बिहार की मुफ्त योजनाएं 'दोधारी तलवार', जनता खुश, लेकिन बजट पर बढ़ रहा दबाव

जनता को सीधा नकद और मुफ्त सुविधाएं मिलने लगीं तो आगे भी ऐसी रियायतों की मांग बढ़ेगी और इससे सरकार पर लगातार खर्च का दबाव बना रहेगा.

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बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने पिछले छह महीनों में कई लुभावनी योजनाओं की घोषणा की है, जिनमें मुफ्त बिजली, बेरोज़गार युवाओं को भत्ता, और महिलाओं व मज़दूरों को नकद सहायता शामिल है. ये चुनावी साल में जनता के लिए सीधे राहत पहुँचाने वाले कदम हैं, जो राजनीतिक रूप से भले ही कारगर दिखते हों, लेकिन इनका भारी-भरकम बोझ सीधे राज्य के बजट पर पड़ रहा है. 

इनमें सबसे चर्चित है, 

  • हर घर को 125 यूनिट मुफ्त बिजली
  • बेरोजगार स्नातकों को ₹1,000 प्रतिमाह भत्ता
  • मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (पहली किस़्त ₹10,000)
  • निर्माण मजदूरों को ₹5,000 वस्त्र-भत्ता 
  • आंगनबाड़ी-आशा कार्यकर्ताओं का भत्ता बढ़ाना

 
आंकड़े बताते है कि 2025-26 के लिए राज्य सरकार ने राजकोषीय घाटा  3% जीएसडीपी तक सीमित रखने और राजस्व अधिशेष दिखाने का लक्ष्य रखा है. लेकिन वास्तविकता यह है कि 2024-25 में घाटा अचानक 9% से ऊपर पहुँच गया था, यानी पिछली बुनियाद कमजोर है. मुफ्त बिजली और नकद भत्तों जैसी घोषणाओं से इस साल कम से कम 9 से 12 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च अनुमानित है.

 सरकार आंकड़ों के मुताबिक 1 अगस्त 2025 से हर घरेलू उपभोक्ता को 125 यूनिट मुफ्त बिजली देने का एलान हुआ और इसमें लगभग 1.67 करोड़ परिवार इसके दायरे में आएंगे. पर इससे सरकार पर सालाना 3,000 से 4,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. पहले ही बिहार सरकार बिजली कंपनियों को सब्सिडी के तौर पर 15,000 करोड़ रुपये से ज्यादा देती है. यानी नया ऐलान इस बिल को और भारी कर देगा.

सरकार ने 1.5 करोड़ महिलाए के खाते में राज्य सरकार ने पहली किस्त के तौर पर 10-10 हजार रुपये भेजने की योजना बनाई है. पहले चरण में ही 15,000 करोड़ रुपये का खर्च होगा. आगे चलकर कुछ चयनित महिलाओं को 2 लाख रुपये तक की सहायता भी दी जा सकती है. यानी इस योजना का बोझ भविष्य में और बढ़ सकता है.

स्नातक बेरोजगार युवाओं पर होगा बड़ा खर्च

नीतिश सरकार ने यह भी घोषणा की है कि स्नातक बेरोजगार युवाओं को दो साल तक हर महीने ₹1,000 रुपये दिए जाएंगे. यदि 10 लाख युवाओं ने आवेदन किया तो सालाना खर्च लगभग ₹1,200 करोड़ होगा और अगर संख्या दोगुनी हुई तो यह बोझ ₹2,400 करोड़ तक पहुंच सकता है.



अगली घोषणा मजदूरों से जुड़ी हुई है. निर्माण मजदूरों को 5,000 रुपये का वस्त्र-भत्ता देने की योजना है. इस योजना के तहत पहले ही 802 करोड़ रुपये डीबीटी के रूप में ट्रांसफर किए गए. वहीं, सरकार ने आंगनबाड़ी, आशा और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए भत्ता और इंसेंटिव बढ़ाने की घोषणा की है. विकास मित्रों और शिक्षा सेवकों को स्मार्टफोन, टैबलेट और भत्ता—इसका बोझ भी राजस्व खर्च में शामिल होगा.

इन सब योजनयों के चलते राजस्व व्यय बढ़ेगा. जब बजट का बड़ा हिस्सा इसी में जाएगा तो सड़कों, सिंचाई, स्वास्थ्य ढांचे और बिजली वितरण नेटवर्क जैसी दीर्घकालीन योजनाओं पर कम पैसा बचेगा.

दूसरी योजनाओं पर पड़ेगा असर

इस बदली हुई परिस्थिति में यदि केंद्र से टैक्स शेयर और जीएसटी वसूली उम्मीद से अधिक हुई तो बचाव हो सकता है, वरना नए संसाधन ढूंढने होंगे या फिर कहीं और कटौती करनी होगी. यदि सरकार समय पर सब्सिडी का भुगतान नहीं कर पाई तो बिजली कंपनियों की वित्तीय हालत बिगड़ेगी, जिससे रोजमर्रा की बिजली आपूर्ति पर असर पड़ सकता है.

जनता को सीधा नकद और मुफ्त सुविधाएं मिलने लगीं तो आगे भी ऐसी रियायतों की मांग बढ़ेगी और इससे सरकार पर लगातार खर्च का दबाव बना रहेगा. नीतिश सरकार की घोषणाएं जनता को राहत और राजनीतिक समर्थन देने वाली हैं. लेकिन इनके चलते बजट पर हज़ारों करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. यह बोझ संभालने के लिए सरकार को या तो राजस्व स्रोत बढ़ाने होंगे, या फिर अन्य योजनाओं में कटौती करनी होगी. राजनीतिक दृष्टि से ये योजनाएं तात्कालिक फायदे वाली हैं, पर आर्थिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण.

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