तुर्की और सीरिया में आए भूकंप को सात दिन बीत चुके हैं. राहत और बचाव का काम अब धीमा पड़ चुका है क्योंकि इतने दिनों बाद मलबे में से किसी के बच निकलने की संभावना अब कम से कमतर हो गई है. हालांकि मलबे को हटाने का काम चल रहा है. अब ज्यादा जोर इस बात पर है कि जिनके घर टूट गए हैं और जिनके पास कुछ भी नहीं बचा, उनको कैंपों में रखा जाए, उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाए. इसलिए जगह-जगह कैंप बनाए गए हैं. हर कैंप में हजारों की तादाद में भूकंप पीड़ित रह रहे हैं.
भूकंप पीड़ितों के लिए बनाए गए कैंप सरकारी हैं. इनमें मूलभूत जररूत की चीजें उपलब्ध कराई जा रही हैं. खाने-पीने की चीजें और बहुत ज्यादा ठंड होने से हीटिंग सिस्टम जैसी चीजें दी जा रही हैं. लेकिन जिनको इन कैंपों में जगह नहीं मिली है उनके लिए जिंदगी ज्यादा दुरूह हो चली है. उन्होंने बेडशीट, तिरपाल, पॉलिथिन जैसी चीजों से अपने आशियाने बनाए हैं. उनको खाने की दिक्कत है. हीटिंग व्यवस्था नहीं है. वे किसी तरह गुजर-बसर करने को मजबूर हैं.
साीरिया और तुर्की में आए भूकंप ने लाखों लोगों को बेघरबार कर दिया. लाखों लोग ऐसी जगहों पर रहने को मजबूर हैं जहां मूलभूत जरूरत की चीजें भी उनको मयस्सर नहीं हैं. चादर, पर्दों और गद्दों को रखकर टैंट बनाए गए हैं. दिन में तो धूप खिली होती है तो यहां रह रहे परिवार अपना वक्त निकाल लेते हैं, लेकिन रात में मुश्किल होती है क्योंकि इन टैंटों में अंदर हीटिंग की व्यवस्था नहीं है. हालांकि परंपरागत तरीका, जिसे बुखारी कहते हैं, इन्होंने वह लगा रखा है, लेकिन इससे राहत नहीं मिलती क्योंकि इसके लिए ईंधन उपलब्ध नहीं है. इस तरह फुटपाथ पर जिंदगी चल रही है.
भूकंप पीड़ितों की बहुत बड़ी तादाद है इसलिए सबके लिए व्यवस्था हो पाना मुमकिन नहीं है. सरकार ने अपनी तरफ से कोशिश जरूर की है. कई लोगों ने तो अपने घर के मलबे के पास ही अपना ठिकाना बना लिया है. घर से उन्हें इतना लगाव है कि उन्हें वहां से दूर जाना मुनासिब नहीं लगता. उन्हें उम्मीद है कि इनकी जिंदगी जल्द ही पटरी पर लौटेगी.