यूपीए-2 युग के दौरान सभी राजनीतिक दलों के बीच इस बात पर व्यापक रूप से सहमति थी कि औपनिवेशिक दौर में निर्मित पुराने संसद भवन ने अपने उद्देश्य को पूरा कर लिया और एक नई इमारत के निर्माण की तत्काल आवश्यकता थी. उस वक्त तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार और जयराम रमेश जैसे मंत्रियों सहित कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने प्रस्ताव का समर्थन किया था. हालांकि यूपीए-2 नीतिगत अक्षमता की चपेट में थी, ऐसे में नए संसद भवन के विचार का वही हश्र हुआ जो राष्ट्रीय महत्व की कुछ अन्य परियोजनाओं का हुआ था.
जब 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो जो लोग सक्रिय रूप से संसद के दोनों सदनों के लिए एक नई संरचना और इसकी बढ़ती जरूरतों पर जोर दे रहे थे, वे आसानी से इस बारे में भूल गए. अपने पहले कार्यकाल (2014-19) के दौरान मोदी की अन्य प्राथमिकताएं भी थीं. संभव है कि वह 1927 में बने पुराने संसद भवन में काम करने का पहला अनुभव चाहते थे, जिससे यह पता चल सके कि लोकतंत्र के मंदिर के लिए एक नए ढांचे की क्या जरूरत है.
दिसंबर 2020 में जब देश कोविड महामारी के कारण आए व्यवधानों से सामाजिक और आर्थिक रूप से उबर रहा था, सरकार ने सेंट्रल विस्टा परियोजना की घोषणा की, जिसका नया संसद भवन एक अभिन्न अंग था. कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष ने पीएम मोदी द्वारा इसके शिलान्यास समारोह का बहिष्कार किया. मोदी ऐसा क्यों कर रहे हैं, इसके बारे में उनके अपने विचार थे. उन्होंने सवाल किया कि कोविड पाबंदियों के बीच यह क्यों? ऐसा करते हुए वे यह भूल गए कि नौ महीने पहले मुख्यमंत्रियों के साथ एक बैठक में मोदी किस तरह 'जान है तो जहान है' के मंत्र से 'जान भी और जहान भी' और उसके बाद 'आपदा में अवसर' तक चले गए थे.
कुछ लोग परियोजना को रोकने के लिए कई बहाने से अदालतों में गए लेकिन अदालतों ने इसे खारिज कर दिया. दिल्ली हाईकोर्ट ने इसे 'राष्ट्रीय महत्व' की परियोजना घोषित कर दिया.
जिसने भी नई दिल्ली का दौरा किया है और इंडिया गेट सर्किल के चारों ओर ड्राइव किया है, उसने राजपथ से कर्तव्य पथ तक के परिवर्तन को देखा है.
ढाई साल से भी कम समय के रिकॉर्ड समय में नए संसद भवन का निर्माण पूरा हुआ, जिसे बीजेपी नेताओं का एक वर्ग अपने आदर्श वाक्य के साथ तालमेल बिठाता है - यदि वे किसी परियोजना की आधारशिला रखते हैं, तो वे इसका उद्घाटन भी सुनिश्चित करते हैं. स्केल और स्पीड को मोदी सरकार का हॉलमार्क माना जाता है.
यह कहना अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा कि आजादी का अमृत महोत्सव में बनी यह इमारत सार रूप में न्यू इंडिया की अभिव्यक्ति है. अपने लोगों की सामूहिक इच्छा के बारे में एक बड़ा और साहसिक बयान देने के लिए इससे बेहतर वक्त नहीं हो सकता था. इतिहास हमें बताता है कि विभिन्न देशों ने अलग-अलग चरणों में अपनी ताकत, चाहे वह आर्थिक हो या राजनीतिक और विचारों, सपनों और आकांक्षाओं को नगर नियोजन, वास्तुकला, भवन और स्मारकों के माध्यम से व्यक्त किया है कि आप कौन हैं, आप क्या हैं, आप किसके लिए खड़े हैं.
जिस तरह पीढ़ियों बाद हम जानते हैं कि पुराने संसद भवन को एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने डिजाइन किया था और इसका उद्घाटन लॉर्ड इरविन ने किया था. अगली शताब्दी या शताब्दियों में आने वाली पीढ़ियों को पता होगा कि इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बनवाया और खोला गया. शुरुआती तस्वीरें और वीडियो पहले ही लोकप्रिय कल्पना पर कब्जा कर चुके हैं.
कांग्रेस को इसी से समस्या है. पीएम मोदी द्वारा इसका उद्घाटन करने और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नहीं करने पर उनकी आपत्ति सार्वजनिक दिखावा है. बहिष्कार पत्र पर हस्ताक्षर करने वाली पार्टियां कभी भी राष्ट्रपति मुर्मू के लिए उदार नहीं रही हैं, न ही उस वक्त जब वह पिछले साल राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रही थीं और न ही सर्वोच्च संवैधानिक पद के लिए चुने जाने के बाद. AAP और भारत राष्ट्र समिति ने 31 जनवरी को संसद के दोनों सदनों में उनके पहले संबोधन का बहिष्कार किया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने उन्हें 'राष्ट्रपत्नी' कहा.
उनकी समस्या व्यक्ति, उनके नाम और उनके पद - नरेंद्र मोदी से है. नौ साल हो गए हैं, लेकिन लगता है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों और समर्थन प्रणाली ने इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया है कि मोदी अभी भी प्रधानमंत्री हैं और देश और विदेश में उनकी लोकप्रियता का स्तर कम नहीं हुआ है. यह सिर्फ सेंट्रल विस्टा और संसद भवन नहीं है, कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने राष्ट्रीय महत्व की हर उस परियोजना का विरोध किया है, जिसे मोदी ने लॉन्च या उद्घाटन किया है. स्टेच्यू ऑफ यूनिटी, वॉर मेमोरियल, प्रधानमंत्री संग्रहालय, राम मंदिर, काशी विश्वनाथ धाम और यह सूची लगातार बढ़ रही है.
उनकी समस्याओं में इजाफा करने के लिए अब सेंगोल है. संसद के नए भवन का उद्घाटन पीएम मोदी की अंतिम क्षणों की सेवाओं के बिना लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के बगल में 'सेंगोल' की पुनर्खोज और स्थापना के बिना पूरा नहीं हो सकता था. अध्यक्ष, हालांकि सत्तारूढ़ पार्टी के टिकट पर चुने जाते हैं, उन्हें निष्पक्ष स्थिति का धारक और संसद परिसर का संरक्षक माना जाता है.
विशेष रूप से तैयार गोल्डन सेंगोल के बारे में गृह मंत्री अमित शाह ने दो दिन पहले अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में समझाया था. उन्होंने बताया था कि इसे 14 अगस्त, 1947 को प्राचीन चोल काल की एक तमिल परंपरा में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन और फिर मनोनीत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को प्रस्तुत किया गया था. हालांकि किसी कारण से नेहरू और कांग्रेस ने इसे सार्वजनिक और संस्थागत स्मृति से मिटा दिया. सेंगोल को नेहरू को "गिफ्ट की गई गोल्डन वॉकिंग स्टिक" कहा जाता था और इसे इलाहाबाद में कांग्रेस के पहले परिवार के आनंद भवन संग्रहालय में भेज दिया गया था.
आजादी का अमृत महोत्सव के दौरान जब देश अपने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी घटनाओं और गुमनाम नायकों का जश्न मना रहा था, किसी ने पीएम मोदी का ध्यान आकर्षित करते हुए सेंगोल के बारे में लिखा और बोला. यह महसूस किया जाता है कि उद्घाटन से कुछ दिन पहले इस विषय पर अमित शाह की मीडिया कॉन्फ्रेंस का उद्देश्य इस मुद्दे पर एक व्यापक बहस शुरू करना था. कांग्रेस ने अनुमान के अनुसार ही अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की और सेंगोल के घोषित महत्व पर सवाल उठाया. अन्य लोगों ने इसे एक हिंदू प्रतीक और भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा में एक कदम या मोदी राजशाही की अभिव्यक्ति और इसी तरह की बातें कही. यह सब मोदी के सामाजिक समर्थन समूह को बहस के बिंदु देता है.
चूंकि सेंगोल प्राचीन तमिल संस्कृति और गौरव से जुड़ा है, ऐसे में इस मुद्दे पर डीएमके की स्थिति भी थोड़ी अजीब हो जाती है. एक बार के लिए डीएमके वास्तविक या कथित तमिल गौरव के मुद्दे पर चुप हो गई है.
पीएम मोदी के नए संसद भवन के उद्घाटन का यदि 19 दल विरोध कर रहे हैं तो मोदी को 25 दलों का समर्थन हासिल है. राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी के कांग्रेस के मुखर विरोध की ओर इशारा करते हुए मायावती ने खुलकर समर्थन दिया है.
नए संसद भवन का उद्घाटन करने के लिए मोदी की साख पर सवाल उठाकर और कार्यक्रम का बहिष्कार करने का फैसला करके कांग्रेस ने खुद के लिए कई सवाल खड़े कर लिए हैं. यूपीए के दौर में सोनिया गांधी ने नवनिर्मित विधानसभा भवनों का उद्घाटन क्यों किया था? 1987 में राजीव गांधी ने संसद के पुस्तकालय भवन की आधारशिला क्यों रखी? इंदिरा गांधी ने 1975 में संसद एनेक्सी भवन का उद्घाटन क्यों किया और राष्ट्रपति ने क्यों नहीं? 1927 में जब लॉर्ड इरविन ने संसद भवन का उद्घाटन किया तब यदि मोतीलाल नेहरू मौजूद थे, तो क्या उनका परिवार नए भारत की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए बनाई गई अखिल भारतीय संसद के उद्घाटन का बहिष्कार कर रहा है?
ऐसा लगता है कि वे हालिया इतिहास से सबक लेने में नाकाम रहे हैं कि मोदी से जुड़ी किसी भी चीज और हर चीज के प्रति नकारात्मकता और नफरत का कोई फायदा नहीं होगा - 2014 और 2019 के चुनाव परिणाम इसके उदाहरण हैं. 2009 में वापस जाते हैं, जहां लोगों ने यूपीए के सहयोगियों को दंडित किया जो अनावश्यक रूप से मनमोहन सिंह और कांग्रेस को परेशान कर रहे थे. उस चुनाव में लोग बीजेपी के प्रति उदार नहीं थे, क्योंकि पार्टी सकारात्मक एजेंडा पेश नहीं कर पाई थी.
राहुल गांधी और उनकी टीम शायद इस पर विचार कर सकती है - क्या ऐसे राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर इतनी सारी नकारात्मक बातें करना सही तरीका है, जिसे वे "मोहब्बत की दुकान" कहते हैं?
(संजय सिंह दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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