This Article is From Mar 10, 2022

हारकर भी नहीं हारे अखिलेश! 2024 के लिए जला दिया उम्मीदों का दीया?

विज्ञापन
Pramod Praveen

उत्तर प्रदेश के ताजा चुनाव नतीजों (Uttar Pradesh Assembly Elections Result) से भले ही बीजेपी की जय-जयकार हो रही हो लेकिन समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2017 के मुकाबले 70 से ज्यादा सीटें जीतकर न केवल बीजेपी की बड़ी और ऐतिहासिक जीत का अंतर कम किया है बल्कि 2024 के लिए बीजेपी के सामने लंबी लकीर भी खींच दी है. इसका तस्दीक सपा के वोट शेयर में आया उछाल भी करता है. 

सपा का प्रदर्शन अपने ऐतिहासिक चरम पर है. जितना वोट परसेंट नेताजी यानी अखिलेश के पिता और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव नहीं  जुटा सके थे, उससे कहीं ज्यादा अखिलेश यादव ने जुटाया है. आंकड़ों की बात करें तो 1992 में स्थापित समाजवादी पार्टी ने यूपी में सबसे पहला विधान सभा चुनाव 1993 में लड़ा और तब सपा को  17.94% वोट मिले थे. तीन साल बाद 1996 के चुनाव में मुलायम सिंह के नेतृत्व में यह वोट शेयर करीब चार फीसदी बढ़कर 21.8% हो गया.

इसके बाद क्रमश: 2002 में 25.37% और 2007 में 25.43% हो गया. 2012 के विधान सभा चुनाव से पहले नेताजी ने बेटे को साइकिल पकड़ा दी. अखिलेश ने गांव-गांव और शहर-शहर साइकिल दौड़ाकर न सिर्फ सपा का वोट परसेंट बढ़ाकर 29.15% किया बल्कि पांच साल के लिए सूबे में मजबूत सरकार भी बनाई.

Advertisement

साइकिल की कहां निकली हवा? अखिलेश यादव के 'रेनबो कॉलिशन' की क्यों हुई हार? जानें- 5 बड़े कारण

सत्ता लोलुपता और पारिवारिक कलह के बीच यूपी के सबसे बड़े यादव परिवार में रिश्ते ऐसे दरके कि बाप और बेटे के बीच भी सियासी तलवारें खिंच गई. इस सियासी ड्रामे का नतीजा न सिर्फ सत्ता गंवाने के रूप में दिखा बल्कि सपा का वोट परसेंट भी 29.85 फीसदी से लुढ़ककर 2017 के विधानसभा चुनाव में 21.82% पर आ गया.

Advertisement

2017 से 2022 के बीच अखिलेश ने कई प्रयोग किए. कभी पिता की घोर सियासी दुश्मन रही बुआ मायावती की हाथी को साइकिल पर चढ़ाया तो कभी देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस और चौधरी चरण सिंह के वारिस जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल से साथ जुगलबंदी की. 2022 के चुनावों में तो उन्होंने बीजेपी की राह पर चलते हुए तमाम पिछड़ी जातियों का एक इंद्रधनुषीय गठजोड़ भी बनाया लेकिन सत्ता से वो दूर रह गए. हालांकि, उनके इस अभिनव प्रयोग से उन्हें 36.1% वोट शेयर मिले जो आजतक सपा के खाते में कभी नहीं आया.

Advertisement

2024 के लोकसभा चुनावों पर क्या असर डालेंगे 2022 के चुनावी नतीजे?

तमाम छोटे दलों से गठजोड़ करने से सपा को राज्य के हर कोने में वोट शेयर के रूप में फायदा हुआ है. अवध बुंदेलखंड और उत्तर-पूर्व में सपा को करीब 13-13 फीसदी तो पूर्वी यूपी और रुहेलखंड में 15 फीसदी, पश्चिमी यूपी में 18 फीसदी और दोआब में 8 फीसदी वोट परसेंट का लाभ हुआ है.

Advertisement

इसके साथ ही अखिलेश ने बीजेपी के खिलाफ एक ऐसी हवा बनाई कि महिलाएं सुरक्षा और महंगाई को, युवा नौकरी और बेरोजगारी को, सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था को, दलित उत्पीड़न को और किसान एमएसपी को मुद्दा बनाकर सत्ताधारी दल से हिसाब मांगने लगे हैं. मायावती के निष्क्रिय रहने से दलित वोट बैंक भले ही फ्री राशन और अन्य कल्याणकारी योजनाओं की मृगमरीचिका में कमलदल के साथ हो गए हों और बीजेपी का वोट परसेंट भी पांच फीसदी बढ़ा दिया हो लेकिन जब मायावती एक्टिव होंगी तो उस समुदाय के खिसकने का खतरा बीजेपी के लिए नुकसानदायी हो सकता है.

कांग्रेस का क्या होगा, जनाब-ए-आली...?

एक तरफ इस चुनाव ने पीएम मोदी के बरक्स सीएम योगी को मजबूत नेता के तौर पर स्थापित किया तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव को भी यूपी जैसे विशाल प्रदेश में बीजेपी के सामने बतौर दक्ष प्रतिद्वंद्वी स्थापित कर दिया है. अपनी अलग धुन में चल रही कांग्रेस को भी ताजा चुनाव परिणामों ने जमीन पर ला पटका है. कांग्रेस इस बात को अब भली भांति समझ चुकी होगी कि भारतीय राजनीति में अभी उसके फ्रंटफुट पर खेलने का समय नहीं है, खासकर उत्तर प्रदेश में, जहां से 80 सांसद चुनकर जाते हैं और देश की राजनीति की दशा दिशा तय होती है. 

इन चुनाव नतीजों ने कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों को सपा के साथ कदमताल करने पर मजबूर कर दिया है. जिस तरह से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने अखिलेश का समर्थन किया और दक्षिण से लेकर उत्तर तक गैर कांग्रेसी विकल्प बनाने की सुगबुगाहट तेज हुई है, उस दिशा में अखिलेश का इंद्रधनुषीय गठजोड़ 2024 के चुनावों में एक नई उम्मीद बनकर उभर सकता है और दूसरे राज्यों के लिए जहां मंडल बनाम कमंडल की राजनीति होती रही है, वहां उसका व्यापक असर देखने को मिल सकता है.

प्रमोद प्रवीण NDTV इंडिया में कार्यरत हैं...


डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.