धरना देना और नारे लगाना ये दोनों ही लोकतंत्र की सबसे ख़ूबसूरत अभिव्यक्तियां हैं. विपक्ष में रहते हुए किस नेता ने यह सुंदर काम नहीं किया होगा मगर जब वे सत्ता में आते हैं तो उनकी नाक के नीचे, कई बार उनके नाम पर यही धरना और प्रदर्शन बदसूरत क्यों लगने लगता है. क्यों किसी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की सभा के पहले नारेबाज़ी कर देना, काले झंडे दिखा देना इतना बड़ा अपराध हो जाता है कि उनके जाने के बाद स्थानीय प्रशासन ज़रूरत से ज़्यादा सक्रिय हो जाता है और धरना देने वालों को पकड़ कर कार्रवाई करने लगता है. कायदे से धरना देने या नारे लगाने वाले को धरना भत्ता मिलना चाहिए क्योंकि वह ऐसा करके लोकतंत्र में बोलने या आवाज़ उठाने के अधिकार को सुरक्षित रखता है.