चीन और पाकिस्तान की दोस्ती हिमालय से ऊंची, समंदर से गहरी और शहद से मीठी भी है. ये हम नहीं, बल्कि पाकिस्तान हमेशा कहता रहा है. लेकिन इस बार ये समंदर से गहरा दोस्त चीन अपने पाकिस्तान से बेहद खफा है. आखिर पाकिस्तान और शहबाज शरीफ ने क्या गलती कर दी है कि चीन मुंह फुला कर बैठ गया है और गाना गुन गुना रहा है....अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का?
चलिए जानते हैं कि आखिर दोस्त के मुल्क में अमन लौटने से चीन खफा क्यों है, उसे कौन सा गम खा रहा है.
पाकिस्तान में शांति चीन को रास नहीं आ रही?
भारत पाकिस्तान के बीच जब तनाव बढ़ने लगा तो इंटरनेशनल लेवल पर दोनों देशों से तनाव खत्म कर शांति लाने की अपील की जाने लगी. दोनों तरफ बढ़ रही टेंशन को ख्त्म करने के लिए कई देशों ने बीच-बचाव की बीत भी कही. मगर ये मसला काफी गंभीर हो चुका था. भारत उसे उसके किए का सबक सिखा रहा था. लेकिन जब बात काफी आगे बढ़ी और पाकिस्तान के हाथ से बाहर जाने लगी तो फिर उसने भारत के सामने सीजफायर का प्रस्ताव रखा. भारत हमेशा से शांति के पक्ष में रहा है. इसलिए भारत ने पाकिस्तान की युद्धविराम करने की बात मान ली. मगर इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर सीजफायर का ऐलान कर दिया और दोनों देशों के बीच तनाव खत्म कराने का क्रेडिट लेने लगे. बस यही से चीन पाकिस्तान पर बेवफाई का आरोप लगाने लगा है.
सीजफायर का क्रेडिट ट्रंप लेने लगे तो चीन चिड़ने लगा और वजह भी साफ है. चीन को लग रहा है कि सीजफायर के लिए उसका दोस्त उसके पास न आकर सीधे अमेरिका की शरण में चला गया. जब 9 मई को अमेरिका, पाकिस्तान और इंडिया से बातचीत करने की कोशिश कर रहा था तब उसी दौरान चीन की भी कोशिश थी कि वो इस मैटर के बीच में आए. लेकिन पाकिस्तान उस समय अमेरिका के कॉन्टैक्ट में था और वहीं बातों का दौर जारी था. जबकि चीन चाह रहा था कि जब इतना बड़ा संकट छिड़ा है तो इसमें वो दोनों देशों के बीच सुलह करा कर दुनिया में अपनी एक पीस लविंग नेशन की इमेज बनाए, और खास तौर पर जब इस संकट में इसका दोस्त पाकिस्तान था.
चीन चाह रहा था कि पाकिस्तान उससे ही इस मुद्दे पर बात करे. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप इन सबके बीच में घुस आए और पाकिस्तान ने भी अमेरिका से ही इस बारे में बात की. चीन को चोट पहुंची कि दोस्त पाकिस्तान ने उसका दरवाजा नहीं खटखटाया. चीन इस मुद्दे का फायदा उठा कर अपनी इमेज को चमका सकता था. मगर ये मौका ट्रंप ले उड़े और हर जगह ये प्रचार करने लगे कि ये शांति तो उन्होंने कराई है. और बस फिर इस तरह से पक्के दोस्त चीन और पाकिस्तान के बीच किसी तीसरे यानि कि ट्रंप के आ जाने से दरार आ गई.
अब ट्रंप भले ही कितना भी इस बात का क्रेडिट लेने की कोशिश कर रहे हों लेकिन भारत बहुत पहले ही ट्रंप के दावों की पोल खोल चुका है. विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने सीजफायर कंफर्म करते ही ये साफ कर दिया था कि इसे लेकर इंडिया और पाकिस्तान के बीच इसे लेकर सीधी बात हुई है और इसमें कोई मिडिएटर नहीं था. वहीं ये भी बताया गया था कि पाकिस्तान की तरफ से सीजफायर ऑफर किया गया था और इंडिया ने इसे स्वीकार किया. दोनों देशों के DGMO ने इसपर सीधे बात की.
लेकिन वो कहते हैं ना कि दो की लड़ाई में तीसरे का फायदा. बस यही फायदा ढूंढने निकले थे अमेरिका और चीन, जिसमें चीन अपनी दोस्ती का फायदा उठाकर नाम कमाने की कोशिश कर रहा था मगर वो सोचता ही रह गया और ट्रंप बीच में कूद पड़े और यहां-वहां यही बात फैलाने लगे कि सीजफायर के पीछे अमेरिका का हाथ है. भले ही इन दावों में सच्चाई ना हो मगर जैसे ही ये बात फैलने लगी, जिनपिंग की अपने दोस्त दूरी बढ़ने लगी और सीजफायर के बाद चीन और पाकिस्तान के रिश्ते अब तल्ख होते नजर आ रहे हैं.
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