहरी है, जबकि बांटने वाली लकीरें एकदम उथली. एक राष्ट्र के नागरिक के तौर पर हमारी एकता की जड़ें काफी मजबूत हैं. यह हम सबके लिए गर्व की बात होनी चाहिए.

दुनिया के बाकी हिस्सों के लोग जब प्रत्यक्ष तौर पर या अपने टीवी स्क्रीन पर करोड़ों लोगों को एकसाथ आयोजन में शामिल होते देखते होंगे, तो उन्हें आश्चर्य जरूर होता होगा. कई तरह के धर्म, मजहब, पंथ, संप्रदाय और मान्यताओं वाले लोग एक मंच पर दिख रहे हैं, तो यह हमारी एकता का जीता-जागता सबूत है. पीएम नरेंद्र मोदी इसे पहले ही 'एकता का महायज्ञ' बता चुके हैं.

धर्म की संजीवनी शक्ति

महाकुंभ में उमड़ती भीड़ यह बताती है कि आज के भौतिकतावादी दौर में भी धर्म और अध्यात्म हमारे लिए संजीवनी शक्ति की तरह हैं. केवल भौतिक संसाधनों से समृद्ध होना एक बात है, जबकि विचारों, मान्यताओं और भावनाओं से भी उन्नत होना दूसरी बात. एक व्यक्ति के तौर पर ही नहीं, बल्कि समाज के रूप में भी धर्म हमारा पोषण करता है, शोषण नहीं. पर कैसे?

यह धर्म ही है, जो 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की बात करता है. सबके नीरोग होने की कामना करता है. चाहता है कि इस सृष्टि में किसी के हिस्से में दु:ख न आए. यह धर्म ही है, जो पहले-पहल 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की बात कहकर पूरी दुनिया को एकजुट करने वाली 'विश्व-बंधुत्व' की थ्योरी देता है. दरअसल, इस भावना में ही अमृत का वह तत्त्व है, जिसे पाने लोग संगम की ओर उमड़ते चले जा रहे हैं. दुनिया के इस सबसे प्राचीन लोकपर्व का आयोजन प्रयागराज में हो रहा है, तो एक डुबकी लगा लेना लाजिमी ही है.

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व्यवस्था की मिसाल

महाकुंभ 2025 आम और खास, हर किसी को चुंबक की तरह अपनी ओर खींच रहा है, तो इसका एक बड़ा कारण यहां का बेहतर इंतजाम भी है. रोज-रोज 1-2 करोड़ लोगों के आने-जाने, पवित्र नदियों में डुबकी लगाने और वहां से सुरक्षित बाहर जाने का इंतजाम कर पाना कोई मामूली काम है क्या?

वैसे तो पूरे आयोजन तक महाकुंभ को एक अलग जिले के तौर पर मान्यता दी गई है. इसके लिए प्रशासनिक व्यवस्था भी की गई है. पर क्या यह अचरज की बात नहीं है कि इस एक छोटे-से जिले में हर रोज एक छोटे देश जितनी आबादी उत्सव में शामिल होती है और फिर चली जाती है. नदियों के अंदर भी ट्रैफिक का कितना शानदार इंतजाम हो सकता है, यह तो प्रयागराज को देखकर ही समझा जा सकता है.

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बेतहाशा भीड़-भाड़ वाली जगहों में अक्सर बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, लेकिन इस महाकुंभ में ऐसे वर्ग, खासकर बेसहारा बुजुर्गों की खातिर भी संगम-स्नान की विशेष व्यवस्था की गई. अगर कुछ छिटपुट अप्रिय घटनाओं को छोड़ दें, तो यह आयोजन पूरी तरह सफल कहा जाएगा.

धर्म और अर्थ का संबंध

देश के भीतर और बाहर एक तबका ऐसा भी है, जो धर्म के प्रति थोड़ा संकुचित नजरिया रखता है. धर्म और आस्था को लेकर बहुतेरे सवाल खड़े करता है. पूछता है कि धर्म से पेट भर जाएगा क्या? ऐसे वर्ग को धर्म से जुड़ी इकोनॉमी पर भी एक नजर डाल लेनी चाहिए. महाकुंभ की भीड़ ऐसे ही ढेरों सवालों के जवाब लेकर आई है.

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महाकुंभ बताता है कि यह केवल धार्मिक समागम नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी से जुड़ा आर्थिक तंत्र भी है. पूरी चलती-फिरती इकोनॉमी है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने आयोजन की शुरुआत में ही बताया था कि अगर 40 करोड़ लोग यहां आते हैं और हर कोई औसतन 5,000 रुपये खर्च करता है, तो 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का राजस्व पैदा हो सकता है. प्रयागराज की भीड़ और मौजूदा हालात बताते हैं कि वास्तविक आंकड़ा इस अनुमान से कहीं ज्यादा रहने वाला है. GDP में इसका कितना योगदान रहा, यह देखने वाली बात होगी.

महाकुंभ के दौरान कहां-कहां से कितना राजस्व पैदा होने की संभावना है, इस पर भी एक नजर डाल लेना ठीक रहेगा. व्यापारिक संगठन CAIT के अनुमान के मुताबिक, महामेले में जरूरी बुनियादी चीजों से करीब ₹17,310 करोड़ का राजस्व पैदा होगा. इसी तरह, किराने के सामान से ₹4000 करोड़, खाद्य तेल से ₹1000 करोड़, सब्जियों से ₹2000 करोड़, बिस्तर, गद्दे, बेडशीट और अन्य घरेलू सामानों से ₹500 करोड़, दूध और अन्य डेयरी उत्पादों से ₹4000 करोड़, आतिथ्य से ₹2500 करोड़, यात्रा से ₹300 करोड़, नाव आदि की सेवा से ₹50 करोड़ का राजस्व पैदा होने की संभावना है.

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सबके हित की बात

जहां तक रोजी-रोजगार की बात है, महाकुंभ का दरवाजा सबके लिए खुला है. चाहे कोई मोती-माला बेचता हो या हेलीकॉप्टर कंपनी चलाता हो. यहां होटल, गेस्टहाउस, टेंट-हाउस, खान-पान, पूजा-पाठ की चीजें, सेहत की देखभाल समेत सैकड़ों तरह की सेवाएं मौजूद हैं. रिपोर्ट बताती है कि यहां शेफ, इलेक्ट्रीशियन और ड्राइवर की मांग बहुत ज्यादा है. माने जैसी डिमांड, वैसी सेवा हाजिर.

गौर करने वाली बात यह भी है कि प्रयागराज आने वाले श्रद्धालु अयोध्या, काशी विश्वनाथ और आसपास के अन्य धार्मिक स्थानों के दर्शन के लिए भी निकल पड़ते हैं. ऐसे में धर्म से 'अर्थ' को मजबूती मिलना कोई अचरज की बात नहीं है.

कुल मिलाकर, प्रयागराज का महाकुंभ धर्म, अर्थ और मोक्ष के अनूठे संगम जैसा है. ऐसा भी कह सकते हैं कि यह पृथ्वी नाम के ग्रह पर लोगों की सबसे बड़ी सभा के रूप में याद किया जाएगा. रिकॉर्डतोड़ भीड़ इस बात की पुष्टि करती है.

अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.