- बिहार चुनाव के लिए प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी की 51 कैंडिडेट्स की लिस्ट में जाति का पूरा ख्याल रखा गया है
- पार्टी ने सबसे ज्यादा 17 अति पिछड़ों (34%) को टिकट दिया है, ये जेडीयू के कोर वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं
- इसी तरह लिस्ट में 16% मुसलमान उम्मीदवारों को शामिल किया है, जो कहीं न कहीं आरजेडी को नुकसान पहुंचा सकते हैं
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने 51 कैंडिडेट्स की लिस्ट जारी कर दी है. पार्टी ने उम्मीदवारों के चयन में जाति का पूरा ख्याल रखा है. जनसुराज पार्टी ने 7 अनुसूचित जाति, 17 अति पिछड़ों, 11 पिछड़े, 8 अल्पसंख्यक और 8 सामान्य वर्ग के कैंडिडेट्स को टिकट दिया गया है. बिहार की राजनीति में तीसरे ध्रुव की तरह उभर रहे पीके ने एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए चुनावी समीकरणों को काफी जटिल बना दिया है.
आगामी चुनाव के लिए प्रशांत किशोर की रणनीति का अगर एनालिसिस किया जाए तो उन्होंने बिहार की आबादी के हिसाब से अपनी सीटों का बंटवारा किया है. बिहार की राजनीति में जाति आधारित सामाजिक समीकरण सबसे अहम भूमिका निभाते रहे हैं. यहां विकास या मुद्दों के साथ-साथ जातीय पहचान और सामाजिक प्रतिनिधित्व वोट का असली आधार बनते दिखे हैं.
आगामी चुनाव के लिए अपनी लिस्ट जारी करते समय पीके का सबसे ज्यादा जोर मुसलमानों और अति पिछड़ों पर रहा है. इसके जरिए उन्होंने आरजेडी और जेडीयू दोनों दलों के कोर वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है.
पीके ने अपनी लिस्ट में सबसे ज्यादा 17 अति पिछड़ों (EBC) को टिकट दिया है. कुल टिकटों में इनकी हिस्सेदारी 34 फीसदी है. बिहार में अति पिछड़ों की आबादी लगभग 36 फीसदी मानी जाती है. नीतीश कुमार की जेडीयू की अति पिछड़ों पर अच्छी पकड़ मानी जाती है. यह वर्ग ऐतिहासिक रूप से नीतीश कुमार की जेडीयू का सबसे वफादार वोट बैंक रहा है, जिसने उन्हें सुशासन बाबू की छवि बनाने में मदद की है. अपनी लिस्ट में 17 अति पिछड़ों को शामिल करके पीके ने वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति बनाई है.
पीके की लिस्ट में जिन 51 टिकटों का ऐलान किया गया है, उनमें से 16 फीसदी मुसलमान हैं. बिहार में मुस्लिम वोटर कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. पीके की स्ट्रेटिजी इसी वोट को साधने की दिखती है. इसका दूसरा मतलब ये भी हुआ कि कहीं न कहीं ये उम्मीदवार आरजेडी को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
प्रदेश की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग 17.7 फीसदी है. मुस्लिम वोटर वैसे तो सामाजिक रूप से अपर कास्ट, पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति आदि में बंटा हुआ है. लेकिन अधिकतर मुसलमान ओबीसी और ईबीसी कैटिगरी में आते हैं. इसके बावजूद चुनावों के दौरान ये एक समुदाय की तरह वोट करते हैं.
बिहार में मुस्लिम-यादव समीकरण पारंपरिक रूप से आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन का मजबूत स्तंभ रहा है. ऐसे में पीके बिहार में मुसलमानों की कुल आबादी की हिस्सेदारी तरह ही अपनी लिस्ट में मुस्लिम उम्मीदवारों को जगह देकर साफ कर दिया है कि उनकी नजर इस समुदाय के वोट बैंक पर है.
याद दिला दें कि बिहार में विधानसभा की कुल 243 सीटों के लिए दो चरणों में मतदान होना है. 6 नवंबर को पहले चरण की वोटिंग होगी. इस दौरान 121 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे. दूसरे चरण में 122 विधानसा सीटों के लिए वोटिंग होगी. प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या 7.42 करोड़ है. इसमें से पुरुष मतदाता 3.92 करोड़ और महिला मतदाता 3.50 करोड़ हैं. करीब 14 लाख वोटर पहली बार मतदान करेंगे. नतीजों का ऐलान 14 नवंबर को किया जाएगा.