सद्गुरु: जब हम "शिव" शब्द का उच्चारण करते हैं तो लोगों के मन में कई तरह की छवियां सामने आती हैं. कुछ लोग उन्हें महादेव के रूप में देखते हैं, कुछ उन्हें अघोरी के रूप में देखते हैं, और कई दूसरे उन्हें सुंदरमूर्ति के रूप में देखते हैं. उन्हें सृजन के मूल आधार के साथ-साथ संहारक के रूप में भी देखा जाता है. दरअसल, पश्चिम में कुछ लोग यह प्रचार कर रहे हैं कि शिव एक दानव हैं! चाहे आप उन्हें भगवान कहें या दानव, अघोरी कहें या सुंदरमूर्ति, शिव को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह उन सभी में बिल्कुल फिट बैठते हैं.
अस्तित्व के सभी गुणों का इतना जटिल मिश्रण एक व्यक्ति में इसलिए डाल दिया गया है, क्योंकि यदि आप इस एक प्राणी को स्वीकार कर सकते हैं, तो आपने जीवन को पार कर लिया है. इंसान के जीवन के साथ पूरा संघर्ष यही है कि हम हमेशा यह चुनने की कोशिश करते हैं कि क्या सुंदर है और क्या नहीं, क्या अच्छा है और क्या बुरा है. यदि आप केवल इस आदमी को स्वीकार कर लेते हैं जिसने जीवन को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया है तो आपको किसी के साथ कोई समस्या नहीं होगी.
दूसरे स्तर पर, जब हम "शिव" कहते हैं, तो हम आदियोगी या पहले योगी, और आदिगुरु या पहले गुरु का भी उल्लेख कर रहे होते हैं, जो उसका विज्ञान आधार हैं जिसे आज हम योग के रूप में जानते हैं. योग संस्कृति, शिव को सृष्टि के आधार के रूप में देखने से लेकर, शिव को प्रथम योगी के रूप में देखने तक निर्बाध रूप से आगे बढ़ती है.
क्या यह विरोधाभासी है? बिल्कुल नहीं! यह प्राणी जो एक योगी है और वह अनस्तित्व, जो अस्तित्व का आधार है, एक ही हैं क्योंकि योगी वह होता है जिसने अस्तित्व को स्वयं के रूप में अनुभव किया है. यदि आपको अस्तित्व को एक अनुभव के रूप में अपने भीतर, एक क्षण के लिए भी, समाहित करना है, तो आपको वह शून्यता बनना होगा. यह केवल शून्यता ही है जो सब कुछ धारण कर सकती है.
इस वर्ष, शिव की महान रात्रि, महाशिवरात्रि - 8 मार्च को पड़ रही है. एक प्रतीक के रूप में, महाशिवरात्रि आदियोगी का आभार व्यक्त करना है. उनका आभार करना महत्वपूर्ण है क्योंकि 15000 साल पहले, वह मानव मन में यह विचार लाने वाले पहले व्यक्ति थे कि यदि आप प्रयास करने को इच्छुक हैं, तो आप उन सभी सीमाओं को पार कर सकते हैं जो मनुष्य के लिए स्वाभाविक मानी जाती हैं. आपके शरीर, मन, भावनाओं और ऊर्जा को दूसरे स्तर पर ले जाया जा सकता है, जिसे दूसरे लोग सुपरह्यूमन समझते हैं. हर इंसान इसके लिए सक्षम है. महाशिवरात्रि लोगों को यह याद दिलाने के लिए है कि यदि वे इच्छुक हैं, तो वे अपने होने की वर्तमान स्थिति से परे विकसित हो सकते हैं.
यदि हम महाशिवरात्रि के विज्ञान को देखें, तो धरती उत्तरी गोलार्ध में इस तरह से स्थित होती है कि इस दिन मानव प्रणाली में ऊर्जा का स्वाभाविक उछाल होता है. यह वह दिन है जब प्रकृति आपको आपके आध्यात्मिक शिखर की ओर धकेल रही है. जब वह उछाल होता है, तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप अपनी रीढ़ को सीधा रखें. इसीलिए इस संस्कृति में कहा जाता है कि इस रात को लेटना नहीं चाहिए. इसी संदर्भ में ईशा योग केंद्र महाशिवरात्रि मनाता है. हमारे यहां शाम छह बजे से सुबह छह बजे तक शानदार संगीत, नृत्य और ध्यान चलता है - बारह घंटे तक बिना रुके उत्सव मनाया जाता है ताकि हर कोई जीवंत और सतर्क रहे, जिससे यह उछाल हो सके.
भारत में 50 सर्वाधिक प्रभावशाली गिने जाने वाले लोगों में सद्गुरु एक योगी, दिव्यदर्शी, और युगदृष्टा हैं और 'न्यूयार्क टाइम्स' ने उन्हें सबसे प्रचलित लेखक बताया है. 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को उनके अनूठे और विशिष्ट कार्यों के लिए देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से नवाज़ा. वह दुनिया के सबसे बड़े जन-अभियान 'जागरूक धरती - मिट्टी बचाओ' के प्रणेता हैं, जिसने 4 अरब से ज़्यादा लोगों को छुआ है.
डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.