मंकीपॉक्स वायरस अब तक दो दर्जन देशों में फैल चुका है. संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने इस "असामान्य स्थिति" पर चिंता व्यक्त की है. साथ ही इस बात को दोहराया है कि वायरस से घबराने का कोई कारण नहीं है. यह आमतौर पर गंभीर बीमारी का कारण नहीं बनता है. डब्ल्यूएचओ ने सोमवार को कहा कि उसे अफ्रीकी देशों से बाहर मंकीपॉक्स के प्रसार को लेकर उतनी चिंता नहीं है, क्योंकि उसे नहीं लगता कि यह एक वैश्विक महामारी का रूप लेगा. बता दें कि ब्रिटेन ने पहली बार 7 मई को मंकीपॉक्स के एक मामले की सूचना दी थी. अब तक दो दर्जन देशों में लगभग 400 संदिग्ध और कन्फर्म मामले मिले हैं.
डब्ल्यूएचओ के टॉप मंकीपॉक्स विशेषज्ञ से एक ब्रीफिंग के दौरान जब यह पूछा गया कि यह वायरस जो पश्चिम और मध्य अफ्रीकी देशों में पाया गया है. क्या यह एक और महामारी को जन्म दे सकता है. इस सवाल के जवाब में डब्ल्यूएचओ के टॉप मंकीपॉक्स विशेषज्ञ रोसमंड लुईस (Rosamund Lewis) ने कहा कि "हम नहीं जानते" उन्होंने कहा कि इस वायरस के प्रसार पर लगाम लगाने के लिए तेजी से कदम उठाना होगा. अभी इसे रोकना संभव है. हालांकि, उन्होंने कहां कि हमें नहीं लगता कि इससे डरना चाहिए.
विशेषज्ञ यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि वायरस अचानक उन देशों में क्यों फैलना शुरू हो गया है, जहां यह पहले कभी नहीं देखा गया है. मुख्य रूप से युवा पुरुषों में. एक सिद्धांत यह है कि 45 वर्ष से कम आयु के लोगों में मंकीपॉक्स अधिक आसानी से फैल रहा है, जिन्हें चेचक का टीका नहीं लगाया गया होगा. चेचक के लिए विकसित टीके भी मंकीपॉक्स को रोकने में लगभग 85 प्रतिशत प्रभावी पाए गए हैं, लेकिन उनकी आपूर्ति कम है.
डब्ल्यूएचओ के एक अधिकारी ने कहा कि हम चिंतित हैं कि यह कहीं चेचक की जगह न ले लें. उन्होंने वायरस को लेकर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने की बात कही है. साथ ही संक्रमित लोगों को अलग करने और उनके संपर्कों को ट्रैक करने के पर जोर दिया है. अब तक कई मामले पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाने वाले युवकों से जुड़े हैं.
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