वैक्सीन न लेने वालों को शर्मिंदा करना बंद करना होगा, यह ठीक नहीं है : दर्शनशास्त्री

बायोमेडिकल एथिक्स में विजिटिंग प्रोफेसर ; यूहीरो चेयर इन प्रैक्टिकल एथिक्स, यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड और अल्बर्टो गिउबिलिनी, सीनियर रिसर्च फेलो, यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड

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टीकाकरण संवेदनशील मुद्दा बन गया है. यह दूसरों को शर्मसार करने की प्रवृत्ति को जन्म देता है
ऑक्सफ़ोर्ड:

पिछले एक साल के दौरान आपने ऐसी कई हेडलाइन देखी होंगी जिनमें बताया गया कि कोविड वैक्सीन नहीं लेने वाली 27 साल की एक मां की कोरोना वायरस (Coronavirus) से मृत्यु हो गई और उसके पिता ने वैक्सीन (Vaccination) लेने से इंकार करने वालों पर जुर्माना लगाने की मांग की. यह एक उदाहरण है उन लोगों को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करने का जो वैक्सीन नहीं लेते और कोविड-19 (Covid-19) से जान गँवा देते हैं. दरअसल दुनिया में अब यह महसूस किया जा रहा है कि ऐसे लोग जिन्होंने वैक्सीन नहीं ली, को शर्मिंदा करना बंद करना होगा क्योंकि यह ठीक नहीं है.

इसे लेकर दर्शनशास्त्री गाय एचिसन और सलादीन मेक्लेड-गार्सिया का कहना है, ''ऑनलाइन पब्लिक शेमिंग एक व्यक्ति को एक निश्चित प्रकार के नैतिक चरित्र के लिए सामूहिक रूप से दंडित करने का एक तरीका है.. यह दंड (या ‘‘प्रतिष्ठा का हनन) समाज में मानदंडों को लागू करने का एक तरीका हो सकता है. एक समाचार संस्थान ने वैक्सीन न लेने वाले ऐसे लोगों की सूची तैयार की है, जिनकी कोविड-19 से मौत हो गई. सोशल मीडिया पर भी ऐसे लोगों का मजाक उड़ाया जा रहा है. उदाहरण के लिए, एक पूरा रेडिट चैनल उन लोगों का मज़ाक उड़ाने के लिए समर्पित है जो वैक्सीन से इनकार करने के बाद मर जाते हैं.

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यह आम धारणा है कि कोविड-19 टीकाकरण जीवन बचाता है और अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता को कम करता है. यह सभी महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य जानकारी है.  टीकाकरण के बारे में संबंधित कहानियां सुनाना और भावनात्मक शब्दों का उपयोग करना यह संदेश देता है - टीका लगवाना अच्छा है. लेकिन ऊपर दिए गए उदाहरणों के साथ समस्या उनके लहजे और बिना टीकाकरण वाले लोगों को अलग करने की है. इस शर्मसार करने के पीछे एक गुप्त कारण भी है.

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अब सवाल यह है कि हम लोगों को क्यों शर्मिंदा करते हैं ? इसका जवाब है - सार्वजनिक रूप से किसी को शर्मिन्दा करना कोई नई बात नहीं है. यह मानव इतिहास और मनोविज्ञान में निहित है. एक विकासवादी दृष्टिकोण से, शर्मिंदगी व्यक्तियों को उनके समुदाय के अन्य सदस्यों के प्रति उनके कथित असामाजिक व्यवहार के लिए जवाबदेह रखने का एक तरीका है.

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दर्शनशास्त्री गाय एचिसन और सलादीन मेक्लेड-गार्सिया का कहना है - ''ऑनलाइन पब्लिक शेमिंग एक व्यक्ति को एक निश्चित प्रकार के नैतिक चरित्र के लिए सामूहिक रूप से दंडित करने का एक तरीका है.. यह दंड (या ‘‘प्रतिष्ठा का हनन) समाज में मानदंडों को लागू करने का एक तरीका हो सकता है.

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हालाँकि, दूसरों को लज्जित करना हमारे अपने गुण और विश्वसनीयता का संकेत देने का एक तरीका है. अन्य लोगों के व्यवहार के बारे में नैतिकता हमें अपने बारे में बेहतर महसूस करने में मदद कर सकती है. ऑनलाइन दुनिया इस मानवीय प्रवृत्ति को बढ़ा रही है. यह दो भारी नैतिक खेमों का ध्रुवीकरण करता है : एक तरफ स्वयंभू अच्छे, जिम्मेदार लोग हैं जो दूसरों का मजाक उड़ाते हैं और दूसरी तरफ बुरे, गैर-जिम्मेदार लोग हैं, जिनका मजाक उड़ाया जाता है.

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टीकाकरण इतना संवेदनशील मुद्दा बन गया है कि यह आसानी से दूसरों को शर्मसार करने की प्रवृत्ति को जन्म देता है. क्या लोग शर्मिंदा होने के लायक हैं? लोगों को उनके स्वास्थ्य संबंधी विकल्पों के लिए शर्मिंदा करना इस विचार की अवहेलना करता है कि लोग अपने स्वयं के निर्णयों के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार हैं.

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मोटापे को ही लीजिए, पब्लिक शेमिंग से जुड़ा एक और उदाहरण हैं यह. व्यक्ति अपने मोटापे या मोटापे का कारण बनने वाली जीवनशैली के लिए किस हद तक जिम्मेदार हैं, यह जटिल है. हमें जीन, पर्यावरण, धन, साथ ही पसंद सहित मुद्दों पर विचार करने की आवश्यकता है. दरअसल, लोगों को उनके मोटापे ('फैट शेमिंग') के लिए शर्मिंदा करना व्यापक रूप से अस्वीकार्य माना जाता है..

इसी तरह, कुछ समुदायों में टीके का निम्न स्तर अक्सर संरचनात्मक असमानताओं से जुड़ा होता है, जिसमें स्वास्थ्य असमानता और विश्वास की कमी शामिल है. इस स्थिति के लिए आमतौर पर व्यापक समाज और संस्थानों को दोष दिया जाता है, न कि प्रभावित समूहों या व्यक्तियों को..

सार यही कि अगर किसी को किसी चीज के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, तो उसे शर्मसार करना नैतिक रूप से उचित नहीं है.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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