कोरोना के मामूली लक्षण से भी सिकुड़ सकता है दिमाग, रिसर्च में हुआ खुलासा

SARS-CoV-2 वायरस को व्यापक रूप से एक श्वसन रोगज़नक़ माना जाता है जो इंसान के फेफड़ों पर हमला करता है. जिससे भ्रम, स्ट्रोक और न्यूरोमस्कुलर होने का खतरना रहता हैं. वहीं एकाग्रता में कमी सिरदर्द, अवसाद और यहां तक कि मनोविकृति महीनों तक बनी रह सकती है.

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कोविड दिमाग पर भी डालता है असर
नई दिल्ली:

दुनियाभर में कोरोना (Corona) ने किस तरह की तबाही मचाई, ये किसी से छिपा नहीं है. कोरोना ने न सिर्फ लोगों की जान ली बल्कि कई और बीमारियों के लक्षणों को जन्म दे दिया.अब एक और रिसर्च (Research) में सामने आया है कि कोरोना (Corona) के हल्के लक्षण भी इंसानी दिमाग को सिकोड़ सकते हैं. इसका खुलासा तब हुआ जब इंसान के कोरोना संक्रमण से पहले और बाद की स्कैन रिपोर्ट को जांचा गया. जिसमें दोनों स्थिति में इंसानी दिमाग में अंतर नजर आया.

ब्लूमबर्ग में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक शोध में एक ध्यान रखने वाली बात ये है कि इस बारे में अभी मालूम नहीं हुआ है कि ये बदलाव स्थाई या नहीं. ये रिसर्च हाल ही में नेचर जनरल में प्रकाशित हुई. SARS-CoV-2 वायरस को एक श्वसन रोगज़नक़ माना जाता है जो इंसान के फेफड़ों (Lungs) पर हमला करता है. जिससे भ्रम, स्ट्रोक और न्यूरोमस्कुलर होने का खतरा बना रहता हैं. वहीं एकाग्रता में कमी सिरदर्द, अवसाद और यहां तक कि मनोविकृति महीनों तक बनी रह सकती है.

इस रिसर्च (Research) के दौरान पहले 785 लोगों के दिमाग का प्रारंभिक एमआरआई स्कैन (MRI Scan) किया गया. फिर बाद में कोविड संक्रमति लोगों का स्कैन किया गया. लेकिन संक्रमित होने वाले प्रतिभागियों में मस्तिष्क कैसे बदल गया था, इस रिपोर्ट को देख रिसर्चर काफी आश्चर्यचकित थे. जिन्हें कोरोना (Corona) नहीं हुआ उनके मुकाबले संक्रमित लोगों के समूह के मस्तिष्क के आकार में 0.2% से 2% अधिक कमी दिखी. यह सेरिबैलम के एक विशिष्ट हिस्से में शोष, या सिकुड़न से जुड़ा था. जो लोग कोविड से उभरे थे उनके लिए जटिल कार्य करना भी थोड़ा मुश्किल था.

वृद्ध लोगों में संक्रमित और गैर-संक्रमित प्रतिभागियों के बीच ये अंतर और ज्यादा स्पष्ट था. प्रोफेसर सेरेना स्पुडिच ने कहा, मरीजों से रक्त और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के नमूनों के अध्ययन की जरूरत है, जिसके परिणामस्वरूप इन मस्तिष्क परिवर्तनों का परिणाम आता है. उन्होंने कहा कि हाल के शोध से मस्तिष्क की कनेक्टिविटी और संरचना की प्लास्टिसिटी का पता चला है. निष्कर्ष बताते हैं कि क्षतिग्रस्त न्यूरोनल मार्गों का नवीनीकरण हो सकता है.

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ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में वेलकम सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव न्यूरोइमेजिंग के प्रमुख लेखक प्रो ग्वेनले डौड ने कहा कि हम अनिवार्य रूप से हल्के संक्रमण को देख रहे थे. हम ये साफ अंतर देख सकते हैं और उनके मस्तिष्क में कितना अंतर था. उन लोगों की तुलना में जो संक्रमित नहीं हुए थे, उनमें ये बदलाव काफी आश्चर्य की बात थी. शोध से मालूम हुआ कि मस्तिष्क-आधारित परिवर्तन SARS-CoV-2 संक्रमण के बाद हो सकते हैं, यहां तक कि उन लोगों में भी जिन्हें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं थी.

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