79वें स्वतंत्रता दिवस पर महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल: NCRB आंकड़े और हालिया घटनाएं चिंताजनक

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हिमांशु जोशी

साल 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 4% की बढ़ोतरी हुई है. बलरामपुर, मुरादाबाद और सूरजपुर की घटनाएं बताती हैं कि बदलाव के लिए कानून से ज्यादा मानसिकता में सुधार जरूरी है.

79वें स्वतंत्रता दिवस पर हमें यह स्वीकार करना होगा कि महिलाओं की सुरक्षा और स्वतंत्रता के बिना देश की आजादी अधूरी है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार साल 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 4,45,256 रही, जो 2021 के 4,28,278 मामलों से करीब 4% अधिक है. बलरामपुर, मुरादाबाद और सूरजपुर जैसी हालिया घटनाएं इस सच्चाई को और स्पष्ट करती हैं कि समाज में गहरे सुधार की जरूरत है. सरकारें कानून बना सकती हैं, लेकिन असली बदलाव तब आएगा जब परिवार, समाज और पुरुष वर्ग अपनी सोच व व्यवहार में बदलाव लाएंगे. बच्चों के सकारात्मक विकास के साथ महिलाओं को आत्मरक्षा सिखानी होगी, साथ ही वह आजादी भी देनी होगी जिसकी वे हकदार हैं.

अगस्त महीने में महिलाओं के खिलाफ चर्चित घटनाएं

अगस्त 2025 में उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में एक मूक-बधिर युवती के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना सामने आई. यह केवल महिलाओं की सुरक्षा में कमी नहीं, बल्कि समाज में कमजोर वर्गों के प्रति असंवेदनशीलता का भी उदाहरण है.

उत्तर प्रदेश के ही मुरादाबाद में दिनदहाड़े एक बुर्का पहने मुस्लिम महिला के साथ छेड़छाड़ हुई. आरोपी युवक सड़क पर महिला को पकड़कर अश्लील हरकतें करने के बाद फरार हो गया. इस घटना ने राज्य की कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए और सोशल मीडिया पर व्यापक बहस छेड़ दी. वहीं, छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में गुड टच-बैड टच जागरूकता कार्यक्रम के दौरान एक नाबालिग ने खुलासा किया कि एक साल पहले गांव के तीन युवकों ने अलग-अलग समय पर उसके साथ दुष्कर्म किया था.

सामाजिक सुधार और आत्मरक्षा की जरूरत

दिल्ली की महिला अधिकार कार्यकर्ता और लेखक सुप्रिया पुरोहित कहती हैं कि स्वतंत्रता केवल कपड़े, शिक्षा या करियर चुनने की आजादी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विचारों की स्वतंत्रता भी है, जो महिलाओं को अभी पूरी तरह नहीं मिली. उनका मानना है कि कानून कितने भी सख्त हों, हर अपराधी तक नहीं पहुंच सकते. बदलाव के लिए समाज की मानसिकता बदलनी होगी.

सुप्रिया सुझाव देती हैं कि स्कूलों में गृह विज्ञान के साथ जूडो या कराटे जैसे आत्मरक्षा प्रशिक्षण को अनिवार्य किया जाए. खेल और शारीरिक शिक्षा को बारहवीं तक अनिवार्य विषय बनाया जाए. बेटियों को आत्मरक्षा सिखाने और पुरुषों को सम्मानजनक व्यवहार की शिक्षा देना जरूरी है.

परिवार और संस्कारों की भूमिका

उत्तराखंड में महिला अधिकारों के लिए सक्रिय विनीता यशस्वी कहती हैं कि साहसिक क्षेत्रों में कदम रखने पर महिलाओं को पहले परिवार, फिर समाज के तानों का सामना करना पड़ता है. उनकी राय में महिलाओं को तब तक स्वीकार नहीं किया जाता, जब तक वे अपनी अलग पहचान न बना लें.

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विनीता का मानना है कि सुरक्षा तभी संभव है, जब महिलाओं को उपभोग की वस्तु के बजाय इंसान के रूप में देखा जाए. परिवारों को लड़के और लड़कियों दोनों को समान संस्कार देने होंगे. पुरुषों को यह सिखाना होगा कि हर महिला के साथ, चाहे वह परिवार में हो या बाहर, सम्मानजनक व्यवहार करें.

दिल्ली की रहने वाली दीपिका भाटिया पेशे से शिक्षिका होने के साथ कलाकार भी हैं, कहती हैं कि महिलाओं के खिलाफ अपराध में नाबालिगों की भागीदारी रोकने के लिए परिवार, समाज, शिक्षा और कानून सभी को मिलकर काम करना होगा. बचपन से ही घर और स्कूल में बेटों और बेटियों दोनों को समानता, सम्मान और सहानुभूति के मूल्य और सही संस्कार सिखाना जरूरी है. आधुनिकता की होड़ और प्रतिस्पर्धा में संस्कारों का हनन न होने दें. अभिभावक बच्चों की सोशल मीडिया गतिविधि और देखी जाने वाली सामग्री पर नजर रखें, ताकि वे गलत या हिंसक सामग्री से दूर रहें. नाबालिगों द्वारा किए गए गंभीर अपराधों पर भी कानून के तहत उचित कार्रवाई हो, जिससे डर और अनुशासन का माहौल बने.

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बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए इक्विटी पार्क और ईको क्लब

देहरादून की प्रीति थपलियाल पिछले तीन दशकों से उत्तराखंड में महिलाओं के हितों पर सक्रिय रूप से काम कर रही हैं.महिलाओं के खिलाफ अपराध में नाबालिगों की बढ़ती संलिप्तता पर वह कहती हैं कि बच्चों को घर में अच्छा माहौल मिले, स्कूल स्तर पर काउंसलिंग सत्र हों, इंटरनेट पर नियंत्रण रखा जाए और हिंसक ऑनलाइन गेम रोके जाएं.

वे सुझाव देती हैं कि हर मोहल्ले में "इक्विटी पार्क" बनाए जाएं, जहां सभी बच्चों को समान अवसर के साथ खेलने, सीखने और शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने का मौका मिले. इन पार्कों में खेलकूद के उपकरण, सामूहिक बैठने की जगह, बागवानी के हिस्से और रचनात्मक गतिविधियों के लिए स्थान हों, ताकि बच्चे सुरक्षित और सहयोगपूर्ण माहौल में विकसित हो सकें.

इसी तरह "ईको क्लब" स्थापित हों, जहां बच्चों को पर्यावरण संरक्षण, पौधारोपण, कचरा प्रबंधन और प्रकृति से जुड़ी गतिविधियों के बारे में शिक्षित किया जाए. इन क्लबों में नियमित कार्यशालाएं, सफाई अभियान और पर्यावरण से जुड़े रचनात्मक कार्यक्रम हों, जिससे बच्चों में जिम्मेदारी और संवेदनशीलता की भावना विकसित हो. यहां एक लाइब्रेरी भी हो, ताकि उन्हें सकारात्मक और रचनात्मक वातावरण मिल सके.

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अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.