धूप में सिर जल जाता है, बरसात में कॉपी गीली हो जाती... ऐसे हालात में पढ़ने को मजबूर हैं पश्चिमी चंपारण में बच्चे

प्रधानाध्यापक बताते हैं कि वर्ष 2008 में विद्यालय भवन निर्माण के लिए राशि आई थी. मगर जमीन विवाद और अतिक्रमण के कारण निर्माण शुरू ही नहीं हो सका. पैसा वापस चला गया और तब से अब तक स्थिति जस की तस है.(बिंदेश्वर कुमार की रिपोर्ट)

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • पश्चिमी चंपारण के पहाड़ी मझौआ प्राथमिक विद्यालय में 155 बच्चे और सात शिक्षक हैं, लेकिन कोई क्लासरूम नहीं
  • वर्ष 2008 में विद्यालय भवन के लिए राशि आई थी, लेकिन भूमि विवाद के कारण निर्माण नहीं हो पाया है
  • विद्यालय में शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे छात्राओं सहित बच्चों की सुरक्षा और सम्मान प्रभावित होता है
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
पश्चिमी चंपारण:

बिहार के पश्चिमी चंपारण के प्रखंड बगहा के पहाड़ी मझौआ प्राथमिक विद्यालय की स्थिति बेहद दयनीय है. यहां के छात्र ने कहा, "सर, धूप में सिर जल जाता है, बरसात में कॉपी गीली हो जाती है लेकिन फिर भी हम रोज स्कूल आते हैं." इन बच्चों की बात से साफ पता चलता है कि यहां शिक्षा हासिल करना बच्चों के लिए कितना मुश्किल है और एक जंग की तरह है, जहां उनके पास किताबें तो हैं लेकिन क्लासरूम नहीं हैं. छत तो दूर, चारदीवारी तक भी उन्हें नसीब नहीं होती है. यहां मासूम बच्चे आज भी खुले आसमान के नीचे पेड़ की छांव में पढ़ने के लिए मजबूर हैं. 

155 बच्चे, सात शिक्षक, लेकिन नहीं है भवन 

विद्यालय में कक्षा 1 से 5 तक कुल 155 बच्चे नामांकित हैं और सात शिक्षक हैं. मगर पढ़ाई के लिए न कोई क्लासरूम है, न ब्लैकबोर्ड की स्थायी व्यवस्था. गर्मी में तपती धूप बच्चों के स्वास्थ्य पर भारी पड़ती है. कई बार बच्चे बेहोश तक हो जाते हैं. बरसात में हालात और भी बिगड़ जाते हैं. पढ़ाई करना लगभग नामुमकिन हो जाता है. मजबूरी में प्रधानाध्यापक या तो बच्चों को घर भेज देते हैं या कुछ दूरी पर फूस से बने छोटी सी टूटी आंगनबाड़ी केंद्र में शरण लेने के लिए भेजते हैं लेकिन मासूम बच्चे तो पढ़ने के लिए आएंगे ही. लेकिन सबसे बड़ा डर यह है कि अगर अचानक आंधी-तूफान आए या बिजली गिरे तो जिम्मेदारी कौन लेगा? शिक्षा का यह मंदिर हर रोज बच्चों की जान से खेलने को मजबूर है.

2008 से अधर में भवन निर्माण 

प्रधानाध्यापक बताते हैं कि वर्ष 2008 में विद्यालय भवन निर्माण के लिए राशि आई थी. मगर जमीन विवाद और अतिक्रमण के कारण निर्माण शुरू ही नहीं हो सका. पैसा वापस चला गया और तब से अब तक स्थिति जस की तस है.

शौचालय तक नहीं, लड़कियां असुरक्षित 

छात्रों का कहना है कि विद्यालय में शौचालय की भी कोई व्यवस्था नहीं है. मजबूरन उन्हें खुले में शौच करना पड़ता है. यह न केवल असुरक्षा की स्थिति पैदा करता है बल्कि खासकर छात्राओं के लिए भय और शर्मिंदगी का कारण भी है.

ग्रामीणों में आक्रोश अब सिर्फ आश्वासन नहीं चलेगा 

गांव के ग्रामीणों का कहना है कि वे वर्षों से केवल आश्वासन सुनते आ रहे हैं. हर बार नेता और अधिकारी कहते हैं कि जल्द ही भवन बनेगा, लेकिन हकीकत बदलती नहीं. लेकिन इस बार प्रशासन को अपने वादे निभाने ही होंगे क्योंकि यह सिर्फ भवन का सवाल नहीं है, बल्कि सैकड़ों बच्चों के भविष्य का सवाल है.

शिक्षा पदाधिकारी का बयान 

बगहा प्रखंड की शिक्षा पदाधिकारी पुरन शर्मा बताते हैं कि यह विद्यालय “भूमिहीन और भवनहीन” है. उन्होंने बताया कि भूमि विवाद के कारण भवन का निर्माण अब तक नहीं हो पाया है. इस संबंध में अंचलाधिकारी को पत्र लिखा गया है लेकिन सवाल यह है कि कब तक बच्चे खुले आसमान के नीचे पढ़ाई करेंगे?

Advertisement

बच्चों के भविष्य पर सवाल 

साल दर साल नए सेशन शुरू होते हैं, बच्चे नामांकित होते हैं, मगर पढ़ाई अब भी पेड़ के नीचे ही होती है. क्या यही है सरकार की "शिक्षा पर विशेष ध्यान" देने की नीति? क्या मासूम बच्चों का भविष्य ऐसे ही असुरक्षित और अधूरा रह जाएगा?

डिजिटल इंडिया के दौर में पेड़ तले शिक्षा 

आज जब स्मार्ट क्लास, डिजिटल बोर्ड और नई शिक्षा नीति की चर्चा होती है, तब पहाड़ी मझौआ के ये नन्हें विद्यार्थी किताब थामे आसमान की ओर देख रहे होते हैं,मानो उम्मीद कर रहे हों कि एक दिन उन्हें भी सुरक्षित छत और पक्के क्लासरूम मिलेंगे.

Advertisement

कब बदलेगी तस्वीर 

शिक्षा की यह लड़ाई सिर्फ इन 155 बच्चों की नहीं है, बल्कि उस पूरे सिस्टम की परीक्षा है जो कहता है, शिक्षा सबका अधिकार है.” अगर इस बार भी प्रशासन ने कदम नहीं उठाया, तो आने वाली पीढ़ी के सपने यहीं पेड़ की जड़ों में दबकर रह जाएंगे.

Featured Video Of The Day
Bihar Election 2025: कितनी दौलत के मालिक Tejaswi Yadav? | RJD | Lalu Yadav