आप चाहे जिस भी पेशे में हो लेकिन एक मां होना सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण होता है. कुछ ऐसा ही मानना है भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की अधिकारी दिव्या मित्तल का. महिला दिवस के मौके पर दिव्या ने अपनी पेशेवर प्रतिबद्धताओं को संतुलित करते हुए मातृत्व की चुनौतियों पर एक इमोशनल पोस्ट लिखा. एक्स पर बात करते हुए, दिव्या ने स्वीकार किया कि भले ही उन्होंने भारत के दो सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों – आईआईटी और आईआईएम में पढ़ाई की हो और सिविल सेवक बनने के लिए देश की सबसे कठिन प्रवेश परीक्षा पास की हो, लेकिन इनमें से कोई भी उन्हें मां बनने की चुनौतियों के लिए तैयार नहीं कर सका.
मातृत्व चुनौतीपूर्ण
शनिवार को आईएएस अधिकारी ने दो बेटियों की परवरिश के साथ-साथ अपने चुनौतीपूर्ण करियर को संतुलित करने के बारे में कई विचार साझा किए. उन्होंने एक्स पर लिखा, "मैं एक आईएएस अधिकारी हूं. मैंने आईआईटी और आईआईएम से पढ़ाई की है. मैंने यह सब हासिल करने के लिए संघर्ष किया है. लेकिन मेरी दो बेटियों की परवरिश की चुनौतियों के लिए मैं कुछ भी तैयार नहीं कर सकी."
अगले ट्वीट में, उन्होंने खुलासा किया कि उनकी बड़ी बेटी आठ साल की है. " दुनिया पहले ही उसकी छोटी सी आवाज़ को बंद करने की कोशिश करती है. हम उन्हें अपनी रोशनी कम नहीं करने दे सकते." साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि एक अभिभावक के रूप में, उनका मानना है कि उनका कर्तव्य अपनी बेटियों को यह सिखाना है कि उनकी आवाज़ मायने रखती है, भले ही उन्हें आलोचना का सामना करना पड़े. उन्होंने कहा, "उसे सम्मानजनक लेकिन दृढ़ रहना सिखाएं. उसे बताएं कि उसकी आवाज़ मायने रखती है, भले ही वह कांपती हो."
इसके बाद दिव्या ने कबूल किया कि एक मां के रूप में अपनी जिम्मेदारियों के साथ-साथ अपने पेशेवर दायित्वों को बैलेंस करने से वह अक्सर इमोशनली थक जाती हैं. हालांकि, उन्होंने याद किया कि ऐसे समय में, उनकी बेटी के गले लगने से उन्हें याद आता है कि बच्चे अपने माता-पिता से सीखते हैं.
उन्होंने लिखा, "मैं कुछ रातें रोती हूं- थकी हुई, बहुत ज़्यादा तनाव में. लेकिन फिर वह मुझे गले लगाती है, कहती है, 'तुम मेरी हीरो हो.' वे हमें देखते हैं, वे हमारी असफलताओं से लचीलापन सीखते हैं. उसे दिखाएं कि गिरना और फिर उठना ठीक है."
उन्होंने आगे कहा कि उनकी नौकरी ने उन्हें सिखाया है कि उन्हें अपनी बेटियों को अपनी गलतियां करने देना चाहिए और उनसे सीखना चाहिए. "उनकी बैसाखी नहीं, उनका सहारा बनें. उन्हें गिरने दें और उठने दें. बस उन्हें दिखाएं कि चाहे कुछ भी हो जाए, आप उनके साथ रहेंगे."
दिव्या ने कहा कि मातृत्व अपराधबोध से भरा होता है और माताएं लगातार खुद से सवाल करती हैं. उनकी सलाह? "खुद को माफ़ करें. आप ही काफी हैं". वह आगे लिखती हैं, "अगर आपके एक से ज़्यादा बच्चे हैं, तो आपकी ज़िम्मेदारी 10 गुना ज़्यादा है. प्यार करने से भी ज्यादा, न्यायपूर्ण बनें. उन्हें समझाएं कि आप जो कर रहे हैं, उसे क्यों चुन रहे हैं. इससे उनका विश्व दृष्टिकोण आकार लेगा."
उन्होंने माताओं को सलाह दी कि वे जो भी करें, उसमें अपना बेस्ट दें, क्योंकि बच्चे अपने माता-पिता को देखकर सीखते हैं और बेटियों की परवरिश करने वाले माता-पिता के लिए, दिव्या ने सलाह दी, "उसे खुद के प्रति सच्चे रहना सिखाएं, उसकी भावनाएं ही उसकी संपत्ति हैं. उसे दुनिया को बेहतर बनाने के लिए सहानुभूति, प्रेम और दयालुता का इस्तेमाल करना सिखाएं."
उन्होंने कहा, "जीवन कोई लोकप्रियता प्रतियोगिता नहीं है. सम्मान पाने के लिए उसे पसंद किए जाने की ज़रूरत नहीं है. उसका मूल्य दूसरों की स्वीकृति में नहीं है. उसे केवल खुद को खुश करने की ज़रूरत है. उसे इतना प्यार दें कि कोई अस्वीकृति, कोई आलोचना, कोई सामाजिक मानक उसका आत्मविश्वास न तोड़ सके."
दिव्या की पोस्ट ने प्रतिक्रियाओं की झड़ी लगा दी है. एक यूजर ने लिखा, "बहुत सुंदर पोस्ट...जबकि मैं 10 साल के बेटे की मां हूं, मैं आपके सभी शब्दों से सहमत हूं. लड़कों के लिए भी जीवन उचित नहीं है. उनके अपने संघर्ष और दबाव होते हैं और मां के रूप में हमारे अपने होते हैं. पूरा विचार उन्हें आत्मविश्वास से सशक्त बनाना है ताकि वे अच्छी तरह से आगे बढ़ सकें."
दूसरे ने लिखा, "आईआईटी, आईआईएम और यूपीएससी में सफलता पाना तो केवल ट्यूटोरियल लेवल का मामला था. माता-पिता बनना? यही असली बॉस फाइट है."