लगता है हमारी कब्र यहीं बनेगी... 3 मासूम बेटियों के साथ गाजा में फंसी इस मां का दर्द रुला देगा

टूटी इमारतें, मलबे के ढेर और उनके बीच कुछ लोग जहां-तहां उम्मीद की डोर थामे बैठे हैं. गाजा में एक बेसमेंट में घायल पड़ी हसीरा दर्द से कराहते हुए एक ही बात कहती हैं- लगता है हमारी कब्र यहीं बन जाएगी. हम मर जाएंगे.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins

इजरायल के भीषण हमलों में गाजा सिटी का जर्रा-जर्रा कांप रहा है. हर तरफ तबाही का मंजर है. टूटी इमारतें, मलबे के ढेर और उनके बीच जहां-तहां कुछ लोग उम्मीद की डोर थामे बैठे हैं. नूर अबू हसीरा और उनके तीन मासूम बेटियां भी इनमें से एक हैं. गाजा शहर में एक मकान के बेसमेंट में घायल पड़ी हसीरा दर्द से कराहते हुए एक ही बात कहती हैं- लगता है हमारी कब्र यहीं बन जाएगी. हम मर जाएंगे, पर कहीं और नहीं जाएंगे. गाजा में ऐसी कहानी सिर्फ हसीरा की नहीं है. 

7 अक्तूबर 2023 को हमास के आतंकियों ने इजरायल पर हमला किया था. 1200 लोगों को मार दिया था और 251 को अगवा कर लिया था. उसके बाद से पूरे गाजा पर इजरायल का कहर आफत बनकर बरस रहा है. गाजा की हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक, इजरायली हवाई हमलों में अब तक 65 हजार से अधिक फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं. 

Photo Credit: सांकेतिक तस्वीर

हसीरा गाजा के जिस अपार्टमेंट में रहती थीं, उस पर दिसंबर में इजरायल ने हमला बोल दिया था. हसीरा और उनके तीनों बच्चे कंक्रीट के पिलर के नीचे दब गए थे. हसीरा के कंधे, पीठ और पैरों में चोट लगी. वह कोमा में चली गईं. हसीरा बताती हैं कि जब उन्हें होश आया तो अस्पताल में थीं. उनके पास लेटी छोटी बेटी के सिर में फ्रैक्चर था.  उसके बाद से इजरायली सैनिक कई बार अस्पताल में छापे मार चुके हैं और उनके पति रायद समेत तमाम लोगों को पकड़कर ले जा चुके हैं.

हसीरा जंग शुरू होने से करीब 8 महीने पहले अपने पति और तीन बेटियों के साथ गाजा सिटी के एक अपार्टमेंट में रहने आई थीं. वह मेडिकल लैब में टेक्निशियन का काम करती थीं. उनके पति रायद पत्रकार थे. अब वह इजरायल के कब्जे में हैं. रायद पर हमास से संबंधित मीडिया में काम करने का आरोप लगाया. हालांकि  हसीरा कहती हैं कि उनके पति का किसी आतंकी संगठन से कोई संबंध नहीं है. 

जंग शुरू होने से पहले गाजा सिटी में करीब 10 लाख लोग रहते थे. लेकिन 23 महीने से चल रही लड़ाई के बीच अधिकांश लोग दूसरी जगह जा चुके हैं. हसीरा अपनी तीन बेटियों- जौरी, मारिया और माहा के साथ बेसमेंट में जान छिपाकर रह रही हैं. हसीरा बताती हैं कि उन्होंने और उनके पति ने 10 साल तक पाई-पाई बचाकर इतनी रकम इकट्ठा की थी कि अच्छी जिंदगी गुजर बसर कर सकें, लेकिन इस जंग में सबकुछ तबाह हो चुका है. 

हसीरा के पास अब खाना खरीदने के लिए भी पर्याप्त रकम नहीं है. युद्ध की वजह से खाने-पीने की चीजों के दाम आसमान पर हैं. एक किलो आटा 60 डॉलर (लगभग 5 हजार भारतीय रुपये) और एक किलो चीनी के दाम 180 डॉलर (करीब 16 हजार भारतीय रुपये) तक पहुंच गए हैं. रोजमर्रा की जरूरत की चीजों की भयानक किल्लत है. लोग भूखे भटक रहे हैं. 

इस हालात में भी गाजा में रहने को मजबूर हसीरा कहती हैं कि वह दक्षिणी गाजा तक जाने और वहां टेंट लगाने के लिए 2000 डॉलर कहां से लाएं. घायल होने के कारण वह चल-फिर नहीं सकतीं. वहां जाने पर भी मुसीबतें खत्म नहीं होंगी. टेंट में बेटियों की सुरक्षा, पीने का पानी, ठंड से बचने के इंतजाम और कीड़े-मकोड़ों का खतरा रहेगा. 

Advertisement

हसीरा गाजा में अब तक 11 जगह  बदल चुकी हैं. लेकिन हर जगह जान का खतरा लगा रहता है. जब भी बम गिरता है या ड्रोन आसपास मंडराता है तो सबकी सांस रुक जाती है. हसीरा कहती हैं कि हम टूट चुके हैं, लेकिन इस जगह को छोड़कर कैसे जाएं. लगता है मेरी और मेरी बेटियों की कब्र यहीं बनेगी. 

Featured Video Of The Day
IPS Puran Case में अबतक क्या-क्या हुआ? 4 पूर्व DGP बताएंगे, मिस्ट्री सुलझाएंगे | सबसे बड़ी डिबेट
Topics mentioned in this article