अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपित शी जिनपिंग
अमेरिका और चीन आमने-सामने हैं. यह डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग की खुली भिड़ंत है. दोनों के बीच इस मल्लयुद्ध के लिए मैदान दिया है ट्रंप के शुरू किए टैरिफ वॉर ने. दोनों ने एक-दूसरे के यहां से आने वाले सामानों पर ऐसे टैरिफ बढ़ाया जैसे किसी नीलामी में बोली लग रही हो. अभी की स्थिति यह है कि अमेरिका ने चीन से आने वाले सामानों पर 145 प्रतिशत का टैरिफ लगाया है जबकि चीन ने अमेरिका से आने वाले सामानों पर 125 प्रतिशत तक का टैरिफ लाद दिया है.
अब सवाल है कि किसका पलड़ा भारी दिख रहा है? चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग टैरिफ वॉर के बीच वियतनाम, मलेशिया और कंबोडिया के दौरे पर हैं. ट्रंप ने कहा है कि शी जिनपिंग यह दौरा यह तरकीब निकालने के लिए कर रहे हैं कि कैसे अमेरिका को नुकसान पहुंचाया जा सके. दूसरी तरफ चीन ने अपने देश से रेयर अर्थ मेटल्स के निर्यात पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है. इसे भी ट्रंप पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा.
1. रेयर अर्थ मेटल्स को जिनपिंग ने ट्रेड वॉर में बनाया हथियार?
अमेरिका से बढ़ते ट्रेड वॉर के बीच बीजिंग ने कई महत्वपूर्ण दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (रेयर अर्थ मेटल्स), धातुओं और मैग्नेट के निर्यात पर रोक लगा दी है. चीन का यह कदम अपने आप में बड़ा है क्योंकि दुनियाभर में जितने भी रेयर अर्थ मेटल्स निकलते हैं उनमें से 90% फिल्ड चीन के अंदर ही है. यानी चीन का उनपर लगभग एकाधिकार ही है. अब आप पूछ सकते हैं कि अगर चीन ने रेयर अर्थ मेटल्स नहीं दिया तो ऐसा क्या कहर टूट जाएगा. यहां आपको यह बता दें कि आज के टेक्नोलॉजी के जमाने में रेयर अर्थ मेटल्स ऐसा फैक्टर है जिससे कंट्रोल अपने हाथ में बनाया रखा जा सकता है. दरअसल हथियारों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, गाड़ी बनाने से लेकर एयरोस्पेस बनाने तक, सेमीकंडक्टर बनाने से और उपभोक्ता वस्तुओं बनाने तक, हर जगह रेयर अर्थ की कंपोनेंट हैं, अहम हैं.
अब चीन ने इनके निर्यात पर रोक लगाकर अमेरिका को चोक करना शुरू कर दिया है. यह सही है कि अमेरिका ने धीरे-धीरे चीन से रेयर अर्थ के आयात को 2017 में 80% से घटाकर आज के वक्त में लगभग 70% कर दिया है. लेकिन अभी अमेरिका जिन अन्य देशों से इसका आयात कर भी रहा है वहां भी चीन से ही यह प्रोसेस होकर पहुंच रहा है. यानी अभी भी कई अमेरिकी डिफेंस कॉन्ट्रैक्टर या हाई टेक कंपनियां अपने उत्पादों के लिए घुमा-फिरा कर चीन पर निर्भर हैं.
2- ‘पड़ोसियों' को जमा कर रहे शी जिनपिंग?
ट्रेड वॉर के बीच चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 5 दिनों की यात्रा पर निकले हैं. सोमवार को वो वियतनाम पहुंचें जहां उन्होंने शीर्ष नेता टू लैम से मुलाकात की, मजबूत व्यापार संबंधों का आह्वान किया और सप्लाई चेन बढ़ाने सहित दर्जनों सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए. इसके बाद वो मलेशिया और कंबोडिया पहुंच रहे हैं.
शी जिनपिंग ने ट्रंप की टैरिफ घोषणा से पहले ही इन तीनों देशों की यात्रा करने की योजना बनाई थी, लेकिन संयोग ऐसा बैठा कि ट्रेड वॉर के बीच यह यात्रा हो रही है. ऐसे में यह चीन के लिए एक अवसर बन गया है. शी जिनपिंग इन पड़ोसी देशों के सामने यह दिखाना चाहते हैं कि ट्रंप के लीडरशीप में वाशिंगटन की नीति अराजक है और बार-बार इसमें उलटफेर होता है. इसके विपरीत जिनपिंग चीन को एक स्थिर व्यापारिक भागीदार के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं.
3- अमेरिकी ट्रेजरी बिल खरीदकर कंट्रोल पहले ही हाथ में ले लिया?
इस प्वाइंट को समझने के लिए आपको पहले यह जानना होगा कि आखिर ट्रेजरी बिल होता क्या है. दरअसरल यह सरकार के पैसा जमा करने का एक जरिया होता है. ट्रेजरी बिल किसी देश की सरकार द्वारा जारी किया जाने वाला एक मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट है. मान लीजिए सरकार को 900 रूपए चाहिए. तो वह 100-100 रुपए के 10 ट्रेजरी बिल जारी करेगी जिसे कंपनियां या दूसरे देश 90-90 रुपए में खरीदते लेंगे. इन बिल पर कोई ब्याज नहीं मिलता है, बल्कि 100 रुपए के बिल को 90 रुपए में खरीदा जाता है और एक खास वक्त बाद वह ट्रेजरी बिल सरकार को वापस देने पर 100 रुपए मिल जाते हैं. यही कमाई होती है.
अब वापस आते हैं कि चीन इन अमेरिकी ट्रेजरी बिल को कैसे हथकंड़ा बना सकता है. जापान के बाद चीन के पास सबसे अधिक अमेरिकी ट्रेजरी बिल हैं- इनकी कीमत 760 बिलियन डॉलर है. यानी एक तरह से इतना रुपया अमेरिका ने चीन से उधार ले रखा है. अब चीन इन ट्रेजरी बिल को अमेरिका के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है. अगर चीन इन ट्रेजरी बिल को कम कीमत पर ही सही, बेचने लगा तो अमेरिकी डॉलर की कीमत गिरने लगेगी. अलजजीरा की रिपोर्ट के अनुसार इकनॉमिक थिंक टैंक, ग्राउंडवर्क कोलैबोरेटिव में नीति और वकालत के प्रमुख एलेक्स जैक्वेज ने कहा कि इसके न केवल घरेलू बल्कि वैश्विक परिणाम और वास्तव में अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं.
4- अमेरिका के एग्रीकल्चर सेक्टर पर निशाना
चीन जब चाहे तब पोल्ट्री और सोयाबीन जैसे अमेरिका के प्रमुख कृषि निर्यात क्षेत्रों को टारगेट कर सकता है. अमेरिका के ये सेक्टर चीन से आने वाली मांग पर बहुत अधिक निर्भर हैं और उन राज्यों में केंद्रित हैं जिन्होंने ट्रंप को वोट दिया है. उन्हें झटका देकर चीन ट्रंप के वोट बैंक को झटका दे सकता है. अमेरिका के सोयाबीन निर्यात का लगभग आधा और अमेरिकी पोल्ट्री निर्यात का लगभग 10% हिस्सा चीन में आता है. 4 मार्च को ही बीजिंग ने तीन प्रमुख अमेरिकी सोयाबीन निर्यातकों के लिए आयात मंजूरी रद्द कर दी है.
5- चीन में उत्पादन कर रहे अमेरिकी टेक कंपनियों पर निशाना
Apple और Tesla जैसी कई अमेरिकी कंपनियां अपने उत्पादन के लिए चीन से गहराई से जुड़ी हुई हैं. टैरिफ से उनके प्रोफिट मार्जिन में काफी कमी आने का खतरा है. बीजिंग का मानना है कि इसका इस्तेमाल ट्रंप सरकार के खिलाफ लाभ उठाने के लिए किया जा सकता है. बीजिंग कथित तौर पर चीन में काम कर रही अमेरिकी कंपनियों पर नियामक दबाव के माध्यम से जवाबी हमला करने की योजना बना रहा है.
(इनपुट- द कन्वर्सेशन, अल-जजीरा)