Explainer : Sri Lanka में अर्श से फर्श तक ऐसे आए राष्ट्रपति Gotabaya Rajapaksa

साल 2009 में गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) ने अपने भाई महिंदा राजपक्षे (Mahinda Rajapaksa) की सरकार में क्रूर सैन्य अभियान की अगुवाई की थी जिसमें तमिल अलगाववादी विद्रोहियों को उन्होंने दशकों चले गृह युद्ध के बाद कुचल दिया था. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इस संर्घष में करीब 40,000 श्रीलंकाई नागरिक मारे गए. श्रीलंकाई सेना ने इन्हें कथित नो-फायर ज़ोन में ले जाकर बम से उड़ा दिया था.   

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Sri Lanka Crisis : Gotabaya Rajapaksa श्रीलंकाई राष्ट्रपति के ताकतवर पद से फिसल कर पड़ोसी देश में राजनैतिक शरणार्थी बन गए हैं (File Photo)

श्रीलंका (Sri Lanka) के राष्ट्रपति गोटाबााया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) श्रीलंका की सत्ता में समृद्धि और वैभव लाने का वादा करते हुए आए थे लेकिन संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुसार आज श्रीलंका मानवीय मदद के लिए भी तरस रहा है.  साल  2019 में उन्हें श्रीलंकाई आम चुनाव जीतने का पूरा भरोसा था. इन चुनावों में उनके बहुसंख्यक सिंहली-बौद्ध समाज ने उन्हें भारी समर्थन दिया था. श्रीलंका के प्रभावशाली बौद्ध समुदाय के लिए वो सिंहली योद्धा महान राजा दुतुगेमुनु का अवतार थे, जिन्हें एक तमिल राजा से जीतने के लिए जाना जाता है.  दुतुगेमुनू (Dutugemunu) ने 24 साल राज किया था लेकिन राजपक्षे को सत्ता छोड़कर केवल तीन साल से कम समय में ही भागना पड़ा.

अगर गोटाबाया राजपक्षे इस्तीफा दे देते हैं तो इससे वो श्रीलंका में सबसे कम समय तक सत्ता में रहने वाले चुने हुए राष्ट्रपति बन जाएंगे. जनाक्रोश से बचने के लिए गोटाबाया ने बुधवार को मालदीव में शरण ली जहां से फोन करके उन्हें दिन के अंत तक अपना इस्तीफा भेजने की सूचना श्रीलंका के स्पीकर को दी है. गोटाबाया श्रीलंका के राष्ट्रपति के ताकतवर पद से फिसल कर पड़ोसी देश में बड़े राजनैतिक शरणार्थी की भूमिका में आ गए हैं, जिन्हें एक एयरपोर्ट स्टाफ ने दुबई के लिए उड़ान भरने देने से मना कर दिया था. श्रीलंका का आसमान कई दिनों से #GoHomeGota, यानि गोटा घर जाओ के नारों से गूंज रहा था. पिछले दिनों श्रीलंका की संसद में भी यही नारा गूंजा था और उन्हें बीच सभा से संसद से बाहर निकलना पड़ा था.  

"टर्मिनेटर" गोटाबाया का पतन 

इससे कई साल पहले साल 2009 में उन्होंने अपने भाई महिंदा राजपक्षे की सरकार में क्रूर सैन्य अभियान की अगुवाई की थी जिसमें तमिल अलगाववादी विद्रोहियों को उन्होंने दशकों चले गृह युद्ध के बाद कुचल दिया था.  संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इस संर्घष के आखिरी हफ्तों में बहुत खून खराबा हुआ. करीब 40,000 श्रीलंकाई नागरिक मारे गए और श्रीलंकाई सेना ने इन्हें कथित नो-फायर ज़ोन में ले जाकर बम से उड़ा दिया था.   

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रॉयटर्स के अनुसार,  गोटाबाया इन आरोपों से इंकार करते हैं लेकिन इन आरोपों ने बहुसंख्यक सिंहली समुदाय में उनकी सख्त प्रशासक की छवि को मजबूत किया.  गोटाबाया इस आरोप से भी इंकार करते हैं कि वो उस हत्यारे गुट के पीछे हैं जो सफेद वैन में उनके दर्जनों विरोधियों को गायब कर चुके हैं. महिंदा राजपक्षे के शासन के दौरान ऐसी घटनाओं में कई पत्रकार और विपक्षी नेता गायब हुए. कथित तौर पर उनकी गैर-न्यायिक हत्या की गई.  उनका अपना परिवार उन्हें टर्मिनेटर कहता था और गोटाबाया को उनके गर्म स्वभाव की वजह से जाना जाता है.  

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आर्थिक कुप्रबंधन के आरोप 

जब हजारों प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति गोटाबाया के आधिकारिक आवास पर कब्जा लिया तो  73 साल के नेता को बुधवार को मालदीव भागना पड़ा. यह महीनों चले विरोध प्रदर्शन के बाद हुआ जब प्रदर्शनकारी आर्थिक संकट के कारण उनके इस्तीफे की मांग कर रहे थे. आर्थिक संकट कोरोना महामारी के कारण तेज हुआ लेकिन कुप्रबंधन इसे संभाल नहीं पाया.  

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राजपक्षे परिवार देश की आर्थिक बदहाली और अस्थिरता का आरोप झेल रहा है. हजारों प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के परिवार, उनकी संपत्ति और उनके समर्थकों के पीछे हाथ-धो कर पड़े हुए हैं.  गोटाबाया राजपक्षे को सालों तक श्रीलंका की सत्ता का सुख भोगने के बाद सेना की शरण में राष्ट्रपति भवन छोड़ कर भागना पड़ा.

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जनाक्रोश से बचने के लिए गोटाबाया ने बुधवार को मालदीव में शरण ली जहां से फोन करके उन्हें दिन के अंत तक अपना इस्तीफा भेजने की सूचना श्रीलंका के स्पीकर को दी है. गोटाबाया श्रीलंका के राष्ट्रपति के ताकतवर पद से फिसल कर पड़ोसी देश में बड़े राजनैतिक शरणार्थी की भूमिका में आ गए हैं, जिन्हें एक एयरपोर्ट स्टाफ ने दुबई के लिए उड़ान भरने देने से मना कर दिया था.  

गोटाबाया की कमज़ोरी,ताकत और कोरोना 

गोटाबाया राजपक्षे चार भाईयों के उस राजनैतिक घराने से आते हैं जिसने पिछले कई साल से श्रीलंका पर राज किया था. लेकिन गोटाबाया का यह हाल  महीनों चले विरोध प्रदर्शन के बाद हुआ जब प्रदर्शनकारी आर्थिक संकट के कारण उनके इस्तीफे की मांग कर रहे थे. आर्थिक संकट कोरोना महामारी के कारण तेज हुआ लेकिन कुप्रबंधन इसे संभाल नहीं पाया.  

गोटाबाया 21 साल की उम्र में सेना में शामिल हो गए थे जहां वो लेफ्टिनेंट कर्नल की रैंक तक पहुंचे और फिर समय से पहले रिटायरमेंट ले लिया था. पूर्व सैनिक गोटाबाया कम राजनैतिक अनुभव होने को अपनी ताकत समझते थे लेकिन तमिल सांसद धर्मलिंगम सीथादाथन कहते हैं कि राजपक्षे जिसे अपनी ताकत समझते थे वो उनकी कमजोरी निकला.   

AFP से उन्होंने कहा, " जिनती बार मैं उनसे मिला, उन्होंने कहा कि वो अर्थव्यवस्था और कानून-व्यवस्था पर ध्यान देंगे. लेकिन वो दोनों ही कामों में विफल रहे.  
 

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