विराट आप कह सकते हैं कि "मैं टेस्ट क्रिकेट से दूर जा रहा हूं, तो यह आसान नहीं है, लेकिन यह फिलहाल सही लगता है." लेकिन हम फैंस के लिए न आपका यह टेस्ट क्रिकेट से अचानक दूर होना आसान है और न यह सही वक्त है. आप होंगे क्रिकेट को सबसे बेहतर जज करने वाले. आप होंगे सबसे बड़े फिनिशर. आप होंगे सबसे महान क्रिकेटर. लेकिन हम फैंस बताएंगे कि क्रिकेट से दूर जाने का आपका सही वक्त क्या है? और आज हम फैंस कह सकते हैं कि ये सही वक्त नहीं है. लेकिन अब हम कर भी क्या सकते हैं. आपने तो फैसला भी ले लिया. और जब फैसला ले लिया, तो फिर हम यही मानने के लिए मजबूर हैं कि आपने सही फैसला ही लिया होगा. हम निराश हैं, लेकिन आपके फैसले के ऐसे कायल हैं कि कर भी क्या सकते हैं!
विराट आपने कहा...
"मैंने क्रिकेट में अपना सब कुछ दिया है और इसने मुझे मेरी उम्मीद से कहीं ज्यादा दिया है. मैं खेल के लिए, मैदान पर खेलने वाले लोगों के लिए और हर उस व्यक्ति के लिए आभारी हूं, जिसने मुझे इस सफर में आगे बढ़ाया."
विराट आपने क्रिकेट को क्या दिया, क्रिकेट ने आपको आपकी उम्मीदों से कितना अधिक दिया, यह आप दोनों के बीच का मामला है. लेकिन हम फैंस को आपने खुशियों के जितने अपार पल दिए, उतना शायद क्रिकेट ने भी आपको नहीं दिया. ये आप नहीं समझ सकते, क्योंकि खुशियां देने वाला खुशियों के मोल उतना कहां जान पाता है, जितना उसे पाने वाला महसूस करता है. लेकिन हां, हम इतने स्वार्थी हैं कि हमें आपसे अभी और की उम्मीद थी. क्योंकि हमें पता है कि आपमें अभी बहुत क्रिकेट बाकी है.
विराट आपने कहा...
"टेस्ट क्रिकेट में पहली बार मैंने जर्सी 14 साल पहले पहनी थी. ईमानदारी से कहूं तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि ये मुझे इस तरह के सफर पर ले जाएगा. इसने मेरी परीक्षा ली, मुझे पहचान दिया और मुझे ऐसे सबक सिखाए, जिन्हें मैं जीवन भर साथ रखूंगा."
तो बतौर फैंस विराट हम भी यही कहेंगे कि ये 14 साल कैसे गुजर गए पता भी नहीं चला. आपका ये सफर अचानक थम जाएगा, ये सोचा भी न था. क्रिकेट ने आपकी खूब परीक्षा ली होगी, लेकिन आपने भी ये अचानक बाय कह कर हमारी कम परीक्षा नहीं ली, कम सबक नहीं सिखाए. मुश्किलों में भी धैर्य बनाए रखने का सबक. मंजिल को पा लेने के बाद ही रुकने का सबक. जो चाहा उसे हासिल करने के लिए सबकुछ झोंक देने का सबक. सबसे बड़ा कर्मयोगी बनकर पथ प्रशस्त करते जाने का सबक.
क्रिकेट खाली हो गया
क्रिकेट होगा भारत का धर्म. क्रिकेट बसता होगा करोड़ों दिलों में. माना कि खेल बड़ा होता है, खिलाड़ी बाद में आता है. माना कि खेल से ही खिलाड़ी की पहचान बनती है. लेकिन जो अपवाद होते हैं वो ‘विराट' होते हैं. जिनसे खुद खेल एक नई पहचान पाता है. जिनसे खुद खेल की जड़ें गहरे में जाती हैं. जिनसे खेल खुद गौरवान्वित होता है. आधुनिक भाषा में कहें तो जिनसे खेल खुद अपनी ‘ब्रांड वैल्यू' बढ़ाता है. इसके लिए क्रिकेट कभी विराट का मोहताज होता है, कभी महेंद्र सिंह धोनी का, कभी सचिन रमेश तेंदुलकर का.
मैं नहीं कह रहा कि इससे क्रिकेट का कद कम हो जाता है. दरअसल, क्रिकेट खुद ऐसा होते देख उस महान पिता की तरह गौरवान्वित होता है, जिनका नाम उनकी संतानें रौशन करती हैं. हम फैंस खुशनसीब हैं, जो हमने इन खिलाड़ियों के खेल का संपूर्ण साक्षात्कार किया. इन्हें जी भरकर जिया.
सोचकर दिल बैठ रहा है
हर दौर में भारतीय क्रिकेट को चमत्कृत करने वाला कोई न कोई चेहरा रहा. गावस्कर का खेल ढलने लगा, तो कपिल आ गए. जाते हुए कपिल ने सचिन की शक्ल में महान विरासत छोड़ी. सचिन जाते, उससे पहले ही क्रिकेट का सबसे बड़ा जेंटलमैन, सबसे बड़ा दिमाग, सबसे महान और संयमशील लीडर भारतीय क्रिकेट को मिल गया. वह महेंद्र सिंह धोनी थे. धोनी के रहते हुए ही कोहली की शक्ल में भारतीय क्रिकेट का ‘विराट' स्वरूप आ गया. भारतीय क्रिकेट इन मुकुट मणि से सुशोभित रहा. लेकिन अब आगे क्या? क्रिकेट देखना तो फिर भी चलता रहता. इनके होने से क्रिकेट जीना बन गया. अब सवाल दिल को साल रहा है. अगला कपिल, सचिन, माही या विराट कौन होगा? क्रिकेट को देखते जाने की वजह तो कई हैं. क्रिकेट को फिर से जीने की वजह कौन बनेगा?
अश्विनी कुमार एनडीटीवी इंडिया में कार्यरत हैं.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.