देश भर में चल रहे धरना प्रदर्शनों को आप देखेंगे तो लोकतंत्र की अलग तस्वीर दिखेगी. कई बार हम प्रदर्शनों को विपक्षी दलों के हिसाब से देखते हैं. जो लोग विपक्ष को खोज रहे हैं उन्हें इन प्रदर्शनों में जाना चाहिए ताकि पता चले कि विपक्ष के नेताओं के बग़ैर भी प्रदर्शन होते हैं. लोगों ने विपक्ष का रास्ता देखना भी बंद कर दिया है. इसे इस तरह से भी देखिए कि एक ज़माना था जब कोई नेता बनने के लिए इन प्रदर्शनों से जुड़ता था, इस्तमाल करता था, मगर अब वो भी बंद हो गया है. लेकिन प्रदर्शन बंद नहीं हुए हैं. ज़्यादातर प्रदर्शनों का नतीजा भले ज़ीरो हो लेकिन सब अगले प्रदर्शन के लिए अपनी तरफ से एक नंबर छोड़ जाते हैं और यह सिलसिला चलता रहता है. 2018 में रेलवे भर्ती बोर्ड के ग्रुप डी की परीक्षा में जिन विकलांगों का हुआ है, वो सब अपनी शिकायतों को लेकर दिल्ली के मंडी हाउस आए जहां पर विकलांग व्यक्तियों के लिए आयुक्त का कार्यालय है. यहां इसलिए आए क्योंकि यहीं पर इन छात्रों ने शिकायत की है कि रेलवे उनके सवालों का जवाब नहीं दिया है. बुधवार को यहां रेलवे को अपना पक्ष रखना था मगर रेलवे की तरफ से कोई नहीं आया. छात्रों का यह समूह आयुक्त के दफ्तर के बाहर जमा हो गया. नारे लगाने लगा. इंसाफ मांगने लगा. कोई नहीं आया लेकिन ये किसी के भरोसे नहीं, अपने इरादे के भरोसे दिल्ली आए हैं. मामला यह है कि रेलवे ने जब ग्रुप डी का रिज़ल्ट निकाला तो विकलांग श्रेणी में प्रदर्शन में शामिल छात्र पास हो गए. रिज़ल्ट में उनका नाम था और उनसे कहा गया कि आप सभी के दस्तावेज़ों की जांच होगी. ज़ाहिर है पास होने की खुशी किसी ने नहीं होगी. ये छात्र डाक्यूमेंट बनवाने में जुट गए. लेकिन कुछ दिन के बाद रेलवे इस परीक्षा में सीट बढ़ा देती है.