नमस्कार मैं रवीश कुमार, क्या यह मुमकिन है कि दिल्ली जैसे महंगे शहर में डाक्टर, नर्सिंग स्टाफ महीनों काम करते रहें और 3-3 महीने से वेतन न मिले? यह संभव है. अगर हर चौराहा अमृत लोटा नाम से एक योजना लांच कर दी जाए तो अमृत काल में लोग नज़दीक के चौराहे पर रखे अमृत लोटे से एक बूंद अमृत पी लेंगे और अमर हो जाएंगे. फिर पूर्वी एम सी डी के डाक्टरों औऱ नर्सिंग स्टाफ को वेतन और भोजन की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी. दो साल से अलग अलग अस्पतालों के डाक्टरों के वेतन के लिए हड़ताल की खबरें आ चुकी हैं लेकिन ये कहानी कभी खत्म नहीं होती. क्या इसलिए कि सरकारी अस्पताल में आने वाला मरीज़ गरीब और साधारण परिवारों का होता है?
पूर्वी दिल्ली के दिलशाद गार्डन में स्वामी दयानंद अस्पताल है. दिल्ली नगर निगम के तहत यह अस्पताल चलता है. इस अस्पताल के सीनियर और जूनियर डाक्टर अपने वेतन की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं. इनका कहना है कि सितंबर और अक्तूबर का भी वेतन नहीं मिला था लेकिन जब 15 जनवरी को हड़ताल पर गए तो वेतन मिला लेकिन अब भी नवंबर से लेकर जनवरी तक का वेतन बाकी है. दयानंद अस्पताल में 120 सीनियर डाक्टर हैं.150 जूनियर डाक्टर हैं. 200 नर्सिंग स्टाफ हैं. तृतीय श्रेणी के 150 कर्मचारी हैं. ये सभी वेतन की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं. अस्पताल प्रशासन ने इन सभी को नोटिस जारी किया है कि हड़ताल समाप्त कर 4 फरवरी की सुबह 9 बजे तक अगर काम पर नहीं लौटते हैं तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा और उनकी जगह पर नई बहाली की जाएगी.
हमें डाक्टरों से जो सर्कुलर मिला है, उसके ऊपर आज़ादी का अमृत महोत्सव लिखा है. अमृत महोत्सव में डाक्टर 5-5 महीने बिना वेतन के काम करेंगे और हड़ताल पर जाएंगे तो उन्हें बर्खास्त करने का नोटिस थमा दिया जाएगा. कम से कम इस काम के लिए तो अमृत महोत्सव वाले लेटर पैड का इस्तमाल नहीं करना चाहिए. नीचे विष वाला समाचार है और ऊपर अमृत लिखा है. अगर ये चार फरवरी तक काम पर नहीं लौटेंगे तो सर्कुलर के अनुसार प्रशासन इनकी जगह नए डाक्टरों को रखने की प्रक्रिया शुरू कर देगा. यानी 270 डाक्टरों को टर्मिनेट कर 270 डाक्टर रखे जाएंगे वो भी कांट्रेक्ट पर. सीनियर डाक्टर UPSC से नियुक्त होते हैं. रेज़िडेंट डाक्टर NEET PG से चुने जाते हैं. जूनियर एक साल और सीनियर रेज़िडेंट तीन साल के लिए कांट्रेक्ट पर नियुक्त होते हैं. 89 और 44 दिन के कांट्रेक्टर पर रखे जाते हैं जिनका समय समय पर सेवा विस्तार किया जाता रहता है. अगर ये हाल होगा तो सरकारी अस्पतालों में कौन सेवा देने आएगा और तब आम गरीब लोगों के इलाज का क्या होगा.
क्या कोई वजह इतनी वाजिब हो सकती है कि डाक्टरों को तीन महीने से सैलरी न दी जाए? नर्सिंग स्टाफ की सैलरी तो डाक्टर से भी कम होती है, उनका घर कैसे चलता होगा. यह एक अस्पताल का मामला नहीं है. पूर्वी दिल्ली में ही वीर सावरकर एम सी डी अस्पताल हैं. यहां भी 600 स्टाफ को कई महीनों से वेतन नहीं मिला है. स्वामी दयानंद और वीर सावरकर के नाम पर अस्पताल और पार्क बनाते समय कितना ढिंढोरा पीटा जाता है, इनके गुण गाए जाते हैं मगर यहां काम करने वाले डाक्टरों को महीनों तनख्वाह नहीं दी जाती है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने भी इस बात पर हैरानी जताई है कि डाक्टर और नर्सिंग स्टाफ को इतने दिनों से सैलरी नहीं दी गई है. कोर्ट ने पूर्वी दिल्ली नगर निगम से यहां तक कह दिया कि अगर आप अपने संसाधनों का प्रबंधन नहीं कर सकते तो अपनी दुकान बंद कर दीजिए. प्राइवेट सेक्टर होते तो ऐसी हालत में बंद करनी पड़ जाती. डाक्टर को ही नहीं, मनरेगा के मज़दूरों को भी मज़दूरी नहीं मिल रही है.
राज्य सभा में सरकार ने बताया है कि मनरेगा के मज़दूरों का 3358 करोड़ रुपया बाकी है. यह छोटी राशि तो नहीं है. सीपीएम के सांसद जॉन ब्रितास ने इस बारे में सवाल पूछा था कि किस किस राज्य में कितनी मज़दूरी बाकी है. तब ग्रामीण विकास राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने बताया कि 27 जनवरी 2022 तक 3, 358 करोड़ रुपया बाकी है. यूपी के मज़दूरों का 597 करोड़ रुपया बाकी है, जिन्होंने मनरेगा के तहत काम किया है. इसी तरह राजस्थान के मज़दूरों का 555 करोड़ रुपया बाकी है.पश्चिम बंगाल के मज़दूरों का 752 करोड़ बाकी है. झारखंड के मज़दूरों का 379 करोड़ बाकी है. यह तो पैसे का हिसाब है हम नहीं जानते कि कितने लाख मज़दूरी कितने दिनों से अपनी मज़दूरी का इंतज़ार कर रहे हैं. चुनाव के समय खाते में पैसा तुरंत चला जाता है लेकिन जिन लोगों ने काम किया है उनके खाते में पैसा जाने में इतनी देरी क्यों हो रही है. क्या आपने सुना है कि सांसदों और विधायकों को वेतन नहीं मिला है, तो फिर मज़दूरी कर अपना पेट भरने वाले मज़दूरों की मज़दूरी समय पर क्यों नहीं दी गई है.
मनरेगा एक्ट में हैं कि काम करने के 15 दिन के भीतर मज़दूरी देनी है, देरी होने पर मुआवज़ा देना पड़ता है. सरकार वो भी कभी ठीक से नहीं देती है. क्या मज़दूर के पास इतना पैसा होता है कि काम करने के बाद पैसे के लिए डेढ़ महीने तक इंतज़ार करे? इस बार के बजट में मनरेगा का बजट 98000 करोड़ से 73,000 करोड़ कर दिया गया है. तर्क दिया जा रहा है कि मांग कम हो गई लेकिन रिकार्ड बताते हैं कि हर साल काम की मांग बढ़ती है जिसके कारण सरकार को भी संशोधित बजट में पैसा बढ़ाना पड़ा है. आर्थिक सर्वे में भी कहा है कि महामारी पूर्व के समय से काम की मांग ज्यादा है. तब तो ज्यादा बजट देना ही चाहिए था.
सरकार ने एक योजना बनाई थी उन्नति. इसके तहत मनरेगा के दो लाख मज़दूरों को ट्रेनिंग देनी थी. 19 दिसंबर 2019 को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने उन्नति प्रोजेक्ट लांच किया था ताकि ट्रेनिंग के बाद मनरेगा के मज़दूरों को पक्का काम मिल सकते. सितंबर 2019 और दिसंबर 2019 में मनरेगा के मज़दूरों को ट्रेनिंग देने से संबंधित कई हेडलाइन छपी है.सरकारी सूचना एजेंसी PIB ने 31 दिसंबर 2021 की अपनी रिलीज़ में बताया है कि उन्नति के तहत तीन साल में देश भर के दो लाख मज़दूरों को 100 दिन की ट्रेनिंग दी जानी थी ताकि उन्हें मनरेगा के बाद और बेहतर काम मिल सके. लेकिन 2019-20, 2020-21, 2021-22 में मात्र 12, 561 मज़दूरो को ट्रेनिंग दी गई. क्या सरकार को देश भर में तीन साल के भीतर दो लाख मनरेगा के मज़दूर नहीं मिले जिन्हें ट्रेनिंग दी जा सकती थी.
क्या आपको याद था कि उन्नति नाम की योजना लांच हुई है? योजनाएं पूरी होने के लिए लांच होती हैं या हेडलाइन और विज्ञापन के लिए? यही हाल हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर का है. हमने 7 दिसंबर के प्राइम टाइम के एक एपिसोड में दिखाया था कि यूपी के कई ज़िलों में सरकारी अस्पतालों में डाक्टर नहीं हैं. मरीज़ एक ज़िले से दूसरे ज़िले में दौड़ते रहते हैं और वहां भी डाक्टर नहीं मिलते हैं. यू ट्यूब पर यह एपिसोड मौजूद है. आप देख सकते हैं. 31 दिसम्बर 2022 तक भारत में डेढ़ लाख हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर बनने थे लेकिन अभी तक बने 76,663. यूपी में अभी तक 8724 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर बने हैं और बुलंदशहर में 151. हमारे सहयोगी समीर अली ने बुलंदरशहर के वेलनेस सेंटर और सरकारी उपचार केंद्रों का जायज़ा लिया है. कहीं स्टाफ कम तो कहीं डाक्टर ही नहीं.
इन केंद्रों पर किस तरह का काम हो रहा है यह देखने के लिए हम पहुंचे बुलंदशहर के ककोड़ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र. पतली पतली गलियों से होते हुए कीचड़ और गोबर से पैदा हो रही बेइंतहा खुशबू में सराबोर आप जब इस स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंचते हैं तो पता चलता है कि यह वही हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर है जिसकी बात प्रधानमंत्री ने लाल किले से की थी. सेंटर के नाम का स्टिकर तो था मगर वैसा कुछ नहीं था जैसा प्रधानमंत्री दावा कर रहे थे. यहां कोई डाक्टर मौजूद नहीं मिला.काउंसलर मनोज से मुलाकात हुई जिन्होंने कहा कि यहां एक एमबीबीएस डॉक्टर और एक महिला डॉक्टर का होना अनिवार्य है लेकिन मरीज़ों को वही देख लेते हैं. यह सेंटर अभी पूरी तरह तैयार नहीं हुआ है. ककोड़ के बाद हमारी टीम बुलंदशहर के वैर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंची. यहां की हालत ककोड़ के जैसी थी. कोई डॉक्टर अपनी सीट पर नहीं मिला. अपने बच्चे को दिखाने आए एक शक्स से जब बात की तो उन्होंने बताया कि बच्चे को किसी किसी डॉक्टर ने नहीं बल्कि स्वास्थ्य केंद्र के फार्मासिस्ट ने दवा दी है.
पीएचसी और सीएचसी के बाद हमारे सहयोगी ने उप स्वास्थ्य केंद्र की तरफ रुख किया. हम पहुंचे बुलंदशहर तहसील के गांव ताजपुर. यहां के उप स्वास्थ्य केंद्र की बिल्डिंग पूरी तरह जर्जर हालत में मिली. यह बिल्डिंग तीस साल पुरानी हो चुकी है.गांव के लोगों ने बताया कि जिस दिन से यह बिल्डिंग बनी है उस दिन से आज तक इसका निरीक्षण नहीं हुआ है. डाक्टर भी नहीं आए. कागज़ों में उप केंद्र खूब बढ़िया से चल रहा है लेकिन आप देख सकते है कि किस हालत में चल रहा है. अब हम पहुंचे बुलंदशहर तहसील के काज़मपुर देवली. यहां उप स्वास्थ्य केंद्र की बिल्डिंग तो नज़र आई लेकिन अब खंडहर हो चुकी है.
ग्रामीणों का कहना है कि करीब 5 साल पहले उनके गांव काज़मपुर देवली में इस उप स्वास्थ्य केंद्र की बिल्डिंग बनी थी तब भरोसा दिया गया था कि गर्भवती महिलाओं की डिलिवरी गांव के इस अस्पताल में होगी. शहर नहीं जाना पड़ेगा. कागज़ पर तो सब चंगा सी है. बुलंदशहर में 8 पीएचसी है और 13 सीएचसी हैं और 160 उप केंद्र भी हैं. अगर नज़दीक के स्वास्थ्य केंद्रों की ये हालत होगी तो जेब में बीमा का कार्ड रखने से क्या होगा, लोगों को जब अस्पताल ही नहीं मिलेगा तो वे बीमा कार्ड से इलाज कहां कराएंगे.
चुनावी चर्चाओं में ऐसी खबरें अब गायब होने लगी हैं क्योंकि ये देखने वालों में उत्तेजना पैदा नहीं करती हैं. यही कारण है कि पत्रकार राह चलते लोगों से बात करने लगते हैं और लोगों की बातें रोचक भी लगती हैं. इसमें एक फर्क नोट कीजिएगा. आपको लगेगा कि आप लोकेशन से रिपोर्ट देख रहे हैं मगर लोकेशन से भी लोकेशन गायब है. जैसे आम आदमी बहुत गुस्से में या रोचकता से बता रहा है कि अस्पताल स्कूल की हालत खराब है लेकिन उन जगहों पर पत्रकार नहीं जाता है. इस तरह से लोकेशन में से लोकेशन माइनस कर दिया जाता है और आपको लगता है कि आप ग्राउंड से रिपोर्टिंग देख रहे हैं.
आगरा में धनौली अजीजपुर के लोग 114 दिनों से धरना दे रहे हैं. इनकी शिकायत यह है कि 2 किलोमीटर लंबी सड़क नाले में बदल गई है. नाले का पानी निकलता नहीं है इसलिए लोग बीमार पड़ने लगे हैं.अब क्या ये ऐसी समस्या है जो स्थानीय अधिकारी अपने स्तर पर नहीं ठीक कर सकते थे? क्या जिन अधिकारियों के तहत यह इलाका आता है उनकी कोई जवाबदेही नहीं होती है. चौधरी प्रेम सिंह ने नसीम से कहा कि इस इलाके में कोई वोट के लिए भी प्रचार करने नहीं आ रहा है न कोई वादा कर रहा है.भारत में सौ टेंशनों के अलावा एक टेंशन यह भी है कि शादी के रिश्ते के लिए अगुआ और बरतुहार नहीं आता है.
अंजेश गिरी रहे हैं कि रोड नहीं बनेगा तो चोटी कटवा लूंगा और शादी नहीं करेंगे. इतनी बड़ी कुर्बानी दे रहेे हैं. क्या अमृत काल का भारत एक सड़क के लिए इतने योग्य वर को गंवा सकता है? तुरंत ही सड़क बन जानी चाहिए. स्थानीय निवासी अंजेश गिरी कहते हैं,मैं ब्रह्मचारी हूं और जब तक यह रोड नहीं बन जाता है ना तो मैं चोटी कटवा लूंगा और ना ही शादी करूंगा..मुन्नी देवी ने कहा, मेरे बेटे की शादी नहीं हो पाई मुझे यहां से बाहर जाकर शादी करनी पड़ी अब शादी हो गई है तो बहू यहां आने को तैयार नहीं है बोलती है कि नर्क में जाकर क्या करोगी..
समाज सेविका सावित्री चाहर कटाक्ष करते हुए कहती हैं कि हमारे इलाके में विकास की गंगा बह रही है मोदी जी योगी जी कहते हैं सबका साथ सबका विकास इसलिए इस इलाके का भी विकास हो रहा है वह बताती हैं इस समस्या की वजह से यहां पर लोग मकान बेचने को भी मजबूर हो गए हैं. वैसे यूपी के चुनाव में उज्जवला की बात नहीं हो रही है जबकि 2017 के चुनाव में इसकी खूब धूम थी. तब हर भाषण में उज्ज्वला का उजाला था लेकिन इस बार के भाषणों में उज्ज्वला अंधेरे में डूब गई है. गरीबों को सिलेंडर दिया गया ताकि वे खुद को धुआं से बचा सके लेकिन महंगाई ने उनकी ये हालत कर दी है कि एक बार सिलेंडर खत्म हो रहा है तो वे दोबारा भराने की हालत में नहीं हैं. मिर्ज़ापुर और बलिया और सीतापुर से उज्ज्वला की हालत पर एक रिपोर्ट देखिए.
मिर्जापुर के रमई पट्टी परमा पूरे इलाके की कलावती की रसोई तक 3 साल पहले उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन पहुंच गया. उन्हें लगा कि अब चूल्हे के धुएं से निजात मिल जाएगी. लेकिन महंगाई की आंच इतनी तेज हुई कि गैस सिलेंडर और चूल्हा किचन में शो पीस बन कर रह गए. खाना अब पुराने चूल्हे पर ही बन रहा है. मिर्ज़ापुर निवासी कलावती ने कहा, 3 साल हो गया 7 बार भरवाये हैं जब पैसा नहीं है तो कैसे भराये चूल्हा पर बनाते हैं. लकड़ी वगैरह पर इतनी महंगाई है. कहां से भरेंगे जब पैसा ही नहीं है तो कहां से भरायेंगे. हमारे पास पैसा नहीं है हम लकड़ी पर चूल्हा बना रहे हैं ध्रुवा लगे तो क्या करें मजबूरी है.
मिर्जापुर की ही पक्का पोखरा मोहल्ले की सोनी और रमई पट्टी की जलवा देवी की भी यही कहानी है. सिलिंडर है, लेकिन खाली है. सोनी देवी का कहना है कि कमाई धमाई नहीं हो रहा है कहां से भर आएंगे काम धंधा है नहीं वैसे ऊपरी पर खाना चूहे पर बना रहे लग रहा है तो क्या करें सरकार इतनी महंगाई किए हुए सरकार से चाह रहे हैं कि सरकार सस्ता करें तो हम लोगों का भी गैस जले. जलवा देवी का कहना है कि ये गैस मिले हुए 2 साल हो गया तीन चार बार बार आए हैं पहले तीन-चार बार फ्री दिए थे उसके बाद ₹1000 लगने लगा तो जब पैसा नहीं है तो नहीं मिल सकता है नहीं भरा सकते हैं चूल्हा जला रहे हैं यही समस्या है. हम लोग यह चाहते हैं कि कम में मिले तो रोज कमाने खाने वाले भरवा सकते हैं और अगर कम में नहीं मिलेगा तो हम कैसे भरवा पाएंगे तो हम चूल्हा पर खाना बनाएंगे कोई न कोई व्यवस्था तो करना पड़ेगा.बलिया शहर की बबीता पांडेय को भी तीन साल पहले सिलिंडर मिल गया. लेकिन वो रसोई में पड़ा है. चूल्हा लकड़ी कोयले वाला ही जल रहा है. महंगाई की वजह से सिलिंडर ख़रीदने के पैसे नहीं. उन्होंने कहा, लॉकडाउन में नहीं काम चल रहा है उनका इसलिए चूल्हा पर बनाते हैं बहुत महंगा हो गया है 600-700 का मिलता तो भरवा दे ₹1000 कहां से लाएंगे बच्चा 2 साल का है इसी में लेकर बनाते हैं क्या करें.
बलिया की विजय गैस एजेंसी वाले भी बताते हैं कि उज्ज्वला के तहत 3,000 गैस कनेक्शन दिए गए थे, लेकिन 5-6 सौ घरों में सिलिंडर बिल्कुल नहीं भरवाया जा रहा. जबकि कई और घरों में देर से भरवाया जा रहा है. उन्होंने कहा, हमारे यहां तीन हजार उज्जवला गैस कनेक्शन है कुछ लोग हैं महंगाई की वजह से उन्हें दिक्कत होती है. 3000 में कुछ तो दिक्कत है 500-600 ऐसे कनेक्शन हैं जिनको दिक्कत हो रही है भरवाने हैं हम लोग उन को समझाते हैं हम लोगों में ऐसा सिस्टम है कि जो 2 महीने 3 महीने 4 महीने से नहीं उठा रहे हैं तो उनको बताते हैं कि क्यों नहीं उठा रहे हैं नहीं तो ब्लॉक हो जाएगा वह लोग अपनी परेशानी बताते हैं. मिर्जापुर जिले में तकरीबन 245600 गैस कनेक्शन बंटे हैं और बलिया जिले में 1 लाख 70 हज़ार पांच सौ बयालीस कनेक्शन बंटे है जिनमें ज्यादातर की कहानी यही है. ज्यादातर लोग भरवा नहीं रहे हैं और कुछ जो भरवा रहे हैं वह उसका उपयोग सिर्फ इमरजेंसी में कर रहे हैं.
कैग ने माना कि उज्जवला योजना के लाभार्थियों के सिलेंडर भरवाने में कमी आई है. आंकड़ों को देखे तो बीते एक साल यानी अक्तूबर 2020 में घरेलू सिलेंडर की कीमत जहां 632 रुपए थी वो साल भर के भीतर ही करीब 937 रुपए हो चुकी है. बीते एक साल में 13 बार सिलेंडर के दामों में फेरबदल हुए हैं. जानकार कहते हैं कि कोरोना लॉकडाउन में बेरोजगारी बढ़ने और सिलेंडर के लगातार मंहगे होने से उज्जवला लाभार्थी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. आल इंडिया LPG डीलर एसोसिएशन के संयोजक सुजीत सिंह का कहना है कि प्रदेश भर के LPG डीलर भी इस वक्त संकट में है क्योंकि गैस की खपत देहात के इलाकों में कम रही है. लॉकडाउन के बाद इसमें और ज्यादा इजाफा हुआ है.