Delhi Election Result: बिना सीएम फेस के भी कैसे जीत गई बीजेपी, कैसे हारी आम आदमी पार्टी

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Sanjay Singh

दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली बीजेपी को मिली जीत पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव के लगातार तीसरी जीत है. बीजेपी ने इससे पहले हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी. ये तीनों जीतें बीजेपी को ऐसे राज्यों में मिली हैं, जो उसके लिए चुनौतीपूर्ण माने जा रहे थे. ये तीनों जीतें यह बताती हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और लोगों के साथ उनका संबंध कितनी तेजी से बढ़ा है. पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के अपने सहयोगियों के साल लगातार तीसरी जीत दर्ज की थी.

दिल्ली में बीजेपी की जीत के प्रमुख कारण

बीजेपी को दिल्ली में मिली शानदार जीत कई कारणों से उसके कार्यकर्ताओं और समर्थकों के लिए बहुत सुखद है. पहला यह कि बीजेपी 27 साल बाद राष्ट्रीय राजधानी की सत्ता में लौटी है. बीजेपी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 70 में से केवल आठ सीटें जीती थीं. लेकिन इस बार के चुनाव में वह 48 सीटों पर पहुंच गई है.यह एक असाधारण उपलब्धि है. चुनाव के ये नतीजे बताते हैं कि कैसे पार्टी की प्रचार रणनीति उनके पक्ष में चली लहर में बदल गई. इस दौरान अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) 2020 के 62 सीटों से घटकर केवल 22 पर सिमट कर रह गई है. 

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नई दिल्ली विधानसभा सीट पर अरविंद केजरीवाल को हराने वाले प्रवेश वर्मा.

दूसरा यह कि बीजेपी ने केवल शानदार जीत हासिक करने में कामयाब रही, बल्कि उसने अरविंद केजरीवाल को उनकी नई दिल्ली विधानसभा सीट पर हराया भी.  बीजेपी के प्रवेश वर्मा ने उन्हें चार हजार से अधिक वोटों के अंतर से मात दी.इस सीट पर अरविंद केजरीवाल ने पहला चुनाव 2013 में जीता था. उस समय उन्होंने कांग्रेस की शीला दीक्षित को हराया था. वो दिल्ली की तीन बार की मुख्यमंत्री थीं. इस जीत ने केजरीवाल को प्रसिद्धी दिलाई थी. आम आदमी पार्टी के चुनावी इतिहास का यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव था. 

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कहां कहां चूक गए अरविंद केजरीवाल

मुख्यमंत्री बनने के बाद अरविंद केजरीवाल ने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में स्थापित किया. उन्होंने बीजेपी को चुनौती देने के लिए देश भर घूम-घूमकर प्रचार किया. उन्होंने गुजरात, गोवा, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ा. हालांकि इनमें से अधिकांश इलाकों में आप के उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई.लेकिन इसकी परवाह किए बिना केजरीवाल डटे रहे. ऐसा करते हुए उन्होंने अपने आप को जरूरत से ज्यादा बढ़ा दिया. इसके अलावा वो खुद और उनकी सरकार दोनों भ्रष्टाचार के कई मामलों में उलझ गई, खासकर कथित शराब घोटाला और शीश महल विवाद.दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि इन घोटालों ने उनके पतन में योगदान दिया. नई दिल्ली सीट पर केजरीवाल की हार बीजेपी के लिए खासतौर पर सुखद है. यह बताता है कि एक नेता और एक स्टार प्रचारक दोनों के रूप में केजरीवाल की छवि को इस हार ने गंभीर नुकसान पहुंचाया है. इस हार का उनपर और उनकी पार्टी पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा.

अरविंद केजरीवाल पिछले काफी समय से खुद को पीएम नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में पेश कर रहे थे.

तीसरी बात सिर्फ केजरीवाल ही पीएम मोदी के जादू का शिकार नहीं बने हैं, उनके सबसे भरोसेमंद लेफ्टिनेंट और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया हार से बचने के लिए जंगपुरा जैसी सुरक्षित चुनी थी, लेकिन अपनी हार नहीं टाल पाए. इस चुनाव में सौरभ भारद्वाज और दुर्गेश पाठक जैसे आप नेताओं को भी हार का सामना करना पड़ा है. बहुत मामूली अंतर से जीत दर्ज करने वाली दिल्ली की निवर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी को छोड़ आप के करीब पूरे नेतृत्व को चुनाव के मैदान में हार का सामना करना पड़ा है. 

क्यों काम नहीं आईं आप की मुफ्त वाली योजनाएं

चौथी बात चुनावी वादों को पूरा करने की पीएम मोदी की क्षमता ने इस धारणा को तोड़ दिया है कि केजरीवाल की 200 यूनिट मुफ्त बिजली और पानी जैसे वादे झुग्गी बस्तियों और कम आय वर्ग वाले इलाकों में मतदाताओं को आप का वफादार बना देंगे. अभी सात महीने पहले लोकसभा चुनाव में दिल्ली के मतदाताओं ने बीजेपी को भारी समर्थन दिया था. आप और कांग्रेस के एक साथ मिलकर लड़ने के बाद भी बीजेपी ने सभी सात लोकसभा सीटें जीत ली थीं. दिल्ली के लोगों ने अब 'डबल इंजन' की सरकार चुनी है. इसका मतलब यह हुआ कि केंद्र में भी बीजेपी की सरकार और राज्य में भी बीजेपी की सरकार.

पांचवीं बात यह रही कि पीएम मोदी की अपील ने बीजेपी के संभावित नुकसान को जीत में बदल दिया. मुख्यमंत्री पद पर कोई चेहरा न होने और केजरीवाल को चुनौती देने में सक्षम मजबूत स्थानीय नेता की गैरमौजूदगी को भी बीजेपी ने अपने फायदे में बदल लिया. बीजेपी ने केजरीवाल का मुकाबला करने के लिए मोदी की छवि का फायदा उठाया. चुनाव के नतीजे खुद इस बात की तस्दीक करते हैं कि बीजेपी इसमें सफल रही. केजरीवाल ने बार-बार खुद को मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया. उन्होंने यहां तक पूछा कि उनका प्रतिद्वंद्वी कौन है. इसके बाद उन्होंने कहना शुरू किया 'केजरीवाल बनाम गली गालौज पार्टी'. इस दौरान वह यह महसूस करने में असफल रहे कि उनकी पिछले स्टैंड में आए नाटकीय बदलाव ने कई लोगों को उनसे अलग-थलग कर दिया. जनता अब उन्हें दोबारा मौका देने को तैयार नहीं दिख रही है.

अस्वीकरण: लेखक संजय सिंह, एनडीटीवी के कंसल्टिंग एडिटर हैं. इस लेख में दिए गए विचार उनके निजी विचार हैं. इससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है. 

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