- बिहार के मुंगेर जिले के कटारिया गांव की महिलाएं बकरी के दूध से साबुन बनाने का व्यापार कर रही हैं.
- इस पहल की शुरुआत 5 हजार रुपए की बीज राशि से हुई थी. महिलाएं टेक्नीशियन के साथ मिलकर साबुन खुद बनाती है.
- यह साबुन किसी मशीन से नहीं बल्कि हाथों से पूरी स्वच्छता और गुणवत्ता के साथ तैयार किया जाता है.
बिहार के एक छोटे से गांव से उठी एक महिला-नेतृत्व वाली पहल आज ग्रामीण उद्यमिता की मिसाल बन चुकी है. सेवा गोए टिक (SEWA Goatique) नामक यह ग्रामीण उद्यम सेवा भारत (SEWA Bharat) और SBI यूथ फॉर इंडिया फेलोशिप के सहयोग से संचालित हो रहा है. यहां की महिलाएं ‘अमूल्य' ब्रांड के तहत बकरी के दूध से बना रासायन-मुक्त, हाथ से तैयार किया गया साबुन बना रही हैं. यह सिर्फ एक साबुन नहीं, बल्कि एक समुदाय के सशक्तिकरण की कहानी है.
स्थानीय संसाधन, वैश्विक सोच
दरअसल मुंगेर जिले के सदर प्रखंड के कटारिया में महिलाओं के द्वारा बकरी के दूध से नहाने का साबुन बनाया और बचा जा रहा है. यह साबुन स्क्रीन के लिए काफी ही अच्छा है. इस साबुन का नाम उन्होंने अमूल्य गोट मिल्क शॉप रखा है. यह तीन खुशबू में उपलब्ध है. हालांकि यह पहल अभी सीमित संसाधनों और स्थानीय मार्केट तक ही फैला है. पर यह आइडिया अब यहां की महिलाओं के लिए एक आर्थिक मजबूती का केंद्र बिंदु बनता जा रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि महिलाएं बकरी के दूध को 400 किलो रुपये में बेचती है. जिससे 125 साबुन के लगभग बनाया जाता है. इतना ही नहीं वह टेक्नीशियन के साथ मिलकर साबुन खुद बनाती है, इसके उन्हें मेहनताना भी मिलता है. यह साबुन किसी मशीन से नहीं बल्कि हाथों से पूरी स्वच्छता और गुणवत्ता के साथ तैयार किया जाता है. इससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता है. साथ ही ग्रामीण महिला को रोजगार भी मिल रहा है. महिलाएं इससे अच्छा मुनाफा भी कर रही है.
पांच हजार से शुरू होकर लाखों तक पहुंचा सफर
इस यात्रा की शुरुआत महज पांच हजार की बीज राशि से हुई थी. और आज तक इस समूह ने 8000 से अधिक साबुन बेचे हैं और 5.2 लाख रुपये का राजस्व अर्जित किया है. यह न केवल आर्थिक सफलता है, बल्कि ग्रामीण महिलाओं की आत्मनिर्भरता की मजबूत मिसाल भी है. इस योजना से लाभान्वित महिलाओं में से एक हैं परवती बहन. उन्होंने इस परियोजना से 13,350 रुपये की कमाई की – जो उनके लिए सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि सम्मान, पहचान और आत्मविश्वास का प्रतीक है. वे आज ना केवल अपने परिवार का सहयोग कर रही हैं, बल्कि अन्य महिलाओं को भी प्रेरित कर रही हैं.
वहीं संस्था की इंचार्ज माया देवी ने बताया की सेवा भारत के द्वारा बकरी पालक महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम किया जा रहा है. उसके बाद SBI फाउंडेशन के फेलोशिप करने आए छात्रों के द्वारा बकरी के दूध से साबुन को बनाया गया. जो काफी अच्छा था. उसके बाद वह दिल्ली से इसका प्रशिक्षण प्राप्त कर सर्टिफिकेट ले आई, और यहां बकरी के दूध से साबुन बनाने का काम शुरू हुआ. इसमें महिलाओं का ग्रुप बना उसका बैंक में खाता खुलवाया गया. अब उन महिलाओं को तीन तरफ से इनकम हो रही है. और साबुन के गुणवत्ता और पैकेजिंग भी काफी बेहतर है.
वहीं सेवा भारत की जिला समन्वयक श्वेता ने बताया कि बिहार में महिलाएं बकरी पालन करती है पर उसे अपनी आय का कैसा साधन बनाएं यह उन्हें नहीं पता था. सेवा भारत ने महिलाओं को उन्नत बकरी पालन के प्रशिक्षण दिए. तो वही एसबीआई फाउंडेशन के फैलोशिप कर रहे छात्रों ने बकरी के दूध से कैसे साबुन बनाया जाए इस पर रिसर्च कर गोट मिल्क शॉप बनाने के यूनिट बनाने में काफी सहयोग दिया है. अब इस यूनिट को और आगे ले जाने की तैयारी की जा रही है ताकि बकरी पलक बहनों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके. वही महिलाओं ने बताया कि पहले उन्हें पैसे के लिए पति पर निर्भर रहना पड़ता था. पर अब उनके पास उनका खुद का पैसा है और जरूरत पड़ने पर वह अपने पति को मदद भी करती है.
अब यह नौ सदस्यीय समूह केवल उत्पाद बना ही नहीं रहा, बल्कि संगठित व्यापार की दिशा में आगे बढ़ रहा है. सेवा भारत के सहयोग से समूह की औपचारिक पंजीकरण प्रक्रिया चल रही है, ताकि भविष्य में यह अपनी पहचान के साथ स्वतंत्र और आत्मनिर्भर इकाई बन सके. इसके साथ-साथ महिलाओं को वित्तीय साक्षरता, विपणन कौशल और उत्पादन तकनीक का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ताकि वे आधुनिक बाज़ार की आवश्यकताओं को समझ सकें और अपने उत्पाद को सही तरीके से प्रस्तुत कर सकें.
SBI यूथ फॉर इंडिया फेलोशिप पिछले 14 वर्षों से भारत के ग्रामीण इलाकों में युवाओं को भेजकर शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और आजीविका जैसे क्षेत्रों में नवाचार और हस्तक्षेप के अवसर दे रही है. अब तक यह फेलोशिप 640 से अधिक फेलोज़ को देश के 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में भेज चुकी है और इस पहल के जरिए 1.5 लाख से अधिक लोगों की ज़िंदगी में बदलाव लाया गया है.
एक साबुन, एक सोच, एक बदलाव
‘अमूल्य' साबुन की कहानी बताती है कि अगर स्थानीय संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान को सही दिशा दी जाए, तो ग्रामीण महिलाएं खुद को आर्थिक रूप से सशक्त कर सकती हैं. यह केवल व्यवसाय नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का माध्यम बन चुका है. आज मुंगेर की महिलाएं आत्मविश्वास के साथ कह सकती हैं कि हम सिर्फ घर नहीं चलातीं, हम बिज़नेस भी चलाती हैं.