नीतीश ने जिस गांधी मैदान में दिखाया 10 का दम, 31 साल पहले लालू को यहीं से दी थी चुनौती

एक वक्त था जब लालू और नीतीश दोस्त हुआ करते थे. फिर 1994 आया. साल 1994 में पटना के गांधी मैदान से नीतीश की बगावत शुरू हुई थी और 2025 में इसी गांधी मैदान में उनकी सबसे बड़ी जीत का जश्न मन रहा है.

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  • गांधी मैदान में नीतीश कुमार ने 31 साल पहले लालू यादव को चुनौती देकर अपनी राजनीतिक यात्रा की दिशा बदली थी.
  • नीतीश ने 1990 में लालू को मुख्यमंत्री बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी लेकिन बाद में दोनों में मतभेद हो गए
  • 1994 में गांधी मैदान में नीतीश कुमार ने सार्वजनिक रूप से लालू यादव की सरकार की आलोचना कर दोस्ती तोड़ दी थी.
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आज जिस ऐतिहासिक गांधी मैदान में नीतीश ने दशवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, कभी उसी गांधी मैदान में अपने मित्र लालू यादव को 31 साल पहले चुनौती दी थी. इसी गांधी मैदान ने नीतीश कुमार के राजनैतिक जीवन को बदल कर रख दिया था.

नीतीश और लालू जनता दल परिवार के अहम सदस्य हुआ करते थे. एक तरह से बिहार में जनता दल के दो प्रमुख OBC फेस थे. यह बात भी सही है कि लालू यादव को मुख्यमंत्री बनवाने में उनके मित्र नीतीश कुमार का अहम रोल था. इन दोनों की जोड़ी ने एक तरह से राज्य में कांग्रेस को जमीन पर ला दिया था. पर सत्ता में रहने के कुछ वक्त बाद ही दोनों के बीच मतांतर बढ़ना शुरू हुआ.

कभी पक्के दोस्त थे

साल 1990 में लालू को मुख्यमंत्री बनाने में नीतीश का सबसे अहम रोल था. लेकिन सत्ता के कुछ ही सालों में दोनों के बीच दरार पड़ गई.लालू का शासन जंगलराज की ओर बढ़ रहा था. सरकारी नौकरियों, ठेकों, ट्रांसफर-पोस्टिंग और लाइसेंस में सिर्फ एक जाति यादव का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था. इन कामों में लालू के साले साधु और सुभाष भी शामिल थे. मंडल कमीशन लागू होने के बाद भी गैर-यादव पिछड़ों, खासकर कुर्मी-कोइरी समुदाय को कुछ नहीं मिल रहा था. 

जब दोस्ती टूटी!

नीतीश ने बार-बार चेताया कि कर्पूरी ठाकुर के फॉर्मूले की तरह अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) को कोटे में अलग हिस्सा मिलना चाहिए. लेकिन लालू ने कोई ध्यान नहीं दिया. फिर आया 1994 का वो निर्णायक दिन. गांधी मैदान में कुर्मी चेतना रैली हुई. लालू ने नीतीश को धमकी भिजवाई थी, 'अगर मंच पर चढ़े तो समझो गद्दारी कर दी.'

मंच पर पहुंचे नीतीश और फिर...

सुबह से दोपहर तीन बजे तक नीतीश छज्जू बाग में अपने समर्थकों के साथ बैठे उधेड़बुन में थे. आखिरकार वे पहुंचे. मंच पर चढ़ते ही भीड़ ने तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत किया. नीतीश ने गरजकर कहा, 'भीख नहीं चुरानी चाहिए… जो सरकार हमारे हितों की अनदेखी करती है, उसे सत्ता में रहने का हक नहीं.' उसी पल लालू-नीतीश की दोस्ती हमेशा के लिए टूट गई. उसी पल बिहार की राजनीति ने नया मोड़ लिया.

इतिहास का गवाह बना गांधी मैदान

उसी पल नीतीश ने अलग राजनीतिक सफर शुरू करने का फैसला ले लिया, जो बाद में समता पार्टी, फिर जनता दल (यू) और आज दसवीं बार मुख्यमंत्री बनने तक पहुंचा. आज जब नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और हजारों समर्थकों के सामने गांधी मैदान में दसवीं बार शपथ ली, तो वो मैदान चुपचाप मुस्कुरा रहा था. क्योंकि इतिहास गवाह है- 1994 में यहीं से नीतीश की बगावत शुरू हुई थी और 2025 में यहीं उनकी सबसे बड़ी जीत का जश्न मन रहा है. गांधी मैदान सिर्फ एक मैदान नहीं, बिहार की राजनीति का जीता-जागता दर्पण है

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