जानें रूस ने कहां रोका युद्ध? अजरबैजान के नागोर्नो-काराबाख से क्यों भाग रहे हैं आर्मेनियाई मूल के लोग?

नागोर्नो-काराबाख के आर्मेनियाई मूल के लोगों को लेकर अंतरराष्ट्रीय जगत की चिंता बढ़ गई है. अज़रबैजान की सेना के इस क्षेत्र पर कब्ज़े के बाद यहां से हज़ारों की तादाद में शरणार्थी आर्मेनिया पहुंच रहे हैं.

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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

रूस बेशक इस वक्त खुद यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझा हुआ है, लेकिन उसने मध्यस्थता कर एक युद्ध को फ़िलहाल के लिए रोक दिया है. अज़रबैजान और उससे अलग हुए क्षेत्र नागोर्नो-काराबाख के बीच बने जंग जैसे हालात में रूस ने मध्यस्थता की. दक्षिणी कौकसस स्थित नागोर्नो-काराबाख एक विवादित क्षेत्र है, जो 1990 के दशक में अज़रबैजान से अलग हो गया था. हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे अज़रबैजान के हिस्से के तौर पर ही मान्यता मिलती रही है.

लेकिन अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच 1994 में प्रथम नागोर्नो-काराबाख युद्ध के बाद से इसके अधिकतर हिस्से पर रिपब्लिक ऑफ़ अर्टसाख जिसे कि नागोर्नो-काराबाख रिपब्लिक के तौर पर भी जाना जाता है, उसका शासन रहा है. इस क्षेत्र में 1 लाख 20 हज़ार लोग रहते हैं जो अधिकतर आर्मेनियाई समुदाय के हैं.

रूस ने 500 शांति दूतों को नागोर्नो-काराबाख में किया तैनात
आर्मेनियाई लोगों की मंशा इस क्षेत्र को या तो आज़ाद मुल्क़ या फिर आर्मेनिया के हिस्से के तौर पर देखने की रही है. ज़ाहिर है कि अज़रबैजान को ये क़तई मंज़ूर नहीं था. सितंबर 2020 में अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच इस क्षेत्र को लेकर दूसरा युद्ध शुरू हो गया. अज़रबैजान की सेना ने नागोर्नो-काराबाख के एक बड़े हिस्से और उसके आसपास के अलग हुए क्षेत्रों को अपने कब्ज़े में ले लिया. नवंबर 2020 में रूस की मध्यस्थता में युद्धविराम हुआ. शर्तों के मुताबिक़ आर्मेनिया को नागोर्नो-काराबाख के आसपास के कब्ज़े वाले क्षेत्र अज़रबैजान को लौटाना पड़ा. रूस ने अपने क़रीब 5000 पीस कीपर्स या शांति दूतों को नागोर्नो-काराबाख में तैनात किया, ताकि युद्ध फिर से न भड़के.

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ताज़ा हालात ये हैं कि 19 सितंबर 2023 को दोनों पक्षों के बीच फिर से संघर्ष शुरू हुआ. दोनों तरफ़ से टैंक और भारी हथियारों के इस्तेमाल के आरोप लगे. 24 घंटे तक युद्ध जैसे हालात रहे.

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रिपोर्ट्स के मुताबिक़ दर्जनों आर्मेनियाई अलगाववादी लड़ाकों की मौत हुई. कुछ सैन्य नुकसान अज़रबैजान का भी हुआ. आर्मेनिया मूल के लोगों ने दुनिया के देशों से मदद की अपील की. उन्होंने कहा कि दुनिया ने उन्हें अकेला छोड़ दिया है, लेकिन अज़रबैजान ने बड़ा सैन्य अभियान चलाकर नागोर्नो-काराबाख पर पूरी तरह अपनी पकड़ बना ली है.

यहां से आ रही तस्वीरों में दिख रहा है कि यहां के अलगाववादी आर्मेनियाई लड़ाकों ने हथियार डालने शुरू कर दिए हैं. रूस की मध्यस्थता के बाद अज़रबैजान और अलगाववादी आर्मेनियाई लड़कों के बीच ये सहमति बनी है. सरेंडर किए गए हथियारों में स्नाइपर राइफ़ल्स, असॉल्ट हथियार, रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड्स और टैंक शामिल हैं.

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हालांकि यहां के आर्मेनियाई मूल के लोगों को लेकर अंतरराष्ट्रीय जगत की चिंता बढ़ गई है. अज़रबैजान की सेना के इस क्षेत्र पर कब्ज़े के बाद यहां से हज़ारों की तादाद में शरणार्थी आर्मेनिया पहुंच रहे हैं. आर्मेनिया सरकार के मुताबिक़ सोमवार सुबह तक 3 हज़ार शरणार्थी सीमा पार कर चुके थे. हज़ारों और रास्ते में हैं. इनको अज़रबैजान सेना के हाथों नरसंहार जैसी आशंका सता रही है.

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दुनिया के कई देशों के नेताओं ने नागोर्नो-काराबाख के नागरिकों की सुरक्षा और सलामती अज़रबैजान की ज़िम्मेदारी बतायी है. अज़रबैजान की तरफ़ से भी कहा गया है कि ये सभी उसके क्षेत्र के रहने वाले हैं और उसके शासन के अंदर सुरक्षित हैं. फिर भी जो आर्मेनिया जाना चाहते हैं, तो जा सकते हैं.

सैन्य अभियान से पहले अज़रबैजान ने दक्षिण पश्चिम के लैचिन कॉरिडोर पर क़रीब 9 महीनों तक नाकेबंदी रखी. ये नागोर्नो-काराबाख को सड़क से जोड़ने वाला एक मात्र रास्ता है. नाकेबंदी की वजह से नागोर्नो-काराबाख में खाने पीने के सामान, ईंधन और रोज़मर्रा की दूसरी चीज़ें के साथ-साथ दवाओं की भारी किल्लत पैदा हो गई.

अज़रबैजान की जीत के बाद रेड क्रास का दल रसद और दूसरी ज़रूरत की चीजों की पहली खेप लेकर इस क्षेत्र में पहुंचा. इस क्षेत्र को अपने कब्ज़े में लेने के बाद अज़रबैजान खेमे में जश्न का माहौल है. उम्मीद की जा रही है कि आर्मेनियाई अलगाववादी लड़ाकों के हथियार डालने के बाद अब यहां खूनी संघर्ष देखने को नहीं मिलेगा.

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