Rare flower: जब भी हमारे जीवन में कोई ऐसा काम पूरा होता है, जिसका हम लंबे समय से इंतज़ार कर रहे होते हैं या फिर जिसका पूरा होना हमारे लिए किसी असंभव काम जैसा होता है. और जब ऐसा कोई भी बड़ा काम पूरा होता है, तो हमें एक सदमा सा लगता है. बिलकुल वैसे ही जैसे सोशल मीडिया पर छाए एक पर्यावरणविद के साथ हुआ है. सुमात्रा के घने वर्षावनों के बीच 13 साल से इंतज़ार कर रहे पर्यावरणविद सेप्टियन आंद्रिकी उर्फ ‘डेकी' घुटनों के बल बैठे रो रहे थे, लेकिन किसी गम में नहीं. उनकी आंखों से बहते आंसू खुशी, राहत और कुदरत के प्रति उनके समर्पण के थे. उनके ठीक सामने वह दुर्लभ नज़ारा मौजूद था जिसे देखने के लिए उन्होंने अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा जंगलों में गुजार दिया, दुर्लभ फूल ‘रैफलेसिया हैसेल्टी' का खिलना.
यह वही फूल है जिसे पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से किसी इंसान ने अपनी आंखों से जंगल में नहीं देखा था. ‘एबीसी' की रिपोर्ट के अनुसार, डेकी और उनकी टीम को एक स्थानीय रेंजर से गुप्त जानकारी मिली कि एक दुर्लभ कली जंगल की गहराई में देखी गई है. इसके बाद टीम ने बाघों से भरे इलाके, मुश्किल चढ़ाई और फोन की खत्म होती बैटरी के बीच 23 घंटे की थकाऊ यात्रा की. डेकी कहते हैं, “13 साल का इंतजार, 23 घंटे का सफर… जब वह पल आया, मैं सिर्फ रो सका.”
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इस ऐतिहासिक पल को यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड बोटेनिक गार्डन के डिप्टी डायरेक्टर क्रिस थोरोगुड ने अपने कैमरे में कैद किया. वीडियो अब वायरल है और दुनियाभर को भावुक कर रहा है. रैफलेसिया की कई प्रजातियां ‘कॉर्प्स लिली' यानी ‘शव फूल' के नाम से जानी जाती हैं, क्योंकि इनमें सड़े मांस जैसी तेज गंध आती है. ये फूल 1 मीटर तक चौड़े और 6 किलो तक भारी हो सकते हैं. लेकिन ‘रैफलेसिया हैसेल्टी' सबसे दुर्लभ है.
डॉ. थोरोगुड कहते हैं- “यह सबसे खूबसूरत है, सफेद पंखुड़ियों पर लाल धब्बे, मानो प्रकृति ने इसे खुद अपने हाथों से सजाया हो.” इस प्रजाति की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि...
• कली को विकसित होने में 9 महीने लगते हैं
• लेकिन यह सिर्फ कुछ दिनों के लिए खिलता है
• सही समय पर पहुंचना भूसे के ढेर में सुई ढूंढने जैसा
जिस जगह यह फूल था, वह सुमात्रा के बाघों और गैंडों का इलाका है.
चांदनी रात में हुआ ‘चमत्कार'
जब डेकी, डॉ. थोरोगुड और रेंजर इस्वांडी मंज़िल पर पहुंचे, तब फूल अभी बंद था. रेंजर ने चेतावनी दी- “यह बाघों का गढ़ है, रात यहां सुरक्षित नहीं.” लेकिन डेकी पीछे हटने को तैयार नहीं थे. उन्होंने कहा- “हमें यहां एक घंटा और रुकना होगा.” और फिर आया वह जादुई पल- चांदनी रात में फूल ने धीरे-धीरे अपनी पंखुड़ियां खोलनी शुरू कीं.
डॉ. थोरोगुड कहते हैं- “वह नज़ारा किसी जादू से कम नहीं था. ऐसा लगा जैसे प्रकृति हमारी आंखों के सामने सांस ले रही हो.” डेकी ने इसे अपने बच्चे के जन्म जैसा बताया- “रैफलेसिया का 9 महीने का जीवन चक्र मां के गर्भ जैसा है. उसे खिलते देखना, जैसे पहली बार अपने बच्चे को देखना.”
जब ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने इस खोज की पोस्ट की, तो विवाद खड़ा हुआ. कुछ ने आरोप लगाया कि स्थानीय गाइडों- डेकी और इस्वांडी को पूरा श्रेय नहीं दिया गया. बाद में यूनिवर्सिटी ने सफाई दी और दोनों का सार्वजनिक आभार व्यक्त किया.
यह कहानी सिर्फ एक फूल के खिलने की नहीं, यह उस जज्बे, जुनून और संरक्षण की कहानी है जो बताता है कि डेकी जैसे लोग अब भी मौजूद हैं और इसलिए धरती की अनमोल धरोहरें बची हुई हैं. डेकी के इंस्टाग्राम पर ऐसे दुर्लभ फूलों की अनगिनत तस्वीरें हैं. उन्हें 14,000 से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं.
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