- बिहार के छोटेलाल महतो हार-जीत की परवाह किए बिना करीब 20 साल से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं.
- सिलेंडर पहुंचाने का काम करने वाले छोटेलाल को चुनावी चस्का ऐसा लगा है कि उन्हें उम्मीद है जीत एक दिन जरूर होगी
- पति के इस जुनून में पत्नी गीता भी पूरा साथ देती हैं और मुर्गी-बकरी पालकर चुनावी खर्च के लिए रकम जुटाती हैं
'मुर्गी पालते हैं, बकरी पालते हैं, अंडा बेचते हैं, 10-10 रुपया जमा करते हैं, चुकिया (पिगी बैंक जैसा मिट्टी का पॉट) में जमा करते हैं, इलेक्शन आता है तो हर 5 साल में फोड़ते हैं, उहे पैसा से पति को चुनाव लड़वाते हैं. जबतक जिंदा रहेंगे, चुनाव लड़वाएंगे. ऊपरवाला चाहा और नसीब में होगा तो जीतेंगे भी. हार नहीं मानना है.'
ये कहना है, सीमांचल के एक 'धरतीपकड़' उम्मीदवार छोटेलाल महतो की पत्नी गीता देवी का. वही छोटेलाल जो दूसरों के घर-घर सिलिंडर पहुंचाकर अपने घर का खर्च निकालते हैं. दूसरी ओर हैं उनकी पत्नी, जो मुर्गी-बकरी पालन कर पैसे जुटाती हैं, ताकि पति छोटेलाल हर बार चुनाव लड़ सकें.
वीडियो में देखिए, क्या कह रही हैं गीता देवी
'हार नहीं मानना है, मैदान में तो आना ही है'
NDTV से बातचीत के दौरान गीता देवी कहती हैं- हार नहीं मानना है, मैदान में तो आना ही है. वो एक सुर में अपनी बात कहती चली जाती हैं. पैसों के इंतजाम को लेकर बताते हुए वो कहती हैं- 'पैसा का इंतजाम करते ही करते हैं. मुर्गी पालते हैं, अंडा देती है, अंडा बेचते हैं. बकरी पालते हैं. उसका पैसा रखते हैं. 10-10 रुपया चुकिया में भरते हैं. जमा करते हैं.'
चुकिया एक तरह का मिट्टी का पॉट होता है, जिसमें पिगी बैंक की तरह पैसे डालने के लिए छेद बने होते हैं. भर जाने पर उसे फोड़कर पैसे निकाले जाते हैं. आगे गीता बताती हैं- 'इलेक्शन आता है तो यही चुकिया फोड़ते हैं. चुकिया खाली करने के बाद पति को बोलते हैं, जाओ मैदान में उतरो.'
आपका दिल जीत लेगी गीता की कहानी
गीता कहती हैं, 'जीतने के लिए हम पूरा सपोर्ट देंगे. जबतक जिंदा रहेंगे, तब तक साथ देंगे, चुनाव लड़ाएंगे. ऊपरवाला भगवान चाहेंगे तो कभी न कभी जीतेंगे. कभी न कभी नसीब जरूरे साथ देगा, सब नसीब का खेल है. हार तो नहिए मानेंगे, जबतक जिंदा हैं, तब तक लड़ेंगे.'
एक ऐसे दौर में जब रिश्तों के टूटने-बिखरने की खबरें लगभग हर दिन सामने आ रही हैं, छोटेलाल महतो और गीता देवी की जोड़ी अटूट प्रेम की कहानी है. पति छोटेलाल को पता है कि जीतने की गुंजाइश कम है. लेकिन वह हर बार लोकतंत्र के इस उत्सव में उतरते हैं और पत्नी हमेशा हौसला बनकर साथ खड़ी रहती है. उनके मन में एक विश्वास है कि कभी न कभी, कामयाब तो होंगे ही.
साल 2000 से ही चुनाव लड़ते आ रहे छोटे लाल का कहना है कि चुनाव लड़ने के लिए जनता इन्हें चंदा देती है. इसके अलावा उनकी पत्नी बकरी, मुर्गी और अंडा बेचकर चुनाव लड़ने के लिए रुपए इकट्ठा करती है. छोटेलाल की पत्नी का मानना है कि उनके पति छोटेलाल सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो लोगों के दुख और मुसीबत के वक्त साथ रहते हैं. उन्हें भरोसा है कि एक बार जनता उनको जरूर मौका देगी.
बार-बार हार भी उनका हौसला नहीं तोड़ पाती. हर बार नए और दोगुने हौसले के साथ कूद जाते हैं. अब एक बार फिर वो चुनावी मैदान में कूदने को तैयार हैं.
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