पाकिस्तान की राजनीति इस समय नाजुक दौर से गुजर रही है. दो अहम सहयोगियों-मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) और बलूचिस्तान अवामी पार्टी (बीएपी) के विपक्षी मोर्चे में शामिल होने के बाद पीएम इमरान खान (Imran Khan)342 सदस्यीय नेशनल असेंबली में बहुमत खो चुके हैं. उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, इस स्थिति में पीछे के दरवाजे से निचले सदन को भंग करने के लिए पीएम और संयुक्त विपक्ष के बीच किसी समझौते पर पहुंचने के प्रयास जारी है.
सरकार में मौजूद उच्च पदस्थ सूत्रों ने PTI को गुरुवार को बताया कि पाकिस्तान की तहरीक-ए-इंसाफ नीत सरकार और संयुक्त विपक्ष के बीच, पीएम इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के मुद्दे पर पिछले दरवाजे से बातचीत का दौर चल रहा है. सूत्रों ने बताया, 'बातचीत एक बिंदु पर केंद्रित है-संयुक्त विपक्ष, इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को वापस ले और बदले में वे नेशनल असेंबली को भंग कर नए सिरे से चुनाव कराएं.' सूत्रों ने कहा कि यदि विपक्ष और सरकार के बीच बातचीत समझौते तक पहुंचती है तो सरकार की शीर्ष व्यक्ति इस बारे में गारंटर हो सकते हैं. लेकिन यदि डील नहीं होती तो नए चुनाव इसी वर्ष अगस्त में होंगे.
सूचना मंत्री फवाद चौधरी की ओर से बुधवार को पाकिस्तान के पीएम इमरान खान की सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के साथ मीटिंग की पुष्टि के एक दिन बाद यह घटनाक्रम सामने आया है. सेना, जिसने पाकिस्तान के करीब 73 वर्षों के अस्तित्व के आधे से अधिक समय तक मुल्क पर शासन कया है, ने अब तक सुरक्षा और विदेश नीति के मामलों में काफी शक्ति का इस्तेमाल किया है. उधर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) चेयरमैन बिलावल भुट्टो जरदारी ने गुरुवार को कहा कि संयुक्त विपक्ष को इमरान खान को सुरक्षित पैकेज (safe package)नहीं देना चाहिए. उन्होंने कहा, 'पीएम को बिना किसी देर के इस्तीफा देना चााहिए क्योंकि वे संसद में बहुमत गंवा चुके हैं.' विपक्षी पार्टी, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के महासचिव अहसान इकबाल ने पीटीआई से कहा कि उनकी पार्टी, नए सिरे से चुनाव चाहती है.
गौरतलब है कि पाकिस्तान में कोई भी प्रधानमंत्री अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है. साथ ही पाकिस्तान के इतिहास में कोई भी प्रधानमंत्री अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से अपदस्थ नहीं हुआ है और इमरान इस चुनौती का सामना करने वाले तीसरे पीएम हैं.इमरान 2018 में ‘नया पाकिस्तान' बनाने के वादे के साथ सत्ता में आए थे, लेकिन वह जरूरी वस्तुओं की बढ़ती कीमतों जैसी बुनियादी समस्या को दूर करने में नाकाम साबित हुए जिससे विपक्ष को उन पर हावी होने का मौका मिल गया है.
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