नरेंद्र मोदी की तीसरी जीत, भारत ही नहीं दुनिया में भी असाधारण

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Akhilesh Sharma

नरेंद्र मोदी रविवार को तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने जा रहे हैं. केवल भारत ही नहीं, बल्कि वैश्विक लोकतंत्र में यह एक असाधारण घटना है. उन्होंने न केवल पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी की है, बल्कि व्यापक अंतरराष्ट्रीय वैश्विक लोकतंत्र में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वे ऐसे अकेले नेता हैं जिन्हें दो कार्यकाल पूरा करने के बावजूद वोट प्रतिशत (इसे लोकप्रियता का पैमाना माना जा सकता है) कमोबेश बरकरार रखते हुए तीसरा कार्यकाल मिला है. 

पहले बात भारत की कर लेते हैं. भारत में अब तक जवाहर लाल नेहरू ऐसे अकेले प्रधानमंत्री रहे हैं, जिन्हें लगातार तीसरी बार जनता का विश्वास मिला. अब नरेंद्र मोदी ऐसे दूसरे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने यह करिश्मा कर दिखाया है. लेकिन नेहरू और मोदी की जीत में बड़ा अंतर है. वह यह है कि जहां नेहरू के वोट प्रतिशत में कमी आई थी, वहीं मोदी का वोट प्रतिशत करीब-करीब बरकरार रहा है. 

नेहरू 1952, 1957 और 1962 में लगातार तीन बार चुनाव जीते. 1952 की तुलना में 1957 में उनका वोट प्रतिशत और सीटें बढ़ीं. 1952 में नेहरू को 45 प्रतिशत वोट और 489 लोकसभा सीटों में से 364 सीटें हासिल हुईं. इसके अगले चुनाव 1957 में नेहरू को 47.8 प्रतिशत वोट और 494 में से 371 सीटों पर जीत मिली. लेकिन इसके बाद 1962 में हुए चुनाव में उन्हें 44.7 प्रतिशत वोट और 520 लोकसभा सीटों में से 361 पर विजय मिली. यानी 1962 में न केवल उनकी सीटों में कमी आई बल्कि वोट प्रतिशत 1952 में मिले वोटों से भी कम रहा. 

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नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी और एनडीए को मिला वोट प्रतिशत बरकरार रहा है. जहां 2014 में एनडीए को 38.5 और बीजेपी को 31.3 प्रतिशत वोट मिला था वहीं 2019 में यह बढ़ कर क्रमश 44.9 और 37.7 प्रतिशत हो गया. 2024 के चुनाव में एनडीए को 43.82 और बीजेपी को 36.6 प्रतिशत वोट मिला है. 2014 में लोकसभा की 543 सीटों में से एनडीए को 336 और बीजेपी को 282 सीटें मिली थीं. 2019 में ये बढ़कर एनडीए को 353 और बीजेपी को 303 हो गईं. इस चुनाव में एनडीए को 293 और बीजेपी को 240 सीटें मिली हैं. 

नरेंद्र मोदी की जीत 1962 के बाद से किसी भी भारतीय नेता की सबसे बड़ी जीत भी है. बीच में 1984 में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को 49.1 प्रतिशत वोट और लोक सभा की 541 में से 414 सीटें मिली थीं. लेकिन यह चुनाव तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के तुरंत बाद हुआ चुनाव था जिसमें सहानुभूति लहर ने कांग्रेस को फायदा पहुंचाया. इसकी तुलना में सुशासन और विकास के एजेंडे पर अकेले नरेंद्र मोदी हैं, जिन्हें जनता का लगातार तीसरी बार विश्वास हासिल हुआ है. 

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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीर्तिमान

नरेंद्र मोदी की लगातार तीसरी जीत अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र मंच पर भी एक असाधारण कीर्तिमान बना रही है. रूस, उत्तर कोरिया, ईरान, इराक चाहें खुद को लोकतंत्र कहते हों, लेकिन अगर उन्हें छोड़कर पश्चिमी यूरोप, जापान, उत्तरी अमेरिका (क्यूबा को छोड़ कर), दक्षिण अमेरिका (केवल कुछ देश), दक्षिण अफ्रीका, इजराइल और दक्षिण कोरिया की बात करें तो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के वैश्विक नेताओं में नरेंद्र मोदी की इस जीत का एक अलग ही स्थान है. 

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लोकतंत्रीय विश्व में ऐसे गिने-चुने नेता हैं जिन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लगातार तीन या उससे अधिक चुनाव जीतने का अवसर मिला है. अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट ने 1932, 1936, 1940 और 1944 में लगातार चार चुनाव जीते. लेकिन उनकी सभी विजय द्वितीय विश्व युद्ध से पहले की थीं.

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कनाडा में पियरे ट्रूडो ने 1968, 1972 और 1974 में लगातार तीन चुनाव जीते. लेकिन वे अपना दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे. ट्रूडो को 1980 में फिर जीत मिली थी. उनके बेटे जस्टिन ट्रूडो ने भी 2015, 2019 और 2021 में लगातार तीन बार चुनाव जीता है, लेकिन दूसरी बार उनकी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी थी. जापान में शिंज़ो आबे ने लगातार तीन चुनाव जीते. उन्हें 2012, 2014 और 2017 में कामयाबी हासिल हुई. इससे पहले वे 2006-07 में भी प्रधानमंत्री थे. लेकिन उनकी कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी. 

स्पेन में फिलेपे गोंज़ालेज़ ने 1982, 1986,1989 और 1993 में चार चुनाव जीते. लेकिन हर चुनाव में उनका वोट प्रतिशत लगातार गिरता रहा.

ब्रिटेन में मार्गरेट थैचर ने 1979, 1983 और 1987 में लगातार तीन बार चुनाव जीता. लेकिन उनकी कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और हर चुनाव में उनका वोट प्रतिशत लगातार गिरता गया. इसी तरह टोनी ब्लेयर ने भी ब्रिटेन में 1997, 2001 और 2005 में लगातार तीन बार चुनाव जीता. लेकिन मार्गरेट थैचर की ही तरह उनकी भी कोई सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और उनका वोट प्रतिशत हर चुनाव में कम होता गया.

स्वीडन में टेज फ्रिजोफ़ अरलैंडर ने सात चुनाव जीते. उन्होंने 1948, 1952, 1956, 1958, 1960, 1964, 1968 में चुनाव जीते. 1956 में तीसरे चुनाव में उनका वोट प्रतिशत गिरा और यह सबसे कम था. हालांकि बाद के चुनाव में यह बढ़ता गया और 1968 में करीब 50 प्रतिशत तक पहुंच गया.

नॉर्वे में जेन्स स्टोलटनबर्ग ने 2005, 2009 और 2013 में तीन चुनाव जीते. लेकिन तीसरे चुनाव में उनका वोट प्रतिशत गिरा और वह पिछले दो चुनावों में सबसे कम रहा.

नॉर्वे में ऐनार गेरहर्डसन ने 1945, 1949, 1957, 1961 में चुनाव जीते हालांकि बीच में ब्रेक भी रहा. 1953 में उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री चुनाव की अगुवाई नहीं की इसलिए वे लगातार तीन बार या उससे अधिक बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड नहीं बना सके.

ऑस्ट्रेलिया में रॉबर्ड मेंज़ीस ने 1949, 1951, 1954, 1955, 1958, 1961, 1963 में सात चुनाव जीते. बीच में 1939-1941 में भी वे प्रधानमंत्री रहे. लेकिन उनकी पहली सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और उनका वोट प्रतिशत भी गिरा. ऑस्ट्रेलिया में ही ज़ॉन ह़ॉवर्ड ने 1996, 1998, 2001, 2004 में चार चुनाव जीते. उनकी पहली सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी थी और दूसरे चुनाव में वोट प्रतिशत में गिरावट हुई.

जर्मनी में हेलमुथ कॉल ने 1982, 1987, 1990, 1994 में चार चुनाव जीते. लेकिन हर चुनाव में उनका वोट प्रतिशत लगातार गिरता गया. जर्मनी में ही एंजेला मार्कल ने 2005, 2009, 2013, 2017 में चार चुनाव जीते. लेकिन दूसरे चुनाव में उनका वोट प्रतिशत गिरा.

ग्रीस में एंड्रीज़ पापानंड्रू ने 1993, 1996, 2000 में तीन चुनाव जीते. लेकिन दूसरे चुनाव में उनका वोट प्रतिशत कम हुआ.

न्यूज़ीलैंड में सर कीथ हॉलीओके ने 1960, 1963. 1966 और 1969 में चार चुनाव जीते. लेकिन दूसरे और तीसरे चुनाव में उनका वोट प्रतिशत गिरा.

सिंगापुर में ली क्वान यू ने 1968, 1972, 1976, 1980, 1984, 1988 में छह चुनाव जीते. लेकिन दूसरे, चौथे और पांचवे कार्यकाल में वोट प्रतिशत में गिरावट हुई. गोह चो तोंग ने सिंगापुर में 1991, 1997 और 2001 में तीन चुनाव जीते. लेकिन उनका दूसरा कार्यकाल छोटा रहा. सिंगापुर में ही ली सेन लूंग ने चार चुनाव जीते. उन्हें 2006, 2011, 2015, 2020 में जीत मिली. लेकिन दूसरे और चौथे कार्यकाल में वोट प्रतिशत में गिरावट हुई.

इस तरह नरेंद्र मोदी की उपलब्धि असाधारण मानी जा रही है. यह वैश्विक स्तर पर भारत के मजबूत लोकतंत्र और निष्पक्ष तथा पारदर्शी चुनावी प्रक्रिया का भी एक ज्वलंत उदाहरण है. 

(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के एग्जीक्यूटिव एडिटर (पॉलिटिकल) हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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