पांच दिन के मुख्यमंत्री से मौजूदा डिप्टी सीएम तक यहां से जीते, जानिए परबत्ता सीट का इतिहास

2020 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से जदयू ने इस सीट पर फिर से जीत दर्ज की. जदयू के डॉ. संजीव कुमार ने राजद के दिगंबर प्रसाद तिवारी को महज 951 वोट से हरा दिया था.

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  • परबत्ता विधानसभा सीट 1951-52 से अस्तित्व में है और पहली जीत सोशलिस्ट पार्टी के कुमार त्रिबेनी कुमार को मिली.
  • 1957 और 1962 में कांग्रेस की लक्ष्मी देवी परबत्ता सीट से लगातार चुनाव जीती.
  • 1969 में सतीश प्रसाद सिंह पांच दिन के मुख्यमंत्री बने, वे परबत्ता विधानसभा से ही थे.
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खगड़िया:

खगड़िया जिले में कुल चार विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें अलौली, खगड़िया, बेलदौर और परबत्ता विधानसभा क्षेत्र शामिल है. खगड़िया एक लोकसभा सीट भी है. यह लोकसभा सीट छह विधानसभा सीटों से मिलकर बनी है. इसमें खगड़िया जिले की चार सीटों के अलावा दो सीटें सिमरी बख्तियारपुर और हसनपुर भी इसका हिस्सा हैं. सिमरी बख्तियारपुर  सहरसा जिले और हसनपुर सीट समस्तीपुर में पड़ती है. आज बात परबत्ता विधानसभा सीट की करेंगे. 1951-52 में जब पहली बार विधानसभा चुनाव हुए तब से परबत्ता सीट का अस्तित्व है.   

1952 की लहर में भी परबत्ता से हारी थी कांग्रेस 

बिहार के पहले विधानसभा चुनाव में परबत्ता विधानसभा सीट चार उम्मीदवार मैदान में उतरे. 26 मार्च 1952 को इस सीट पर वोट डाले गए. परबत्ता के 42797 मतदाताओं में से  24617 ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. नतीजों में सोशलिस्ट पार्टी को जीत मिली. सोशलिस्ट पार्टी के कुमार त्रिबेनी कुमार ने कांग्रेस के लखन लाल मिश्रा को 858 वोट से हरा दिया था. दो अन्य निर्दलीय उम्मीदवारों में से एक की जमानत जब्त हो गई. 

1957 में कांग्रेस को मिली थी पहली जीत 

पांच साल बाद 1957 में हुए विधानसभा चुनाव में परबत्ता सीट पर नतीजे बदल गए. इस चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली. 1957 के विधानसभा चुनाव में परबत्ता सीट पर पांच उम्मीदवार मैदान में थे. कांग्रेस ने यहां से महिला उम्मीदवार लक्ष्मी देवी को उतारा. इस चुनाव में लक्ष्मी देवी को 54.79% को मिले. उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार रामस्वरूप प्रसाद सिंह को 13,596 वोट से हरा दिया. 1962 में भी यहां से कांग्रेस की लक्ष्मी देवी ने फिर से जीत दर्ज की. इस बार उन्होंने स्वतंत्र पार्टी के सतीश प्रसाद सिंह को 4,735 वोट से हरा दिया. 1964 में तत्कालीन विधायक लक्ष्मी देवी के निधन के बाद नए सिरे चुनाव हुए. इस चुनाव में कांग्रेस ने एससी मिश्रा को टिकट दिया. मिश्रा यहां से जीतने में सफल रहे. मिश्रा इस बार सतीश प्रसाद सिंह को हराते हैं. पहले लक्ष्मी देवी फिर एससी मिश्रा से हारे सतीश प्रसाद सिंह आगे चलकर बिहार के मुख्यमंत्री बनते हैं.

1969 में  बने पांच दिन के सीएम

1967 के विधानसभा चुनाव में परबत्ता सीट पर हुए चुनाव में कांग्रेस को हार मिली. 1964 के उप चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जीते एससी मिश्रा इस चुनाव में तीसरे स्थान पर चले गए. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) के टिकट पर उतरे सतीश प्रसाद सिंह को इस चुनाव में जीते. सतीश प्रसाद सिंह ने निर्दलीय एलएल मिश्रा को 13,860 वोट से हरा दिया. जमीन का टुकड़ा बेच-बेच कर चुनाव लड़ने वाले सतीश प्रसाद सिंह को तीसरे प्रयास में मिली सफलता यहीं तक सीमित नहीं थी. आगे उनके लिए बहुत कुछ बदलने वाला था. ये बदलाव दो साल बाद आया, जब 1969 में सतीश प्रसाद सिंह राज्य के मुख्यमंत्री बने. सतीश के मुख्यमंत्री बनने का किस्सा भी बहुत दिलचस्प है. अपने नेता को मुख्यमंत्री बनाने के लिए अपनी ही पार्टी से बगावत की. बगावत का चेहरा बने सतीश मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए. मुख्यमंत्री बनते ही उसी नेता के मन में आई शंका को दूर करने के लिए महज तीन दिन बाद कुर्सी से इस्तीफा दे दिया. पांच दिन भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं रह सके सतीश प्रसाद सिंह के बाद  राज्य ने दो और मुख्यमंत्री और देखे. उसके बाद भी 1967 की विधानसभा का कार्यकाल पूरा नहीं चल सका. 1969 के अंत में ही नए सिरे से चुनाव कराने पड़े. 

पांच दिन के मुख्यमंत्री नहीं जीत सके चुनाव

1969 में बिहार में हुए मध्यावधि चुनाव में परबत्ता सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की. कांग्रेस के जगदंब प्रसाद मंडल ने पांच दिन के मुख्यमंत्री रहे सतीश प्रसाद सिंह को 4,274 वोट से हरा दिया. इस बार सतीश प्रसाद सिंह शोषित दल के  टिकट पर मैदान में उतरे थे. एक बार फिर बिहार में विधानसभा का कार्यकाल पूरा नहीं हो सका. 1972 में राज्य में नए सिरे से चुनाव हुए. इस चुनाव में परबत्ता सीट पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रहा. इस बार कांग्रेस के शिवाकांत मिश्रा ने निर्दलीय बालकृष्ण आज़ाद ने 1924 वोट से हरा दिया. 1969 में परबत्ता सीट से जीते जगदंब प्रसाद मंडल 1972 के चुनाव में चौथे नंबर पर खिसक गए और अपनी जमानत भी नहीं बचा सके.  

आपातकाल के बाद निर्दलीय उम्मीदवार की जीत 

आपातकाल के बाद बिहार में हुए चुनाव में राज्य की 324 सीटों में से 214 सीटें जनता पार्टी के खाते में गईं. हालांकि, परबत्ता सीट से निर्दलीय नईम अख्तर को जीत मिली. उन्होंने कांग्रेस के सच्चिदानंद दास  को 12,655 वोट से हराया. वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह तीसरे स्थान पर रहे. 1980 में एक बार फिर राज्य में मध्यावधि चुनाव हुए. इस चुनाव में कांग्रेस के राम चंद्र मिश्रा ने जनता पार्टी (सेक्युलर) के टिकट पर उतरे नईम अख्तर को 24,844 वोट से हरा दिया. इसके बाद 1985 में हुए चुनाव में कांग्रेस को राम चंद्र मिश्रा ने एक बार फिर जीत दर्ज की. इस बार राम चंद्र मिश्रा ने लोक दल के सुरेंद्र सिंह को 7,701 वोट से हरा दिया. 

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1990 - जनता दल को मिली पहली जीत

1990 के विधानसभा चुनाव में परबत्ता सीट पर जनता दल के विद्यासागर निषाद ने निर्दलीय परमानंद चौधरी को 4,038 वोट से हरा दिया. 1995 में भी यहां से एक बार फिर जनता दल के विद्यासागर निषाद जीते. इस बार भी उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर उतरे परमानंद चौधरी को 12,887 वोट से हरा दिया.  

राकेश कुमार उर्फ सम्राट चौधरी को पहली जीत

साल 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में बिहार में बहुत कुछ बदल चुका था. राज्य की सत्ता पर काबिज पार्टी का नाम और मुख्यमंत्री भी बदल चुका था. उस दौर में बिहार के सबसे कद्दावर नेता लालू प्रसाद यादव घोटाले के आरोप में जेल आ-जा रहे थे. उनकी जगह उनकी पत्नी राबड़ी देवी राज्य की सत्ता पर काबिज थीं. इन सबके बीच हुए चुनाव में परबत्ता सीट पर लालू की राजद से राकेश कुमार (सम्राट चौधरी) ने जीत दर्ज की. सम्राट चौधरी ने निर्दलीय चुनाव लड़ रहे रामानंद प्रसाद सिंह को 12,777 वोट से हरा दिया था. राजद के टिकट पर जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचे सम्राट चौधरी इस वक्त भाजपा का चेहरा हैं और राज्य के उप मुख्यमंत्री हैं.  2004 में राकेश कुमार का निर्वाचन रद्द होने के बाद परबत्ता सीट पर उपचुनाव कराए गए. उप चुनाव में जदयू  के रामानंद प्रसाद सिंह ने राजद के राकेश कुमार को 11,134 वोट से हरा दिया. 

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2005 में  लगातार दूसरी बार हारे सम्राट चौधरी

2005 में बिहार में दो बार चुनाव हुए थे. पहली बार फरवरी में और दूसरी बार अक्टूबर में राज्य की जनता ने वोट डाला. बिहार में ऐसा पहली बार हुआ था, जब एक ही साल में दो बार चुनाव हुए थे. फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में जदयू के रामानंद प्रसाद सिंह ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने राजद के राकेश कुमार को 1,918 वोट से हराया था. 
इसके बाद अक्टूबर में नए सिरे से हुए चुनाव में भी परबत्ता सीट से रामानंद प्रसाद ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की. एक बार  फिर उन्होंने पूर्व विधायक राकेश कुमार उर्फ सम्राट चौधरी को हराया. हालांकि, इस बार राकेश कुमार राजद के टिकट पर नहीं बल्कि निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे.  

लगातार तीन बार हार के बाद जीते सम्राट चौधरी

2010 के विधानसभा चुनाव में सम्राट चौधरी यानी राकेश कुमार ने जीत दर्ज की. राजद के सम्राट चौधरी ने जदयू के रामानंद प्रसाद सिंह को महज 808 वोट से हराया. सम्राट चौधरी को 60,428 और रामानंद प्रसाद सिंह को 59,620 वोट मिले थे. 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू के रामानंद प्रसाद सिंह ने सीट पर वापसी की. उन्होंने भाजपा के रामानुज चौधरी को 28,924 वोट से हराया. 
2020 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से जदयू ने इस सीट पर फिर से जीत दर्ज की. जदयू के डॉ. संजीव कुमार ने राजद के दिगंबर प्रसाद तिवारी को महज 951 वोट से हरा दिया था. संजीव कुमार को 77226 और दिगंबर प्रसाद तिवारी को 76275 वोट मिले. हालांकि, डॉ. संजीव कुमार ने अब जदयू का साथ छोड़ राजद  का दामन थाम लिया है.

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