सामान्यतः तन के आकार से शारीरिक शक्ति का अनुमान लगाया जाता है. आम धारणा के अनुसार, छोटी मछली बड़ी मछली से भयभीत रहती है और छोटा पक्षी बड़े पक्षियों से परे ही रहना पसंद करता है. कुछ हद तक यह सठीक भी है. किन्तु पक्षी जगत में एक अनोखे अंदाज़ वाला साहसी और निडर पक्षी भी है, जिसे भय से अधिक अपने अंडो एवं नवजात शिशुओं की हिफाजत और अपने अधिकार क्षेत्र की सुरक्षा की अधिक परवाह है. यह पक्षी है, काला ड्रोंगो (Dronogs). ड्रोंगो कि लम्बाई 28-30 सेंटीमीटर की होती है, वहीँ फाल्कन-बाज प्रजातियों के पक्षियों की लम्बाई 60-90 सेंटीमीटर तक की होती है.
आम तौर पर फाल्कन-बाज प्रजातियों के पक्षी अन्य छोटे पक्षियों के अंडे, चूज़े और कभी कभी छोटे आकर के वयस्क पक्षियों का भक्षण करते हैं. इसी कारण से, अन्य सभी छोटे पक्षी इन शिकारी पक्षियों से दूरी ही बनाये रखते हैं. किन्तु जिस कारण से अन्य छोटे पक्षी शिकारी पक्षियों से दूरी बनाये रखते हैं, ठीक उसी कारणवश, ड्रोंगो साहस के साथ, बड़े आक्रामक तरीके से, अपने क्षेत्र में उड़ते किसी भी शिकारी पक्षी को भागता है, और जरूरत पड़ने पर, चोंच से प्रहार भी करता है.
सामान्य तौर पर कहा जा सकता है कि, ड्रोंगो में अपने क्षेत्र और मेढ़ की रक्षात्मक प्रवृत्त्ति इतनी तीव्र है कि वह कई बार आक्रामक रूप भी ले लेता है. ड्रोंगो का यह बर्ताव लगभग साल भर देखा जा सकता है, ताकि भक्षक पक्षियों को ड्रोंगो के घोंसले की सठीक स्थानीय जानकारी और मौसम के साथ का सम्बन्ध ठीक ठीक न मालूम पड़ सके. शिकारी पक्षियों को भागने की प्रक्रिया में ड्रोंगो कई बार क्रोधपूर्ण ध्वनि में पुकारते भी हैं. इस वजह से, आस पास के दूसरे आक्रामक जीव भी सचेत हो जाते हैं, और ड्रोंगो के क्षेत्र से दूरी बना लेते हैं. ड्रोंगो की इन गतिविधियों का लाभ अन्य छोटे पक्षी भी लेने की कोशिश करते हैं.
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पक्षी शोधकर्ताओं ने पाया है कि, अक्सर ड्रोंगो के क्षेत्र में पीलक (ओरियोल), बुलबुल, सात भाई (बब्बलर), कबूतर जातीय पक्षी आदि अपने घोसले बनाना पसंद करते हैं, क्यूँकि शिकारी पक्षियों को भगा देने से वह पूरा इलाका महफूज़ हो जाता हैं. इस कारण से ड्रोंगो को अक्सर पक्षियों का 'कोतवाल' भी कहा जाता हैं. अधिकतर ये सभी वैसे पक्षी होते हैं, जिनके आहार ड्रोंगो से भिन्न होते हैं. ड्रोंगो अधिकतर कीट पतंगों को खाते हैं. उन्हें कभी कभार फूलों से रास अथवा अन्न के दाने भी चुगते देखा गया हैं. ड्रोंगो और मैना में कभी कभी कीट पतंग के कुछ दुर्लभ प्रजातियों को लेकर प्रतिस्पर्धा भी हो सकती हैं. ऐसे मौकों पर ड्रोंगो बड़ी चालाकी से शिकरा, जो की एक शिकारी पक्षी की आवाज़ की नक़ल कर, मैना के मन में शिकरा के आस पास होने का भय पैदा कर देता हैं और प्रतिस्पर्धा को जीत लेता हैं.
ड्रोंगो ज्यादात्तर खुले एवं काम घनत्व वाले जंगलों में, घांसीय मैदानों में, खेतों के आस पास देखे जा सकते हैं. शहरों एवं मानवीय बस्तियों के नज़दीक भी ड्रोंगो के दिखने की संभावना अच्छी ही हैं. दिखने में यह पक्षी काक के ही सामान काळा रंग का होता हैं, और इसकी आँखों की पुतलियाँ भूरे रंग की होती हैं. इसके अन्य प्रजातियों में पूँछ का आकार दो नोक वाला या बैडमिंटन के रैकेट के समान होता हैं. बसंत ऋतू में सेमल के लाल फूलों के साथ काले ड्रोंगो का दृश्य अति सुन्दर जान पड़ता हैं. वन्यजीवों में, पक्षियों का अवलोकन करना, सबसे सरल हैं और यह कार्य हम शहरों में भी कर सकते हैं.
जहाँ भी पेड़ों के झुरमुठ हों, बगिया हो या पार्क हो, पंछियों का बसेरा हो ही जाता हैं. इस कारण से पक्षी सबसे आसान तरीके से हमें प्रकृति से जोड़ने में सक्षम होते हैं. प्रकृति और उसके विभिन्न कार्य कलापों का अवलोकन करने से न सिर्फ हमारा मन खुश रहता हैं, बल्कि हमें कुछ न कुछ सीखने को ही मिलता हैं. जैसा की हमने ड्रोंगो के सन्दर्भ में जाना की शरीर का आकार ख़ास मायने नहीं रखता, किन्तु साहस और कुशलता बड़े छोटे का भेद मिटा सकते हैं. हम मनुष्य भी अक्सर स्वयं को कई मनघड़ंत बेड़ियों में जकड़े रहते हैं. ड्रोंगो के समान यदि हम भी अपने हौसलों को बुलंद रखें, तो अपने से बड़े कद वाले शत्रुओं पर भी काबू पा सकते हैं.
लेखिका - प्रियम्वदा बगरीया भू-स्थानिक विश्लेषण में विशेषज्ञता प्राप्त, शोधकर्ता हैं और कोलकाता में एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में अंशकालिक फैकल्टी हैं.
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